यह ख़बर 21 दिसंबर, 2012 को प्रकाशित हुई थी

महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने को संसद में तैयारी

खास बातें

  • दिल्ली के सामूहिक बलात्कार मामले के खिलाफ गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। इसे देखते हुए राजनीतिक गलियारे मे इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि बलात्कार समेत महिलाओं के खिलाफ दूसरे अपराधों से निबटने के लिए कैसे कानून लाए जाएं।
नई दिल्ली:

दिल्ली के सामूहिक बलात्कार मामले के खिलाफ गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। इसे देखते हुए राजनीतिक गलियारे मे इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि बलात्कार समेत महिलाओं के खिलाफ दूसरे अपराधों से निबटने के लिए कैसे कानून लाए जाएं।

अगर 4 दिसंबर को लोकसभा में पेश हुआ फौजदारी कानून संशोधन बिल 2012 पास होता है तो बलात्कार की परिभाषा और दायरा बढ़ जाएगा। इसके अलावा, किसी वस्तु से प्राइवेट पार्ट्स को नुकसान पहुंचाना भी रेप माना जाएगा।

इतना ही नहीं, ओरल सेक्स को भी रेप में शामिल करने का प्रस्ताव है। अगर रेप की कोशिश कोई पुलिस सरकारी अफसर या ऐसा अधिकारी करे जो अपनी हैसियत का इस्तेमाल कर रहा हो तो कम से कम दस साल बामशक्कत की सजा हो सकती है।

एनडीटीवी से बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी ने कहा कि ऐसा लगता है कि संसद को इस बात का आभास था कि इस तरह का हादसा दिल्ली में हो सकता है।

उधर, गृह मामलों की संसदीय समिति के अध्यक्ष और बीजेपी नेता वैंकया नायडू ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि वह बिल में रेप के आरोपियों के खिलाफ फांसी की सज़ा के प्रावधान को शामिल करने के लिए संशोधन रखेंगे।

हालांकि तुलसी की दलील है कि मौत की सज़ा देने से रेप मामलों में कनविक्शन रेट और घट जाएगा। उनकी नजर में इस तरह के अपराध के लिए उम्र कैद की सज़ा काफी है। हालांकि वह मानते हैं कि रेप मामलों में जल्दी सुनवाई और दोषियों के सज़ा सही तरीके से मिले। यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष कदम उठाए जाने चाहिए।

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भारत सरकार इस बिल के ज़रिए रेप और दूसरे यौन अपराध के दोषियों से सख्ती से निपटना चाहती है लेकिन इस पहल को कारगर बनाने के लिए नया कानून बनाने के साथ−साथ भारत सरकार को मौजूदा पुलिस और न्यायिक व्यवस्था की खामियों को जल्दी दुरुस्त करने के विशेष पहल करनी होगी।