वाराणसी:
देव-दीपावली पर्व पर तीनो लोकों से न्यारी शंकर की नगरी काशी के गंगा घाटों पर दीपक कुछ इस तरह सजे जैसे लगा मानो घाटों पर स्वर्ग उतर आया हो. वाराणसी के चौरासी घाटों पर सवा लाख दीपक जलाये गये और दशाश्वमेघ घाट पर गंगा की महाआरती हुई.
महाआरती की छटा आज देखते ही बन रही थी. इस अनुपम दृश्य को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लाखों लोग आए थे. दशाश्वमेघ घाट पर परंपरा है कि इस मौके पर देश के लिए शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी जाती है.
मान्यता है कि भगवान शिव ने जब त्रिपुरासुर नामक दैत्य का वध किया तब स्वर्ग में देवताओं ने दीपावली मनाई थी और तभी से हम इस पर्व को देव-दीपावली के रूप में मनाते है. इसके अलावा मान्यता है कि आज 33 कोटि देवता पृथ्वी पर आए थे, उनके स्वागत में देव दीपावली मनाई गई थी.
तभी से ये परंपरा चली आ रही है. इस परंपरा का निर्वाह आज भी होता है. अपने घरों से लाखों की संख्या में लोग निकलकर गंगा किनारे आते हैं और दीप जलाकर मां गंगा से अपने जीवन के अंधेरे को दूर करने की दुआ करते हैं.
महाआरती की छटा आज देखते ही बन रही थी. इस अनुपम दृश्य को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लाखों लोग आए थे. दशाश्वमेघ घाट पर परंपरा है कि इस मौके पर देश के लिए शहीद हुए जवानों को श्रद्धांजलि दी जाती है.
लिहाजा सेना के तीनो अंगों द्वारा देश की आन बान और शान के लिए शहीद जवानों को सलामी दी गई. इसके बाद दीपक जले घाट पर इंडिया गेट भी बनाया गया, इसके साथ ही गंगा घाट के इस नजारे को देखने के लिये भक्तों की भारी भीड़ इकट्ठा हुई.
मान्यता है कि भगवान शिव ने जब त्रिपुरासुर नामक दैत्य का वध किया तब स्वर्ग में देवताओं ने दीपावली मनाई थी और तभी से हम इस पर्व को देव-दीपावली के रूप में मनाते है. इसके अलावा मान्यता है कि आज 33 कोटि देवता पृथ्वी पर आए थे, उनके स्वागत में देव दीपावली मनाई गई थी.
तभी से ये परंपरा चली आ रही है. इस परंपरा का निर्वाह आज भी होता है. अपने घरों से लाखों की संख्या में लोग निकलकर गंगा किनारे आते हैं और दीप जलाकर मां गंगा से अपने जीवन के अंधेरे को दूर करने की दुआ करते हैं.
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