
राजस्थान के नागौर में एक दलित परिवार न्याय की गुहार लगा कर 41 दिन से धरने पर बैठा है। ज़मीन विवाद के चलते उन्हें 2 महीने पहले ज़िंदा जलाने की कोशिश की गई थी, लेकिन अब तक आरोपियों को पुलिस पकड़ नहीं पाई है।
मजबूर हो कर 50 साल का बाबू लाल मेघवाल अपने 7 साल के बेटे के साथ नागौर में जिला कलेक्टर के बंगले के सामने धरने पर बैठा गया है। 18 फ़रवरी की रात वो अपनी झोपड़ी में अपने बेटे और 80 साल की बूढ़ी मां के साथ सो रहा था। एक दम से उसने देखा कि झोपड़ी ने आग पकड़ ली है।
बाबू लाल मेघवाल ने बताया, 'जब आग लगी तो मैं उठा, मां को आवाज़ दी और बच्चे को भी जगाया, आग ज़्यादा लग गई, हम आगे दरवाज़े से निकले तो सामने वो खड़े थे, हमने देखा कि अगर हम बहार निकलते है तो ये 5 आदमी हमें जान से मार देंगे, तो फिर हम झोपड़ी के पीछे का हिस्सा तोड़ कर बहार निकल कर भागे। बाबू लाल और उसका पुत्र बच गए लेकिन बुरी तरह से झुलसने के कारन बुड्ढी मां ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया।
बाबू लाल की 6 बीघा ज़मीन को लेकर गांव के ही राईका जाती के कुछ लोगों से विवाद था। केस फिलहाल कोर्ट में चल रहा है, घूमन्तु राईका जाती के इन लोगों ने पहले भी बाबू लाल को धमकाया था, घटना के ठीक बाद FIR दर्ज होने के बावजूद पुलिस ने आरोपियों को नहीं पकड़ा जिसके चलते वो फरार हो गए। नागौर डिप्टी पुलिस अधीक्षक गोवर्धन लाल का कहना है कि 302 का मामला है, इसलिए जांच में समय लगा, लेकिन पुलिस प्रयास कर रही है कि मुलजिमों को जल्द गिरफ्तार किया जाए।'
एनडीटीवी के सवाल करने पर कि नामज़ाद मुलजिमों को पकड़ने में आखिर क्या मुश्किल है, उनका जवाब था कि मुलजिम घर पर नहीं हैं, अब इधर-उधर चले गए हैं।' 2013 में राजस्थान में दूसरे राज्यों के मुकाबले सबसे ज़्यादा दलित उत्पीड़न के मामले दर्ज हुए और ऐसे मामलों में कार्रवाई समय पर नहीं होने से राज्य का रिकॉर्ड और ख़राब साबित हो रहा है।
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