केंद्रिय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
एम्स में भ्रष्टाचार की मामलों की जांच में केंद्र सरकार कटघरे में खड़ी है। दिल्ली हाइकोर्ट में केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी की ओर से दिए गए एक हलफनामे ने स्वास्थ्य मंत्रालय के दावों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
दिल्ली हाइकोर्ट को दिए हलफनामे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों के बारे में खुलासा करने से जांच में असर पड़ेगा, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ मामले सुनने वाली सीवीसी ने कोर्ट को इस बारे में एक मुकम्मल स्टेटस रिपोर्ट दी है।
सीवीसी ने कोर्ट को जो जानकारी दी है, उससे पता चलता है कि भ्रष्टाचार के बहुत से मामलों की जांच इसलिए अटकी है, क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से ज़रूरी कार्यवाही नहीं की जा रही। भ्रष्टाचार के इन मामलों में हिमाचल काडर के आईएएस अधिकारी विनीत चौधरी का नाम भी है जो एम्स में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन रह चुके हैं और अभी वह हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव हैं। सीवीसी की ओर से कोर्ट को दी गई जानकारी के मुताबिक चौधरी के खिलाफ जांच खुद केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री जे पी नड्डा के हरी झंडी न देने की वजह से जांच रुकी है।
गौरतलब है कि एक संस्था सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों से केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री जे पी नड्डा को खुद को अलग कर लेना चाहिए, क्योंकि एक सांसद के तौर पर उन्होंने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से इन मामलों की जांच रोकने को कहा था। याचिका में ये भी मांग की गई थी कि सीबीआई और सीवीसी से इन मामलों की शीघ्र जांच के लिये कहा जाए।
आपको बता दें कि एम्स के पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी ने संस्थान में भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए जिनकी जांच में ढिलाई को लेकर मामला अदालत तक पहुंचा। पिछले दिनों दिल्ली हाइकोर्ट ने स्वास्थ्यमंत्री जे पी नड्डा को निजी हैसियत में नोटिस जारी किया था।
नड्डा के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय, सीवीसी, सीबीआई, एम्स के निदेशक और संजीव चतुर्वेदी को भी नोटिस भेजे गए। जहां स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों के ताजा स्टेटस की जानकारी देने से जांच प्रभावित होगी। वहीं सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट में 21 मामलों के बारे में तफ्सील से जानकारी दी है और हर मामले का स्टेटस भी बताया है।
केंद्र में पिछले साल नई सरकार बनने के बाद संजीव चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटा दिया गया, जिससे काफी विवाद खड़ा हुआ था। एनडीटीवी इंडिया ने आपको ख़बर दिखाई थी कि उस वक्त बतौर सांसद जे पी नड्डा ने न सिर्फ चतुर्वेदी को हटाने के लिए स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को चिट्ठियां लिखी, बल्कि यह भी कहा कि एम्स में भ्रष्टाचार के उन मामलों की जांच रोकी जाए, जो चतुर्वेदी ने उजागर किए हैं। नड्डा ने केंद्र सरकार को एम्स में अपनी पसंद के नए सीवीओ का नाम भी सुझाया था।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोर्ट को दिए हलफनाम में कहा है कि चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटाए जाने से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में कोई असर नहीं पड़ा है। उधर नड्डा ने कोर्ट से कहा है कि उन्होंने एक सांसद की हैसियत से एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों को रिव्यू करने के लिए कहा, क्योंकि चतुर्वेदी की नियुक्ति ही सीवीओ पद पर गलत थी। नड्डा ने यह भी कहा कि उनका विनीत चौधरी के साथ कोई संबंध नहीं है और वह एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच को प्रभावित करने की कोशिश नहीं कर रहे।
दिल्ली हाइकोर्ट को दिए हलफनामे में स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों के बारे में खुलासा करने से जांच में असर पड़ेगा, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ मामले सुनने वाली सीवीसी ने कोर्ट को इस बारे में एक मुकम्मल स्टेटस रिपोर्ट दी है।
सीवीसी ने कोर्ट को जो जानकारी दी है, उससे पता चलता है कि भ्रष्टाचार के बहुत से मामलों की जांच इसलिए अटकी है, क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से ज़रूरी कार्यवाही नहीं की जा रही। भ्रष्टाचार के इन मामलों में हिमाचल काडर के आईएएस अधिकारी विनीत चौधरी का नाम भी है जो एम्स में डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन रह चुके हैं और अभी वह हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव हैं। सीवीसी की ओर से कोर्ट को दी गई जानकारी के मुताबिक चौधरी के खिलाफ जांच खुद केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री जे पी नड्डा के हरी झंडी न देने की वजह से जांच रुकी है।
गौरतलब है कि एक संस्था सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों से केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री जे पी नड्डा को खुद को अलग कर लेना चाहिए, क्योंकि एक सांसद के तौर पर उन्होंने पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से इन मामलों की जांच रोकने को कहा था। याचिका में ये भी मांग की गई थी कि सीबीआई और सीवीसी से इन मामलों की शीघ्र जांच के लिये कहा जाए।
आपको बता दें कि एम्स के पूर्व सीवीओ संजीव चतुर्वेदी ने संस्थान में भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर किए जिनकी जांच में ढिलाई को लेकर मामला अदालत तक पहुंचा। पिछले दिनों दिल्ली हाइकोर्ट ने स्वास्थ्यमंत्री जे पी नड्डा को निजी हैसियत में नोटिस जारी किया था।
नड्डा के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय, सीवीसी, सीबीआई, एम्स के निदेशक और संजीव चतुर्वेदी को भी नोटिस भेजे गए। जहां स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों के ताजा स्टेटस की जानकारी देने से जांच प्रभावित होगी। वहीं सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट में 21 मामलों के बारे में तफ्सील से जानकारी दी है और हर मामले का स्टेटस भी बताया है।
केंद्र में पिछले साल नई सरकार बनने के बाद संजीव चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटा दिया गया, जिससे काफी विवाद खड़ा हुआ था। एनडीटीवी इंडिया ने आपको ख़बर दिखाई थी कि उस वक्त बतौर सांसद जे पी नड्डा ने न सिर्फ चतुर्वेदी को हटाने के लिए स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को चिट्ठियां लिखी, बल्कि यह भी कहा कि एम्स में भ्रष्टाचार के उन मामलों की जांच रोकी जाए, जो चतुर्वेदी ने उजागर किए हैं। नड्डा ने केंद्र सरकार को एम्स में अपनी पसंद के नए सीवीओ का नाम भी सुझाया था।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोर्ट को दिए हलफनाम में कहा है कि चतुर्वेदी को एम्स के सीवीओ पद से हटाए जाने से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच में कोई असर नहीं पड़ा है। उधर नड्डा ने कोर्ट से कहा है कि उन्होंने एक सांसद की हैसियत से एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों को रिव्यू करने के लिए कहा, क्योंकि चतुर्वेदी की नियुक्ति ही सीवीओ पद पर गलत थी। नड्डा ने यह भी कहा कि उनका विनीत चौधरी के साथ कोई संबंध नहीं है और वह एम्स में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच को प्रभावित करने की कोशिश नहीं कर रहे।
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