नई दिल्ली:
कोयला घोटाले पर सीबीआई के निदेशक रंजीत सिन्हा द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे के बाद चारों तरफ से कानूनमंत्री अश्विनी कुमार के इस्तीफे की मांग के बावजूद सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि कानूनमंत्री के इस्तीफे का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है। वहीं, पीएम के इस्तीफे की बीजेपी की मांग पर संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने संवाददाताओं से कहा कि बीजेपी हर बात पर पीएम से इस्तीफा मांगती रहती है और यह उसकी आदत सी हो गई है... वह (बीजेपी) चुनाव जीतकर आए और फिर बात करे। प्रधानमंत्री ने यूपीए के सभी अहम घटक दलों से इस मुद्दे पर बातचीत कर आगे की रणनीति पर चर्चा की है।
उल्लेखनीय है कि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि कोयला घोटाले की जांच की स्थिति रिपोर्ट कानूनमंत्री अश्विनी कुमार की इच्छा के अनुरूप उनसे साझा की गई और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तथा कोयला मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इसे देखा था।
न्यायालय के निर्देश पर रंजीत सिन्हा का दो पेज का हलफनामा इस मामले की सुनवाई की पिछली तारीख पर जांच एजेंसी के वकील द्वारा किए गए दावे से एकदम विपरीत है। सीबीआई के वकील ने दावा किया था कि कोयला घोटाले की स्थिति रिपोर्ट सरकार के किसी सदस्य के साथ साझा नहीं की गई है।
हलफनामे में कहा गया है, "मेरा कहना है कि इसका मसौदा (स्थिति रिपोर्ट) शीर्ष न्यायालय में सौंपे जाने से पहले कानूनमंत्री की इच्छा के अनुरूप उनसे (कुमार से) साझा की गई... यह पीएमओ और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के एक-एक अधिकारी से भी साझा की गई, जैसी कि उन्होंने इच्छा जताई थी।" अब इस मामले की सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।
सीबीआई निदेशक के हलफनामे के बारे में पत्रकारों के सवाल के जवाब में कानूनमंत्री अश्विनी कुमार कुछ भी नहीं बोले और चुपचाप निकल गए। हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि सच की जीत होगी। संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे को लेकर आज जमकर हंगामा हुआ, जिसके चलते दोनों सदनों की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा। बीजेपी ने अपने हमले तेज करते हुए कहा है कि सीबीआई निदेशक के हलफनामे के बाद सरकार बेनकाब हो गई है।
बीजेपी ने कहा है कि सीबीआई निदेशक द्वारा दायर हलफनामे से यह साफ हो जाता है कि कानूनमंत्री अश्विनी कुमार ने रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ की। बीजेपी ने प्रधानमंत्री और कोयला मंत्री के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि घोटाले की निष्पक्ष जांच को प्रभावित करने की कोशिश की गई और यह जानना बेहद जरूरी है कि सीबीआई की असली स्टेटस रिपोर्ट क्या थी।
कोर्ट को पिछले महीने दी अपनी रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि सरकार ने कंपनियों के वित्तीय और दूसरे रिकार्ड्स को सही से नहीं देखा था, जिस वजह से सरकार को इसके लाइसेंस बंटवारे में घाटा हुआ। सरकार की मुश्किलें इसलिए भी हैं, क्योंकि जिस समय का यह मामला है उस दौरान कोयला मंत्रालय का प्रभार खुद प्रधानमंत्री के पास था।
उल्लेखनीय है कि सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि कोयला घोटाले की जांच की स्थिति रिपोर्ट कानूनमंत्री अश्विनी कुमार की इच्छा के अनुरूप उनसे साझा की गई और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) तथा कोयला मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इसे देखा था।
न्यायालय के निर्देश पर रंजीत सिन्हा का दो पेज का हलफनामा इस मामले की सुनवाई की पिछली तारीख पर जांच एजेंसी के वकील द्वारा किए गए दावे से एकदम विपरीत है। सीबीआई के वकील ने दावा किया था कि कोयला घोटाले की स्थिति रिपोर्ट सरकार के किसी सदस्य के साथ साझा नहीं की गई है।
हलफनामे में कहा गया है, "मेरा कहना है कि इसका मसौदा (स्थिति रिपोर्ट) शीर्ष न्यायालय में सौंपे जाने से पहले कानूनमंत्री की इच्छा के अनुरूप उनसे (कुमार से) साझा की गई... यह पीएमओ और कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के एक-एक अधिकारी से भी साझा की गई, जैसी कि उन्होंने इच्छा जताई थी।" अब इस मामले की सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।
सीबीआई निदेशक के हलफनामे के बारे में पत्रकारों के सवाल के जवाब में कानूनमंत्री अश्विनी कुमार कुछ भी नहीं बोले और चुपचाप निकल गए। हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि सच की जीत होगी। संसद के दोनों सदनों में इस मुद्दे को लेकर आज जमकर हंगामा हुआ, जिसके चलते दोनों सदनों की कार्यवाही को स्थगित करना पड़ा। बीजेपी ने अपने हमले तेज करते हुए कहा है कि सीबीआई निदेशक के हलफनामे के बाद सरकार बेनकाब हो गई है।
बीजेपी ने कहा है कि सीबीआई निदेशक द्वारा दायर हलफनामे से यह साफ हो जाता है कि कानूनमंत्री अश्विनी कुमार ने रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ की। बीजेपी ने प्रधानमंत्री और कोयला मंत्री के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि घोटाले की निष्पक्ष जांच को प्रभावित करने की कोशिश की गई और यह जानना बेहद जरूरी है कि सीबीआई की असली स्टेटस रिपोर्ट क्या थी।
कोर्ट को पिछले महीने दी अपनी रिपोर्ट में सीबीआई ने कहा था कि सरकार ने कंपनियों के वित्तीय और दूसरे रिकार्ड्स को सही से नहीं देखा था, जिस वजह से सरकार को इसके लाइसेंस बंटवारे में घाटा हुआ। सरकार की मुश्किलें इसलिए भी हैं, क्योंकि जिस समय का यह मामला है उस दौरान कोयला मंत्रालय का प्रभार खुद प्रधानमंत्री के पास था।
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