
पुलिस हिरासत में संजीव खन्ना (फाइल फोटो)
मुंबई:
अजीबों गरीब रिश्तों के पेच में उलझे शीना हत्याकांड में फंसा संजीव खन्ना क्या अपराध बोध से ग्रस्त है ?
संजीव खन्ना रिश्ते में शीना का सौतेला पिता है और आरोप है कि सगी माँ इन्द्राणी के साथ मिलकर उसने शीना का क़त्ल किया है। शुक्रवार को मुंबई पुलिस आयुक्त राकेश मारिया ने दावा किया कि संजीव खन्ना ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है ।
(संजीव खन्ना के फेसबुक वॉल से)
हत्या के ठीक एक महीने बाद यानी 24 मई 2012 को संजीव खन्ना के एफ बी पोस्ट से इस बात का आभास मिलता है कि वो अंदर से डरा हुआ और परेशान था।
संजीव खन्ना ने 24 मई 2012 को बड़े ही दार्शनिक अंदाज में लिखा था कि आप कभी नहीं बताते कि लोग क्या सोचते है या अनुभव करते हैं? जब तक कि सामने वाला आपको खुद नहीं बताये।अमूमन लोग झूठ बोलते हैं । और आप अगर उनसे पूछेंगे कि क्या गलत हुआ तो कहेंगे कुछ नहीं।आप आसानी से मान भी जाते हैं क्योंकि वो सच के तह तक जाने से आसान होता है।
लोग तब मुस्कुराते हैं जब वो रोना चाहते हैं।वो दिखाते हैं कि कुछ भी गलत नहीं हुआ है क्योंकि वो सच का सामना नहीं करना चाहते।चीजें हमेशा अच्छी और खूबसूरत नहीं होती। इसलिए जब आप रोना चाहे तो रोये ।चिल्लाना चाहें तो चिल्लाये। बनावटी मुश्कान में छिपाएं नहीं। सब कुछ अच्छा नहीं होना बुरी बात नहीं है।
संजीव खन्ना के इस दार्शनिक पोस्ट पर उनके फेस बुक मित्रो ने " काका ज्ञान और खूब बोला काका " जैसी टिप्पणियाँ की तब संजीव खन्ना ने जवाब में लिखा था "सच नंगा चल सकता है । लेकिन झूठ को परदे की जरुरत पड़ती है।"
अब सवाल है शीना की हत्या के ठीक एक महीने बाद सच -झूठ , दुःख और आनंद की बात लिखना महज संयोग था या संजीव खन्ना को उनका अपराध बोध परेशान कर रहा था। जिसे वो इस अंदाज में बया कर अपना मन हल्का कर रहे थे?
उसके बाद के पोस्ट में भी संजीव खन्ना ने कर्म से जुडी कई बाते पोस्ट की है। संजीव खन्ना फ़िलहाल खार पुलिस की हिरासत में हैं।
संजीव खन्ना रिश्ते में शीना का सौतेला पिता है और आरोप है कि सगी माँ इन्द्राणी के साथ मिलकर उसने शीना का क़त्ल किया है। शुक्रवार को मुंबई पुलिस आयुक्त राकेश मारिया ने दावा किया कि संजीव खन्ना ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है ।

हत्या के ठीक एक महीने बाद यानी 24 मई 2012 को संजीव खन्ना के एफ बी पोस्ट से इस बात का आभास मिलता है कि वो अंदर से डरा हुआ और परेशान था।
संजीव खन्ना ने 24 मई 2012 को बड़े ही दार्शनिक अंदाज में लिखा था कि आप कभी नहीं बताते कि लोग क्या सोचते है या अनुभव करते हैं? जब तक कि सामने वाला आपको खुद नहीं बताये।अमूमन लोग झूठ बोलते हैं । और आप अगर उनसे पूछेंगे कि क्या गलत हुआ तो कहेंगे कुछ नहीं।आप आसानी से मान भी जाते हैं क्योंकि वो सच के तह तक जाने से आसान होता है।
लोग तब मुस्कुराते हैं जब वो रोना चाहते हैं।वो दिखाते हैं कि कुछ भी गलत नहीं हुआ है क्योंकि वो सच का सामना नहीं करना चाहते।चीजें हमेशा अच्छी और खूबसूरत नहीं होती। इसलिए जब आप रोना चाहे तो रोये ।चिल्लाना चाहें तो चिल्लाये। बनावटी मुश्कान में छिपाएं नहीं। सब कुछ अच्छा नहीं होना बुरी बात नहीं है।

संजीव खन्ना के इस दार्शनिक पोस्ट पर उनके फेस बुक मित्रो ने " काका ज्ञान और खूब बोला काका " जैसी टिप्पणियाँ की तब संजीव खन्ना ने जवाब में लिखा था "सच नंगा चल सकता है । लेकिन झूठ को परदे की जरुरत पड़ती है।"
अब सवाल है शीना की हत्या के ठीक एक महीने बाद सच -झूठ , दुःख और आनंद की बात लिखना महज संयोग था या संजीव खन्ना को उनका अपराध बोध परेशान कर रहा था। जिसे वो इस अंदाज में बया कर अपना मन हल्का कर रहे थे?
उसके बाद के पोस्ट में भी संजीव खन्ना ने कर्म से जुडी कई बाते पोस्ट की है। संजीव खन्ना फ़िलहाल खार पुलिस की हिरासत में हैं।
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