कभी नेपाल की सबसे ऊंची रही धराहरा इमारत, जिसे आप नेपाल का कुतुब मीनार भी कह सकते हैं, को आज के भूकंप ने जमींदोज़ कर दिया है। सोशल मीडिया और नेपाल के स्थानीय न्यूज़ चैनल के मुताबिक़, नौ मंज़िली इमारत पूरी तरह तबाह हो गई है।
सुंधरा, काठमांडू स्थित धराहरा टावर को 1824 में तब के प्रधानमंत्री भीमसेन थापा ने बनवाया था। 1832 में इसके बगल में रानी त्रिपुरा सुंदरी के आदेश पर एक और टावर बनाया गया।
अपने निर्माण के साथ ही इन टावरों पर भूकंप की मार पड़नी शुरू हो गई थी। 1834 के एक बड़े भूकंप में पहले टावर को भारी नुकसान हुआ था और 1993 के भूकंप में ये पूरी तरह नष्ट हो गया। 1993 के भी भूकंप में दूसरे टावर ने जो कि 11 मंज़िल का था अपनी सात मंज़िलों को खो दिया। ये महज़ 4 मंज़िल का बचा रह गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने नौ मंज़िलों तक इसका पुनर्निर्माण कराया। तब इसकी ऊंचाई 61.88 मीटर तक पहुंची, लेकिन आज के भूकंप ने इसे फिर ज़मीन पर ला दिया है।
किसी भी ज़रूरी मौक़े पर इन टावरों की बालकॉनी से तुरही बजायी जाती थी ताकि सेना जल्द से जल्द एक जगह जमा हो सके। क़रीब दो सौ साल पुरानी ये इमारत सैलानियों के आकर्षण का एक मुख्य केंद्र था। इसकी घुमावदार सीढ़ियां सैलानियों को बेहद भाती थीं।
सुंधरा, काठमांडू स्थित धराहरा टावर को 1824 में तब के प्रधानमंत्री भीमसेन थापा ने बनवाया था। 1832 में इसके बगल में रानी त्रिपुरा सुंदरी के आदेश पर एक और टावर बनाया गया।
अपने निर्माण के साथ ही इन टावरों पर भूकंप की मार पड़नी शुरू हो गई थी। 1834 के एक बड़े भूकंप में पहले टावर को भारी नुकसान हुआ था और 1993 के भूकंप में ये पूरी तरह नष्ट हो गया। 1993 के भी भूकंप में दूसरे टावर ने जो कि 11 मंज़िल का था अपनी सात मंज़िलों को खो दिया। ये महज़ 4 मंज़िल का बचा रह गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने नौ मंज़िलों तक इसका पुनर्निर्माण कराया। तब इसकी ऊंचाई 61.88 मीटर तक पहुंची, लेकिन आज के भूकंप ने इसे फिर ज़मीन पर ला दिया है।
किसी भी ज़रूरी मौक़े पर इन टावरों की बालकॉनी से तुरही बजायी जाती थी ताकि सेना जल्द से जल्द एक जगह जमा हो सके। क़रीब दो सौ साल पुरानी ये इमारत सैलानियों के आकर्षण का एक मुख्य केंद्र था। इसकी घुमावदार सीढ़ियां सैलानियों को बेहद भाती थीं।
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