मॉल की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
दिल्ली और इसके आसपास चल रहे 95 मॉलों के साथ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र देश की मॉल राजधानी है। यह अलग बात है कि इनमें से 12 ही सफल हैं, क्योंकि इन मॉलों के वातानुकूलित परिसरों का इस्तेमाल लोग खरीदारी के लिए कम और राजधानी की तपिश से बचने के लिए अधिक करते हैं। यह बात एक अध्ययन में कही गई।
रियल्टी सेवा कंपनी जेएलएल इंडिया के मुताबिक, देश के प्रमुख सात शहरों दिल्ली, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद में कुल करीब 255 मॉल चल रहे हैं। इनमें से दिल्ली को कम सफलता दर के बाद भी मॉल के लिए माकूल जगह माना जाता है।
मुंबई का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर है, जहां 25-46 में से 10-15 मॉल सफल हैं। इसके बाद बेंगलुरु है, जहां 34 में से सात मॉल सफल हैं। कोलकाता में 15 में से छह मॉल सफल हैं। जेएलएल इंडिया के रिटेल क्षेत्र के लिए प्रबंध निदेशक पंकज रेंझेन ने कहा, 'दिल्ली-एनसीआर में मॉलों की संख्या सर्वाधिक है।
इसका कारण यहां की विशाल आबादी, खर्च करने की प्रवृत्ति और स्थानीय मौसम है।' मॉल की सफलता मुख्यत: डिजाइन और लेआउट, ब्रांड पोजिशनिंग, स्थान और लक्षित वर्ग की जरूरत की पूर्ति पर निर्भर करता है। जेएलएल के मुताबिक, दिल्ली में सफलता दर कम होने के बाद भी यहां मॉल संस्कृति बन गई है।
दिल्ली में सिर्फ चार मॉलों का संचालन बंद हुआ है और एक को कार्यालय परिसर बना दिया गया है। देश में केपीएमजी के साझेदार मोहित बहल ने कहा, 'दिल्ली में खर्च करने की प्रवृत्ति अधिक है। शहर में गर्मी की अवधि लंबी होती है, जिसके कारण लोग साधारण बाजार जाना पसंद नहीं करते। वे मॉल जैसे सुविधाजनक जगहों पर जाना चाहते हैं।'
उन्होंने कहा कि देश में रिटेल उद्योग शैशवावस्था में है। इसका 85-90 फीसदी असंगठित है। बहल ने कहा, 'रिटेल कारोबारी बेहतर अच्छे रियल एस्टेट की तलाश में रहते हैं। (इस उद्योग में) रियल एस्टेट का स्थान विशेष मायने रखता है।'
जेएलएल ने खाली पड़े क्षेत्रों का अनुपात (वेकेंसी स्तर) और किराए के आधार पर मॉल का वर्गीकरण किया है। जिन मॉलों में वेकेंसी स्तर 10 फीसदी होता है, उनमें किराया अधिक होता है। जिनमें वेकेंसी स्तर 20-30 फीसदी होता है, उनमें किराया अपेक्षाकृत कम होता है। जिनमें वेकेंसी स्तर 30 फीसदी या उससे भी कम होता है, वे गरीब मॉल माने जा सकते हैं।
दिल्ली के सफल मॉल किराया प्रबंधन के लिए पेशेवरों की टीम रखते हैं। इन मॉलों में हैं साकेत में सेलेक्ट सिटी मॉल, एनएच-8 और वसंत कुंज में एंबिएंस मॉल, साकेत और वसंत कुंज में डीएलएफ मॉल, पश्चिम दिल्ली में पैसिफिक मॉल और गुड़गांव में एमजीएफ मेट्रोपॉलिटन मॉल। दक्षिण दिल्ली का अंसल प्लाजा पहला मॉल था, जो वर्ष 2000 में शुरू हुआ था।
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के एक साझेदार शशांक जैन ने कहा, 'एनसीआर के विशाल क्षेत्र के कारण यह देश की मॉल राजधानी है। इसका विशाल आकार और इसे एक बड़े क्षेत्र से ग्राहक मिलना मायने रखता है।'
