पीपी पांडे (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
इशरत जहां एनकाउंटर मामले में गुजरात के पूर्व आईपीएस अधिकारी पीपी पांडे को सीबीआई की कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. अहमदाबाद की सीबीआई कोर्ट ने पीपी पांडेय को इशरत जहां एन्काउन्टर मामले में डिस्चार्ज कर दिया है. अहमदाबाद की एक सीबीआई अदालत ने बुधवार को कहा कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले में गुजरात के पूर्व पुलिस चीफ पीपी पांडे पर आरोप नहीं लगाए जाएंगे.
गौरतलब है कि पीपी पांडे पर अन्य पूर्व पुलिस अधिकारियों के साथ केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई द्वारा इशरत जहां मामले में साजिश, अवैध रूप से कारावास और हत्या के आरोप थे. पीपी पांडे इस मामले में पहले आरोपी हैं जिन्हें कोर्ट ने डिस्चार्ज कर दिया है. 15 फरवरी 2015 में मिली जमानत से पहले उन्होंने 19 महीने जेल में बिताया है.
बता दें कि 19 वर्षीय इशरत जहां और तीन लोग 2004 में फर्जी एनकाउंटर में मार दिये गये थे. गुजरात पुलिस ने उस वक्त कहा था कि मारे गये लोग लश्कर के आतंकी थे और वे लोग तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना चाहते थे.
पीपी पांडे अभी जमानत पर बाहर हैं. उन्होंने डिस्चार्ज की याचिका दाखिल की थी. उन्होंने अपनी याचिका में बहस के दौरान यह तर्क दिया था कि उनके खिलाफ दो गवाहों के बयान विरोधाभासी हैं. उन्होंने पुलिस बल में अपनी बहाली और पुलिस महानिदेशक के रूप में पदोन्नति के लिए भी कहा था.
अदालत ने यह भी कहा कि पांडे सरकारी सेवक थे लेकिन सीआरपीसी की धारा 197 के अनुसार उनके विरुद्ध आरोपपत्र दायर करने से पहले जांच अधिकारी ने सरकार से उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं ली. सीबीआई ने 2013 में अपना पहला आरोपपत्र दायर कर आईपीएस अधिकारी पी पी पांडे, डी जी वंजारा और जी एल सिंहल समेत गुजरात पुलिस के सात अधिकारियों पर नामजद किया था और उन पर अपहरण, हत्या एवं साजिश का आरोप लगाया था.
सीबीआई ने पूरक आरोपपत्र में आईबी के विशेष निदेशक राजिंदर कुमार और अधिकारी एम एस सिन्हा समेत उसके चार अधिकारियों को नामित किया था. इस पर केंद्र की मंजूरी की अब भी इंतजार है. अहमदाबाद अपराध शाखा के अधिकारियों ने 15 जून, 2004 को शहर के बाहरी इलाके में महाराष्ट्र के मुम्ब्रा की 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा इशरत जहां, उसके दोस्त जावेद शेख उर्फ प्रणेश, जीशान जोहर और अमजद राणा को कथित फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था.
गौरतलब है कि पीपी पांडे पर अन्य पूर्व पुलिस अधिकारियों के साथ केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई द्वारा इशरत जहां मामले में साजिश, अवैध रूप से कारावास और हत्या के आरोप थे. पीपी पांडे इस मामले में पहले आरोपी हैं जिन्हें कोर्ट ने डिस्चार्ज कर दिया है. 15 फरवरी 2015 में मिली जमानत से पहले उन्होंने 19 महीने जेल में बिताया है.
बता दें कि 19 वर्षीय इशरत जहां और तीन लोग 2004 में फर्जी एनकाउंटर में मार दिये गये थे. गुजरात पुलिस ने उस वक्त कहा था कि मारे गये लोग लश्कर के आतंकी थे और वे लोग तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना चाहते थे.
पीपी पांडे अभी जमानत पर बाहर हैं. उन्होंने डिस्चार्ज की याचिका दाखिल की थी. उन्होंने अपनी याचिका में बहस के दौरान यह तर्क दिया था कि उनके खिलाफ दो गवाहों के बयान विरोधाभासी हैं. उन्होंने पुलिस बल में अपनी बहाली और पुलिस महानिदेशक के रूप में पदोन्नति के लिए भी कहा था.
अदालत ने यह भी कहा कि पांडे सरकारी सेवक थे लेकिन सीआरपीसी की धारा 197 के अनुसार उनके विरुद्ध आरोपपत्र दायर करने से पहले जांच अधिकारी ने सरकार से उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं ली. सीबीआई ने 2013 में अपना पहला आरोपपत्र दायर कर आईपीएस अधिकारी पी पी पांडे, डी जी वंजारा और जी एल सिंहल समेत गुजरात पुलिस के सात अधिकारियों पर नामजद किया था और उन पर अपहरण, हत्या एवं साजिश का आरोप लगाया था.
सीबीआई ने पूरक आरोपपत्र में आईबी के विशेष निदेशक राजिंदर कुमार और अधिकारी एम एस सिन्हा समेत उसके चार अधिकारियों को नामित किया था. इस पर केंद्र की मंजूरी की अब भी इंतजार है. अहमदाबाद अपराध शाखा के अधिकारियों ने 15 जून, 2004 को शहर के बाहरी इलाके में महाराष्ट्र के मुम्ब्रा की 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा इशरत जहां, उसके दोस्त जावेद शेख उर्फ प्रणेश, जीशान जोहर और अमजद राणा को कथित फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया था.
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