बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती ने हाथी की प्रतिमाओं पर पैसा खर्च करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपना हलफनामा दाखिल किया है. बीएसपी सुप्रीमो (Mayawati) ने शहरों में अपने द्वारा बनाई गई मूर्तियों की स्थापना को सही ठहराया और कहा कि मूर्तियां लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती हैं. मायावती ने कहा कि राज्य की विधानसभा की इच्छा का उल्लंघन कैसे करूं? इन प्रतिमाओं के माध्यम से विधानमंडल ने दलित नेता के प्रति आदर व्यक्त किया है. मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए उनकी तरफ से इन मूर्तियों के लिए बजट का उचित आवंटन किया गया था.
मायावती ने इसके साथ ही कहा कि यह पैसा शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए या अस्पताल पर यह एक बहस का सवाल है और इसे अदालत द्वारा तय नहीं किया जा सकता है. लोगों को प्रेरणा दिलाने के लिए स्मारक बनाए गए थे. इन स्मारकों में हाथियों की मूर्तियां केवल वास्तुशिल्प की बनावट मात्र हैं और ये बीएसपी के पार्टी प्रतीक का प्रतिनिधित्व नहीं करते.
इसके साथ ही हलफनामे में मायावती ने कहा, दलित नेताओं द्वारा बनाई गई मूर्तियों पर ही सवाल क्यों? वहीं बीजेपी और कांग्रेस जैसी पार्टियों द्वारा जनता के पैसे इस्तेमाल करने पर सवाल क्यों नहीं? मायावती ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सरदार पटेल, शिवाजी, एनटी राम राव और जयललिता आदि की मूर्तियों का भी हवाला दिया.
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सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर आज सुनवाई कर सकता है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि वो पहली नजर में उसका विचार है कि बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रतिमाओं पर लगाया जनता का पैसा लौटाना चाहिए. लखनऊ और नोएडा में मायावती और उनकी पार्टी के चिह्न हाथी की प्रतिमाएं बनवाई गई थीं. एक वकील ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी. याचिका में मांग की गई कि नेताओं द्वारा अपनी और पार्टी के चिह्न की प्रतिमाएं बनाने पर जनता का पैसा खर्च न करने के निर्देश दिए जाएं.
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