फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया है कि फांसी की जगह मौत की सजा के लिए किसी दूसरे विकल्प को अपनाया जाए. ऋषि मल्होत्रा द्वारा याचिका में फांसी पर लटकाने रखने हैं. टिल डेथ का प्रावधान करने वाली सीआरपीसी की धारा 354 (5) को रद्द करने की मांग की गई है. याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में फांसी को मौत का सबसे बर्बर तरीका बताया है. याचिका में मांग की गई है कि मौत की सजा के लिए फांसी नहीं कोई और तरीका अपनाया जाए. याचिका में कहा गया है फांसी से मौत में 40 मिनट तक लगते है जबकि गोली मारने और इलेक्ट्रिक चेयर पर केवल 2 मिनट.
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दरअसल- अदालत किसी दोषी को फांसी की सजा सुनाती है तो कहती है 'हैंग टिल डेथ' जिसका मतलब होता है कि दोषी को तब तक फांसी पर लटकाया जाए जब तक उसके शरीर में प्राण बाक़ी है. कानून के हिसाब से भी फांसी देने का यही नियम है, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इस कानून में संशोधन की मांग की गई है.
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याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संवैधानिक पीठ का हवाला देते हुए कहा गया है कि संवैधानिक पीठ ने यह माना था कि जीवन के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है. ऐसे में फांसी सम्मान से मरने के अधिकार के खिलाफ है, इसे बदला जाना चाहिए. याचिका में ये भी कहा गया है कि अगस्त 2015 में लॉ कमीशन ने आतंकवाद और देश के खिलाफ युद्ध को छोड़कर सभी जुर्म के लिए सजा-ए-मौत को खत्म करने की वकालत की थी. अपनी सौंपी गई रिपोर्ट में कमीशन ने कहा था कि सिर्फ आतंकवाद और राष्ट्रद्रोह के मामलों में ही फांसी की सजा होनी चाहिए.
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कमीशन के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस एपी शाह ने कहा था कि कमीशन के नौ में से छह सदस्य रिपोर्ट से सहमत हैं. तीन असहमत सदस्यों में से दो सरकार के प्रतिनिधि है. रिपोर्ट में कहा गया था कि आंख के बदले आंख का सिद्धांत हमारे संविधान की बुनियादी भावना के खिलाफ है. बदले की भावना से न्यायिक तंत्र नहीं चल सकता.
लॉ कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि मौजूदा समय में दुनियाभर के 140 देशों में फांसी की सजा खत्म हो चुकी है. भारत में रेयरेस्ट ऑफ रेयर केस में फांसी की सजा देने की बात कही गई है, लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कई बार इस सिद्धांत का मनमाना इस्तेमाल हुआ है. लॉ कमिशन ने कहा था कि उम्रकैद की सजा विकल्प है और उम्रकैद का मतलब उम्रकैद होता है, हालांकि राज्य सरकार सजा में छूट दे सकती है लेकिन कई राज्यों में गंभीर अपराध के मामले में 30 से 60 साल बाद सजा में छूट का प्रावधान है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संवैधानिक पीठ का हवाला देते हुए कहा गया है कि संवैधानिक पीठ ने यह माना था कि जीवन के मौलिक अधिकारों में सम्मान से मरने का भी अधिकार है. ऐसे में फांसी सम्मान से मरने के अधिकार के खिलाफ है, इसे बदला जाना चाहिए. याचिका में ये भी कहा गया है कि अगस्त 2015 में लॉ कमीशन ने आतंकवाद और देश के खिलाफ युद्ध को छोड़कर सभी जुर्म के लिए सजा-ए-मौत को खत्म करने की वकालत की थी. अपनी सौंपी गई रिपोर्ट में कमीशन ने कहा था कि सिर्फ आतंकवाद और राष्ट्रद्रोह के मामलों में ही फांसी की सजा होनी चाहिए.
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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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