यह ख़बर 15 अप्रैल, 2013 को प्रकाशित हुई थी

आडवाणी मंज़ूर, मोदी नहीं... यह कैसा सेक्युलरिज्म?

खास बातें

  • बीजेपी को नीतीश के भाषण से भले ही परेशानी हो रही हो लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बाकी पार्टियां उनके बयानों का स्वागत कर रही हैं।
नई दिल्ली:

बीजेपी को नीतीश के भाषण से भले ही परेशानी हो रही हो लेकिन ऐसा भी नहीं है कि बाकी पार्टियां उनके बयानों का स्वागत कर रही हैं।

नीतीश कुमार ने अपने भाषण में एक तरफ़ जहां बिना नाम लिए नरेंद्र मोदी पर चोट की वहीं बीजेपी से रिश्ते क़ायम रखने और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेताओं की तारीफ़ों के पुल भी बांधे।

गठबंधन का धर्म निभाने के साथ-साथ मोदी से दूरी बनाने की इसी बात पर कांग्रेस ने चोट की।

कांग्रेस के प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा, 'मुझे नीतीश का यह तर्क समझ में नहीं आता कि आडवाणी किस तरह से सेक्युलर हैं… उनके मंत्रिमंडल में पांच आरएसएस वाले हैं तो वह सेक्युलर होने का दावा कैसे कर सकते हैं।

नीतीश की सिर्फ़ एक शख़्स को निशाना बनाने की अदा सीपीएम को भी पसंद नहीं आई।

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सीपीएम नेता बृंदा करात ने कहा, 'सारी पार्टियों की तरह जेडीयू को भी अपना फ़ैसला करने का अधिकार है लेकिन धमर्निरपेक्षता का परचम बस एक शख़्स का विरोध करके नहीं किया जा सकता। नीतीश कुमार को बीजेपी के साथ मिलकर सरकार भी चलानी है और वोट पाने के लिए मोदी से दूरी भी बनाए रखनी है। इसलिए उनके बयानों में इस तरह का विरोधाभास झलक ही जाता है।