कोलकाता:
पश्चिम बंगाल के प्रमुख़ सरकारी पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल कॉलेज एसएसकेएम के निदेशक डॉ. प्रदीप मित्रा ने अस्पताल प्रशासन के सामने वॉलंटरी रिटायरमेंट की पेशकश की है। प्रदीप मित्रा ने ये पेशकश अपने ट्रांसफर के बाद की है।
डॉ. मित्रा का कहना है कि उन्हें बिना किसी ठोस वजह के अपमानित किया गया है, लेकिन इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि इसके पीछे की वजह पिछले 10 जून को अस्पताल में एक कुत्ते का डायलिसिस रोकना हो सकता है।
तृणमुल नेता का कुत्ता बीमार
कुत्ता तृणमूल कांग्रेस के नेता डॉ. निर्मल माझी का था, निर्मल माझी राज्य मेडिकल काउंसिल के प्रमुख़ भी हैं। कोलकाता में जानवरों के लिए मेडिकल डायलिसिस की सुविधा मौजूद नहीं है।
इस मामले की चर्चा जब मीडिया में शुरू हुई तब निर्मल माझी ने कहा था, 'वह एक प्यारा कुत्ता है और तकलीफ़ में है, तो उसका इलाज क्यों न हो?'
लेकिन मामले के तूल पकड़ने पर जब उनसे दोबारा संपर्क किया गया तब उन्होंने कहा, ‘मेरा किसी कुत्ते से कोई लेना-देना नहीं है। ये ख़बर मुझे बदनाम करने के लिए फैलाई जा रही है।‘
वीआईपी कुत्ता
बीमार कुत्ते को जब अस्पताल लाया गया था तब नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ राजन पांडेय के फोन पर ऑर्डर दिए जाने के बाद कुत्ते को लगभग अस्पताल में भर्ती करा लिया गया था।
डॉ. पांडेय ने डॉ मित्रा को एसएमएस भी भेजा, जिसमें लिखा था, "VIP dog dialysis required. Vet of govt hospital has approached me."
डॉ मित्रा के मुताबिक, ‘इसके तुंरत बाद अस्पताल की सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ अर्पिता रॉय चौधरी ने मुझसे कुत्ते की डायलिसिस के लिए संपर्क किया तो मुझे बेहद आश्चर्य हुआ।’
‘मैंने तुरंत इसे रोकने का आदेश दिया और पूछा कि ये किसके आदेश पर किया जा रहा है, तब मुझे बताया गया कि ये विभागाध्यक्ष के आदेश पर किया जा रहा है और लॉग बुक में भी रजिस्टर्ड है।'
अस्पताल प्रशासन ने भी अस्पताल के लॉग बुक में 10 जून की तारीख़ में 13 नंबर में, ‘एक बिना नाम के कुत्ते’ की एंट्री होने की बात कही है।
डॉ. मित्रा का ट्रांसफर
घटना के 13 दिनों के बाद 23 जून को डॉ मित्रा का ट्रांसफर कर दिया जाता है, हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, ये एक रूटीन ट्रांसफर है, लेकिन डॉ मित्रा का कहना है कि वो 33 साल से हेल्थ सर्विस में हैं और इस तरह का ट्रांसफर होना सामान्य नहीं है।
डॉ मित्रा कहते हैं, ‘ऐसे ट्रांसफर ऑर्डर्स तभी आते हैं जब कोई किसी तरह की बदतमीज़ी करता है या उसके खिलाफ शिकायतें होती हैं। मैनेजमेंट लाख़ कह दें कि ये एक रूटीन ट्रांसफर है लेकिन मैं जानता हूं कि ऐसा नहीं है।‘
मुख्य़मंत्री से शिकायत
प्रदीप मित्रा 7 सालों तक एसएसकेएम के निदेशक के पद पर रह चुके हैं। उन्होंने सरकार से इस मामले की जांच की मांग की है, लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया।
प्रदीप मित्रा से जब पूछा गया कि उन्होंने इस मामले की शिकायत मुख्य़मंत्री ममता बनर्जी से क्यों नहीं की तब उन्होंने कहा, ‘ये ट्रांसफर ऑर्डर उनकी मर्ज़ी के बग़ैर नहीं आ सकता था।' स्वास्थ्य मंत्रालय ममता बनर्जी ही संभालती हैं।
डॉ. मित्रा का कहना है कि उन्हें बिना किसी ठोस वजह के अपमानित किया गया है, लेकिन इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि इसके पीछे की वजह पिछले 10 जून को अस्पताल में एक कुत्ते का डायलिसिस रोकना हो सकता है।
तृणमुल नेता का कुत्ता बीमार
कुत्ता तृणमूल कांग्रेस के नेता डॉ. निर्मल माझी का था, निर्मल माझी राज्य मेडिकल काउंसिल के प्रमुख़ भी हैं। कोलकाता में जानवरों के लिए मेडिकल डायलिसिस की सुविधा मौजूद नहीं है।
इस मामले की चर्चा जब मीडिया में शुरू हुई तब निर्मल माझी ने कहा था, 'वह एक प्यारा कुत्ता है और तकलीफ़ में है, तो उसका इलाज क्यों न हो?'
