दिल्ली को WiFi बनाने के लिए सिंगापुर की मदद लेगी केजरीवाल सरकार

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

राष्ट्रीय राजधानी को वाई-फाई युक्त बनाने के लिए दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार ने सिंगापुर से मदद मांगी है। फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी का यह सबसे बड़ा चुनावी वादा था, जिस पर हालांकि कुछ प्रगति हुई है।

पार्टी के उपाध्यक्ष आशीष खेतान ने शनिवार को इंफोकॉम डेवलपमेंट अथॉरिटी (आईडीए) ऑफ सिंगापुर के साथ बैठक की। इसी बैठक के दौरान सिंगापुर से मदद मांगी गई। बैठक पूरे शहर में सार्वजनिक वाई-फाई के मुद्दे पर जानकारी हासिल करने के मकसद से की गई। आईडीए का एक दल तीन दिनों के दिल्ली दौरे पर है।

इससे पहले दिल्ली संवाद आयोग (डीडीसी) ने आईडीए को एक पत्र लिखा था। आईडीए सिंगापुर के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन आता है।

आप की सलाहकार समिति डीडीसी ने पत्र में लिखा था, 'हम शासन की सिंगापुर पद्धति, खास तौर पर सार्वजनिक वाई-फाई के मुद्दे को समझने के लिए आपसे अथवा आपके द्वारा सुझाए गए आईडीए के अधिकारी से मिलना पसंद करेंगे।' इस समति की अध्यक्षता मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल करते हैं।

पत्र में आप ने लिखा था कि जैसा कि हम दिल्ली में शासन के प्रतिमान बदलने के लिए प्रयासरत हैं, इसीलिए आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली दिल्ली की सरकार सिंगापुर की सरकार, निजी क्षेत्र, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों और राजनीतिक नेताओं से सीखना चाहती है।

पत्र में आगे कहा गया, 'दिल्ली के लिए एक कुशल प्रशासन, ऐतिहासिक विकास और सुरक्षा की भावना बेहद जरूरी है और हमारा मानना है कि इस लक्ष्य को हासिल करने में सिंगापुर हमारी मदद कर सकता है।'

राजधानी में पानी के रीसाइक्लिंग के मुद्दे पर केजरीवाल सरकार पहले से ही सिंगापुर सरकार के संपर्क में है। इस मुद्दे पर पहले ही लोगों से राय मांग चुकी आप सरकार ने यह स्वीकार किया है कि दिल्लीवासियों को मुफ्त में वाई-फाई उपलब्ध कराना आसान काम नहीं है। पार्टी के कार्यकर्ता इस मुद्दे पर पहले ही फेसबुक जैसी कंपनियों से बात कर चुके हैं।

दिल्ली के संसदीय सचिव और सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री आदर्श शास्त्री ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी को दो साल के भीतर पूरी तरह से वाई-फाई युक्त बना दिया जाएगा और फरवरी 2016 तक 700 हॉटस्पॉट स्थापित कर दिए जाएंगे। केजरीवाल सरकार पश्चिमी देशों की सफल वाई-फाई परियोजनाओं पर पहले से ही अध्ययन कर रही है।

विशेषज्ञों ने हालांकि परियोजना की व्यवहार्यता पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि इस परियोजना के लिए बुनियादी ढांचे पर भारी निवेश की जरूरी है।


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