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कैग ने कहा कि 2009-10 में इस कार्यक्रम के जरिये 283.59 करोड़ व्यक्ति दिन के रोजगार का सृजन हुआ था, जो 2011-12 में घटकर 216.34 करोड़ व्यक्ति दिन रह गया।
ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा 2006 में शुरू किए गए कार्यक्रम की आडिट के आधार पर कैग ने यह भी पाया कि 4,070 करोड़ रुपये के काम एक से पांच साल की अवधि के बाद भी लंबित थे। कैग ने कहा कि 2009-10 में इस कार्यक्रम के जरिये 283.59 करोड़ व्यक्ति दिन के रोजगार का सृजन हुआ था, जो 2011-12 में घटकर 216.34 करोड़ व्यक्ति दिन रह गया। इसके अलावा कार्य के पूर्ण होने की रफ्तार में भी इस दौरान उल्लेखनीय गिरावट आई।
संसद में आज पेश रिपोर्ट में कहा गया है, मंत्रालय द्वारा धन जारी करने की मंजूरी के मामले में कई प्रकार की खामियां मिलीं। कई ऐसे मामले सामने आए जबकि मंत्रालय ने मांग से भी अधिक अनुदान जारी कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010-11 में वास्तव में मंत्रालय ने धन जारी करने संबंधी सभी शर्तों (सिर्फ इस्तेमाल के प्रमाणपत्र को छोड़कर) में ढील दी। मंत्रालय ने इस फैसले के लिए कोई आधार नहीं बताया।
इसमें कहा गया है कि अकेले मार्च, 2011 में 1,960.45 करोड़ रुपये जारी किए गए, जबकि इसमें किसी प्रकार के वित्तीय नियंत्रण का इस्तेमाल नहीं किया गया।
कैग ने सरकार से कहा है कि वह इस योजना के उचित तरीके से क्रियान्वयन के लिए निर्णायक कदम उठाए। सरकारी आडिटर ने कहा, सरकार को गहन निगरानी और आकलन प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। मनरेगा के क्रियान्वयन का विश्लेषण करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया कि 2,252.43 करोड़ रुपये के 1,02,100 ऐसे कार्य किए गए, जिसकी मंजूरी नहीं ली गई थी।
इनमें कच्ची सड़क का निर्माण, सीमेंट कंक्रीट की सड़क, मवेशियों के लिए चबूतरे का निर्माण तथा स्नान घाट शामिल हैं। मनरेगा के क्रियान्वयन का प्रदर्शन आडिट कैग ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के आग्रह पर किया है। आडिट की अवधि अप्रैल, 2007 से मार्च, 2012 रही।
कैग ने कहा कि मनरेगा के तहत किए गए कार्यों में अनियमितताएं देखने को मिलीं। कैग ने 28 राज्यों और चार संघ शासित प्रदेशों की 3,848 ग्राम पंचायतों में कार्यक्रम के क्रियान्वयन की जांच की। सरकारी आडिटर ने कहा है कि काफी समय होने के बावजूद 4,070.76 करोड़ रुपये का कार्य अभी भी पूरा नहीं हो पाया है।
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