सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केन्द्रीय सूचना आयोग (CIC)और राज्य सूचना आयोगों (SIC) की रिक्तियां भरने के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि पदों के खाली होने से दो महीने पहले ही उन्हें भरने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाए. न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी और न्यायमूर्ति एस.ए.नजीर की बेंच ने कहा कि मुख्य सूचना आयुक्त, उच्च पदाधिकारी हैं और उनकी नियुक्ति प्रक्रिया मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति जैसी ही होनी चाहिए. कोर्ट ने सीआईसी और राज्य सूचना आयोगों की रिक्तियों पर भी संज्ञान लिया और छह महीने के भीतर उन्हें भरने का निर्देश दिया. सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों पर संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने कहा कि सीआईसी में सूचना आयुक्तों के तौर पर नियुक्तियों के लिए केन्द्र नौकरशाहों के अलावा अन्य क्षेत्रों के प्रमुख लोगों के नाम पर भी विचार करे.
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कोर्ट ने कहा कि सरकार सिर्फ सरकारी अधिकारियों को ही सूचना आयुक्त नहीं बना सकती. गुड गवर्नेंस के लिए पारदर्शिता का होना जरूरी है. सीआईसी का स्टेटस सीईसी की तरह होना चाहिए. जोकि सरकार के नियंत्रण से बाहर होना चाहिए. सर्च कमेटी के लिए शार्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के का एक पैमाना होना चाहिए. जहां अधिकारियों को शॉर्ट लिस्ट किया जाए और फिर उनकी सूची को सार्वजनिक किया जाए. इससे पहले 13 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि इन नियुक्तियों की प्रक्रिया में पारदर्शी तरीका अपनाया जाना चाहिए. जस्टिस एके सीकरी की पीठ ने कहा कि आखिरकार ये सब पारदर्शिता के लिए ही किया जा रहा है. सरकार को चयनित उम्मीदवारों की सूची वेबसाइट पर डालनी चाहिए. साथ ही केंद्र सुनिश्चित करे कि कानून के तहत नियम और शर्तें पूरी की गई हैं. पीठ ने कहा इनका विज्ञापन भी जारी करना चाहिए.
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इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार पर भी सवाल उठाए थे. पीठ ने पूछा था कि कितने आरटीआई आवेदन दायर किए गए और कितने लंबित हैं. कितने समय से ये लंबित हैं ये 3 हफ्तों के भीतर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की जाए. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में आरटीआई एक्टिविस्ट याचिकाकर्ता अंजली भारद्वाज ने केंद्र सरकार पर आरटीआई को खत्म करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार नियुक्तियों को लेकर पारदर्शिता नहीं बरत रही है.
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