लेकिन मामले के तूल पकड़ने पर जब उनसे दोबारा संपर्क किया गया तब उन्होंने कहा, ‘मेरा किसी कुत्ते से कोई लेना-देना नहीं है। ये ख़बर मुझे बदनाम करने के लिए फैलाई जा रही है।‘
वीआईपी कुत्ता
बीमार कुत्ते को जब अस्पताल लाया गया था तब नेफ्रोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ राजन पांडेय के फोन पर ऑर्डर दिए जाने के बाद कुत्ते को लगभग अस्पताल में भर्ती करा लिया गया था।
डॉ. पांडेय ने डॉ मित्रा को एसएमएस भी भेजा, जिसमें लिखा था, "VIP dog dialysis required. Vet of govt hospital has approached me."
डॉ मित्रा के मुताबिक, ‘इसके तुंरत बाद अस्पताल की सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ अर्पिता रॉय चौधरी ने मुझसे कुत्ते की डायलिसिस के लिए संपर्क किया तो मुझे बेहद आश्चर्य हुआ।’
‘मैंने तुरंत इसे रोकने का आदेश दिया और पूछा कि ये किसके आदेश पर किया जा रहा है, तब मुझे बताया गया कि ये विभागाध्यक्ष के आदेश पर किया जा रहा है और लॉग बुक में भी रजिस्टर्ड है।'
अस्पताल प्रशासन ने भी अस्पताल के लॉग बुक में 10 जून की तारीख़ में 13 नंबर में, ‘एक बिना नाम के कुत्ते’ की एंट्री होने की बात कही है।
डॉ. मित्रा का ट्रांसफर
घटना के 13 दिनों के बाद 23 जून को डॉ मित्रा का ट्रांसफर कर दिया जाता है, हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, ये एक रूटीन ट्रांसफर है, लेकिन डॉ मित्रा का कहना है कि वो 33 साल से हेल्थ सर्विस में हैं और इस तरह का ट्रांसफर होना सामान्य नहीं है।
डॉ मित्रा कहते हैं, ‘ऐसे ट्रांसफर ऑर्डर्स तभी आते हैं जब कोई किसी तरह की बदतमीज़ी करता है या उसके खिलाफ शिकायतें होती हैं। मैनेजमेंट लाख़ कह दें कि ये एक रूटीन ट्रांसफर है लेकिन मैं जानता हूं कि ऐसा नहीं है।‘
मुख्य़मंत्री से शिकायत
प्रदीप मित्रा 7 सालों तक एसएसकेएम के निदेशक के पद पर रह चुके हैं। उन्होंने सरकार से इस मामले की जांच की मांग की है, लेकिन अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया।
प्रदीप मित्रा से जब पूछा गया कि उन्होंने इस मामले की शिकायत मुख्य़मंत्री ममता बनर्जी से क्यों नहीं की तब उन्होंने कहा, ‘ये ट्रांसफर ऑर्डर उनकी मर्ज़ी के बग़ैर नहीं आ सकता था।' स्वास्थ्य मंत्रालय ममता बनर्जी ही संभालती हैं।
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