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This Article is From Oct 19, 2020

कोरोना से बुरी तरह प्रभावित रहे धारावी में लौटने लगे लोग लेकिन नहीं है पहले जैसा काम..

महानगर मुम्बई के घनी आबादी वाले धारावी इलाके में जब भी किसी संगठन की ओर से खाना या राशन बांटा जाता है, लोग की भीड़ लग जाती है. लॉकडॉउन के बाद से ही धारावी के कई लोगों के पास काम नहीं है.

कोरोना से बुरी तरह प्रभावित रहे धारावी में लौटने लगे लोग लेकिन नहीं है पहले जैसा काम..
कोरोना से बुरी तरह प्रभावित रहे धारावी में केसों की संख्‍या में कमी आई है (प्रतीकात्‍मक फोटो)
मुंंबई:

Covid-19 Pandemic: कोरोना वायरस लॉकडाउन (CoronaVirus Lockdown) के समय अपने गांव की ओर प्रवास करने वाले मजदूर अब धारावी (Dharavi) में दोबारा लौट रहे हैं.. पर न ही पहले जैसा काम है और न ही पैसा. ऐसे में स्थानीय लोग एक-दूसरे की मदद करते नज़र आ रहे हैं और इसी सहयोग से धारावी में कोरोना के मामलों (Corona cases In Dharavi) में कमी लाने की भी कोशिश की जा रही है. महानगर मुम्बई के घनी आबादी वाले धारावी इलाके में जब भी किसी संगठन की ओर से खाना या राशन बांटा जाता है, लोग की भीड़ लग जाती है. लॉकडाउन के बाद से ही धारावी के कई लोगों के पास काम नहीं है.सिलाई का काम करने वाले मोहम्मद फारुख लॉकडाउन के समय मजबूरी में गांव लौट गए थे. अब लौटे हैं लेकिन काम काफी कम है. ऐसे में इस तरह से मिलने वाली मदद से उनका कुछ पैसा बच जाता है..

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फारुख बताते हैं, 'पैसे उधार लेकर ट्रक से गांव गए थे. रास्ते में बहुत दिक्कत हुई थी. अभी भी काम नहीं है और उधारी बढ़ रही है.' फारुख जैसा ही हाल जन्नतुल निषाद का है. यह खाना बनाने का काम करती हैं पर अब कोई खाना खाने नहीं आता. स्थानीय लोगों और संगठन की ओर से इन्हें खाना और राशन दिया जा रहा है जिसके वजह से मुश्किल से घर चल जाता है. वे कहती हैं, 'बहुत परेशानी हुई थी, थोड़ा बहुत राशन मिला था उसी से चल रहा है, अभी भी खाने वाले दो-चार लोग ही हैं. 5 हज़ार रुपये घर का किराया है. परेशानी अब भी है. 

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गौरतलब है कि कोरोना महामारी की शुरुआत के समय तेज़ी से बढ़ रहे मामलों के कारण धारावी सुर्खियों में रहा पर इलाके में कोरोना के मामलों को कम करने में स्थानीय मौलवियों का बड़ा हाथ रहा है. मुस्लिम बहुल इलाकों में मौलवी घूमघूमकर लोगों से कोरोना के बचाव के लिए बने सभी नियमों का पालन करने की अपील करते हैं, जिसका असर भी देखने मिल रहा है. स्थानीय मौलवी मजदूब अंसारी ने बताया, 'हम लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं कि इस बीमारी को समझो, इससे हमें लड़ना है नहीं तो बड़े पैमाने में हमें परेशानी होगी.' मौलवियों के ज‍रिये लोगों तक बचाव का संदेश पहुंचाने की पहल के अच्‍छे परिणाम मिमिले हैं. भामला फाउंडेशन के अध्‍यक्ष आसिफ भामला कहते हैं कि शुरू में हमने 10 मौलवियों की टीम शुरू की और देखा कि  बुजुर्ग इनकी बात समझ रहे थे और अहमियत दे रहे थे. पॉजिटिव रिस्‍पॉन्‍स देखकर धीरे-धीरे हमने टीम को बढ़ाया और अच्‍छा बदलाव देखने मिला है.

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