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This Article is From Mar 20, 2013

मनमोहन सिंह से मिलकर डीएमके के मंत्रियों ने सौंपा इस्तीफा

नई दिल्ली: राष्ट्रपति से मिलकर समर्थन वापसी का पत्र सौंपने के बाद बुधवार को डीएमके के पांचों मंत्रियों ने अपना इस्तीफा पीएम मनमोहन सिंह से मिलकर उन्हें सौंप दिया हैं। पहले द्रमुक के तीन मंत्रियों एसएस पलानिमक्कम, एस गांधीसेल्वन और एस जगतरक्षकन ने प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा सौंपा। पीएम के साथ एक बैठक के बाद एमके अलागिरी और डी नेपोलियन अलग से अपना इस्तीफा सौंपा।

डीएमके संसदीय दल के नेता टीआर बालू ने देर रात राष्ट्रपति से मिलकर समर्नन वापसी की चिट्ठी सौंपी थी।

यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन जारी रखने के बारे में पूछे जाने पर बालू ने कहा था कि इस बारे में पार्टी अध्यक्ष ही फ़ैसला लेंगे। फिलहाल डीएमके के कोटे से जो मंत्री सरकार में शामिल हैं उनमें एमके अडागिरि रसायन एवं उवर्रक मंत्री हैं। उनके अलावा राज्य मंत्रियों में एसएस पालानिमणिक्कम वित्त राज्यमंत्री डी नेपोलियन सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्री, डॉ एस जगतरक्षकम वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री और एस गांधीसेल्वन स्वास्थ्य और कल्याण राज्यमंत्री शामिल हैं।

इससे पहले मंगलवार की सुबह राजनीतिक हल्कों में अचानक गर्मी सी आ गई जब डीएमके ने केंद्र सरकार से समर्थन वापसी का ऐलान किया। डीएमके की मांग है कि सरकार श्रीलंका के ख़िलाफ़ संसद में प्रस्ताव लाए। फिलहाल सरकार इसके लिए तैयार भी लग रही है।

डीएमके की समर्थन वापसी के ऐलान के साथ लोग नंबर गिनने लगे, लेकिन सरकार सुरक्षित है। ये ज़रूर है कि पहले से अल्पमत में चल रहे यूपीए पर बाहरी समर्थन की मजबूरी कुछ और बढ़ गई।

वैसे सरकार ने अभी हिसाब किताब लगा लिया है-
−लोकसभा में फिलहाल 540 सांसद हैं− यानि 271 पर बहुमत बनता है।
−डीएमके के समर्थन वापसी के बाद यूपीए के 228 सांसद रह जाते हैं।
-इनमें कांग्रेस के 203, एनसीपी के 9, आरएलडी के 5, नेशनल कॉन्फ्रेंस के 3 और अन्य 8 सांसद हैं।
− इन्हें बाहर से एसपी के 22, बसपा के 21, आरजेडी के 3, जेडीस के 3 और 9 निर्दलीय सांसदों का समर्थन हासिल है। ये तादाद 58 हो जाती है।
−बाहरी समर्थन के साथ यूपीए की कुल संख्या 286 पहुंच जाती है।

राजनीतिक दृष्टि से भी मायावती को यूपी में अपनी ताकत समेटने के लिए वक्त चाहिए तो मुलायम के राज्य में कानून व्यवस्था सुधारने के लिए। खुद डीएमके और एडीएमके को चुनाव की जल्दी नहीं और लेफ्ट बंगाल में ममता से तुरंत टकराना नहीं चाहेगा।

वैसे कांग्रेस डीएमके के प्रस्ताव पास करने की मांग पर विकल्प खुला रखे हुए है, वह ये संदेश कतई नहीं देना चाहेगी कि उसे अपने सहयोगियों के साथ चलना नहीं आता।

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