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This Article is From Jan 06, 2017

सिंबल का संघर्ष : चुनाव निशान बदलने पर भी जब इन दलों की चमकी किस्‍मत...

सिंबल का संघर्ष : चुनाव निशान बदलने पर भी जब इन दलों की चमकी किस्‍मत...
अतीत में भी कई चुनाव चिन्‍हों के मसले पर विवाद चुनाव आयोग पहुंचा है
नई दिल्‍ली: सपा में मचे घमासान और पार्टी के 'सिंबल' साइकिल पर दावेदारी के बीच चुनाव आयोग ने नौ जनवरी को दोनों ही पक्षों से दावे पेश करने को कहा है. यह भी माना जा रहा है कि कोई तात्‍कालिक निर्णय नहीं निकलने की स्थिति में
साइकिल सिंबल को आयोग मामले का हल निकलने तक फ्रीज भी कर सकता है.

ऐसे में दोनों ही पक्षों को अलग-अलग चुनाव चिन्‍हों पर चुनाव लड़ना होगा. मौजूदा परिस्थितियों के संदर्भ में यदि देखा जाए तो इससे पहले भी ऐसी सियासी परिस्थितियां उपजी हैं और दलों को अपने चुनाव निशानों में बदलाव करना पड़ा है और इसके बावजूद वे चुनाव जीतने में भी सफल हुए हैं.

इंदिरा गांधी का दौर...
आजादी के बाद शुरू के चार आम चुनावों में कांग्रेस का चुनाव चिन्‍ह ''दो बैलों की जोड़ी रहा.'' 1969 में इंदिरा गांधी के बढ़ते कद के बीच कांग्रेस में पहली बार विभाजन हुआ. पार्टी कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) में विभाजित हो गई. इंदिरा गांधी का गुट कांग्रेस (आर) के नाम से जाना गया. इस गुट ने कांग्रेस के चुनाव चिन्‍ह ' दो बैलों की जोड़ी' को अपनाने की कोशिश की लेकिन कांग्रेस (ओ) ने इसका विरोध किया.

नतीजतन कांग्रेस के सिंबल को फ्रीज कर दिया गया. इस वजह से इंदिरा गांधी को कांग्रेस का परंपरागत सिंबल नहीं मिल पाया. इसके चलते इंदिरा गांधी ने इससे मिलते-जुलते 'गाय और बछड़ा' चुनाव चिन्‍ह को चुना. उसके बाद 1971 के आम चुनावों में इसी चुनाव चिन्‍ह के साथ इंदिरा गांधी ने आम चुनावों में जबर्दस्‍त सफलता हासिल की.

जब कांग्रेस में दोबारा टूट हुई...
उसके बाद देश में आपातकाल (1975-77) के बाद जब 1977 में हुए चुनावों में पार्टी हार गई तो कांग्रेस में पनपे असंतोष के चलते पार्टी में एक बार फिर विभाजन हुआ. नतीजतन इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आई) का गठन किया. कांग्रेस आई को चुनाव चिन्‍ह 'पंजा' मिला. हालांकि पार्टी के समक्ष तब 'हाथी' और 'साइकिल' सिंबल अपनाने का विकल्‍प मौजूद था लेकिन पार्टी ने 'पंजा' सिंबल को तरजीह दी. 1980 के चुनाव में इस नए सिंबल के साथ इंदिरा गांधी चुनावी मैदान में उतरीं और चुनाव जीतकर सत्‍ता में लौटीं. उसके बाद से आज तक यही चुनाव चिन्‍ह कांग्रेस का है. बाद में बहुजन समाज पार्टी ने 1984 में 'हाथी' चिन्‍ह अपनाया और समाजवादी पार्टी ने 1992 में 'साइकिल' सिंबल को अपनाया. हालांकि यह भी सही है कि 1952 में सबसे पहले ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्‍लॉक (रुइकर) ने 'पंजा' चिन्‍ह पर चुनाव लड़ा था.

जनता पार्टी
1977 में नवगठित जनता पार्टी ने 'चक्र हलधर' सिंबल के साथ आम चुनाव लड़ा और जीतने पर मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. हालांकि पार्टी में ज्‍यादा दिनों तक एकजुटता नहीं रही और 1979 में विभाजन हो गया. बाद में जनता पार्टी के अन्‍य घटकों ने संगठित होकर 'चक्र' सिंबल पर चुनाव लड़ा.

'लालटेन' की रोशनी
1997 में जनता दल से अलग होकर लालू प्रसाद ने राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) का गठन किया और पार्टी को चुनाव चिन्‍ह 'लालटेन' मिला. पार्टी गठित होने के 10 महीनों के भीतर ही 1998 के आम चुनावों में पार्टी बिहार में 17 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही. उसके बाद 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी ने 124 सीटें जीतीं और सत्‍ता में तीसरी बार लगातार वापसी की.

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