जैन ने कहा, 'आसपास के छोटे शहरों के लोग भी दिल्ली-एनसीआर के मॉल में आते हैं।'
रियल्टी सेवा कंपनी जेएलएल इंडिया के मुताबिक, देश के प्रमुख सात शहरों दिल्ली, मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद में कुल करीब 255 मॉल चल रहे हैं। इनमें से दिल्ली को कम सफलता दर के बाद भी मॉल के लिए माकूल जगह माना जाता है।
मुंबई का प्रदर्शन अपेक्षाकृत बेहतर है, जहां 25-46 में से 10-15 मॉल सफल हैं। इसके बाद बेंगलुरु है, जहां 34 में से सात मॉल सफल हैं। कोलकाता में 15 में से छह मॉल सफल हैं। जेएलएल इंडिया के रिटेल क्षेत्र के लिए प्रबंध निदेशक पंकज रेंझेन ने कहा, 'दिल्ली-एनसीआर में मॉलों की संख्या सर्वाधिक है।
इसका कारण यहां की विशाल आबादी, खर्च करने की प्रवृत्ति और स्थानीय मौसम है।' मॉल की सफलता मुख्यत: डिजाइन और लेआउट, ब्रांड पोजिशनिंग, स्थान और लक्षित वर्ग की जरूरत की पूर्ति पर निर्भर करता है। जेएलएल के मुताबिक, दिल्ली में सफलता दर कम होने के बाद भी यहां मॉल संस्कृति बन गई है।
दिल्ली में सिर्फ चार मॉलों का संचालन बंद हुआ है और एक को कार्यालय परिसर बना दिया गया है। देश में केपीएमजी के साझेदार मोहित बहल ने कहा, 'दिल्ली में खर्च करने की प्रवृत्ति अधिक है। शहर में गर्मी की अवधि लंबी होती है, जिसके कारण लोग साधारण बाजार जाना पसंद नहीं करते। वे मॉल जैसे सुविधाजनक जगहों पर जाना चाहते हैं।'
उन्होंने कहा कि देश में रिटेल उद्योग शैशवावस्था में है। इसका 85-90 फीसदी असंगठित है। बहल ने कहा, 'रिटेल कारोबारी बेहतर अच्छे रियल एस्टेट की तलाश में रहते हैं। (इस उद्योग में) रियल एस्टेट का स्थान विशेष मायने रखता है।'
जेएलएल ने खाली पड़े क्षेत्रों का अनुपात (वेकेंसी स्तर) और किराए के आधार पर मॉल का वर्गीकरण किया है। जिन मॉलों में वेकेंसी स्तर 10 फीसदी होता है, उनमें किराया अधिक होता है। जिनमें वेकेंसी स्तर 20-30 फीसदी होता है, उनमें किराया अपेक्षाकृत कम होता है। जिनमें वेकेंसी स्तर 30 फीसदी या उससे भी कम होता है, वे गरीब मॉल माने जा सकते हैं।
दिल्ली के सफल मॉल किराया प्रबंधन के लिए पेशेवरों की टीम रखते हैं। इन मॉलों में हैं साकेत में सेलेक्ट सिटी मॉल, एनएच-8 और वसंत कुंज में एंबिएंस मॉल, साकेत और वसंत कुंज में डीएलएफ मॉल, पश्चिम दिल्ली में पैसिफिक मॉल और गुड़गांव में एमजीएफ मेट्रोपॉलिटन मॉल। दक्षिण दिल्ली का अंसल प्लाजा पहला मॉल था, जो वर्ष 2000 में शुरू हुआ था।
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के एक साझेदार शशांक जैन ने कहा, 'एनसीआर के विशाल क्षेत्र के कारण यह देश की मॉल राजधानी है। इसका विशाल आकार और इसे एक बड़े क्षेत्र से ग्राहक मिलना मायने रखता है।'
जैन ने कहा, 'आसपास के छोटे शहरों के लोग भी दिल्ली-एनसीआर के मॉल में आते हैं।'
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
दिल्ली, मॉल, मॉल राजधानी, दिल्ली के मॉल, जेएलएल इंडिया, Delhi, Mall, Mall Capital, Delhi's Mall, JLL India