राजस्थान में पंचायत चुनाव के नतीजे आ रहे है, लेकिन एक बात साफ़ है कि अगर 2010 के मुकाबले बीजेपी ने जिला परिषदों और पंचायत समितियों में अपने गणित में सुधार किया हो तो कांग्रेस ने भी उन्हें इस बार अच्छी खासी टक्कर दी है।
अब तक आए परिणाम के अनुसार, 33 जिला परिषद में 20 भाजपा के पास है, जबकि आठ कांग्रेस को मिली हैं। चार के परिणाम अभी आना बाकी हैं।
पंचायत समितियों के कुल सीटें 6236 हैं, जिनमें 2960 भाजपा को मिली हैं और 2490 कांग्रेस को, लेकिन इन रुझानों में जो आंकड़े गौर करने के हैं, वे हैं लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार भाजपा का वोट शेयर घटा है।
इन चुनावों को कांग्रेस की वापसी का दर्जा देते हुए राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के मुताबिक, लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 55% वोट शेयर मिला था, अब 8 महीने बाद वह 46% हो गया है जबकि कांग्रेस का वोट शेयर लोकसभा चुनावों में 30% था, जो बढ़ गया है और 45% हो गया है। यानी कि पंचायत चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच जीत का अंतर सिर्फ 2% रहा है।
बीजेपी कहती है कि विधानसभा चुनावों के आंकड़ों की तुलना पंचायत चुनावों से नहीं होनी चाहिए। 1995 से लेकर अब तक बीजेपी का ग्रामीण इलाकों में वोट शेयर लगातार बढ़ता जा रहा है और पंचायत चुनाव के नतीजे सिर्फ ग्रामीण वोटों का रुझान होता है। वसुंधरा सरकार के खिलाफ फिलहाल एंटी इन्कम्बेंसी नहीं है।
भाजपा के प्रवक्ता कैलाश नाथ भट्ट का कहना है कि 1995 से पहले बीजेपी को 32% वोट मिला था, उसके बाद अगले चुनाव में 40% मिला और फिर 42% मिलने के बाद अब 46% पर पहुंचा है इसलिए मैं कह रहा हूं कि ये हमारी स्वीप है।
हर पार्टी आंकड़ों को लेकर अलग-अलग दावे कर रही है। क्या पंचायत के चुनावों के ये नतीजे इस बात को दर्शाते हैं कि बीजेपी के खिलाफ हवा बदल रही है या फिर गांवों के स्थानीय मुद्दे हावी रहे हैं...ये तो वक़्त ही बतलाएगा, लेकिन राजस्थान में पंचायत चुनाव इसलिए भी खास थे, क्योंकि देश में पहली बार इनमें शिक्षा का प्रावधान था। सरपंच का चुनाव लड़ने के लिए 8वीं का सर्टिफिकेट दिखाना ज़रूरी था और पंचायत समिति और जिला परिषद का सदस्य बनने के लिए 10वीं का, लेकिन कई ऐसे भी गांव हैं जहां पढ़ा लिखा व्यक्ति मिला ही नहीं। राजस्थान के 13 गांवों में सरपंच इसलिए नहीं चुनने गए, क्योंकि वहां शिक्षित उम्मीदवार नहीं मिला।
भीलवाड़ा के पास एक ऐसा ही गांव था भादू सीट आदिवासी महिला के लिए आरक्षित है, लेकिन इस गांव में पांचवीं पास महिला भी नहीं मिली।
गांव निवासी खान सिंह चुण्डावत ने बताया कि हमारे गांव में 20% जनजाति की आबादी है, लेकिन यहां पांचवीं पास एक भी महिला नहीं है। इन गांवों में छह महीने बाद दोबारा चुनाव संभव है।
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