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This Article is From Sep 12, 2013

आडवाणी राजी हों या नहीं, आज मोदी के नाम का ऐलान तय : सूत्र

मोदी-आडवाणी का फाइल फोटो

नई दिल्ली: लालकृष्ण आडवाणी राजी हों या नहीं, बीजेपी कल प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए नरेंद्र मोदी के नाम पर मुहर लगाने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक पार्टी की आज होने जा रही संसदीय बोर्ड की बैठक में इसका ऐलान करेगी।

उधर, मोदी के नाम के ऐलान की तैयारियों के मद्देनजर बीजेपी ने सभी राज्य इकाइयों को तैयार रहने के लिए कहा है। साथ ही कल 3 से 5 बजे तक कार्यकर्ताओं को पार्टी कार्यालय में मौजूद रहने के निर्देश दिए हैं।

इस मुद्दे पर पार्टी ने आडवाणी को मनाने की काफी कोशिश की। बुधवार को बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उनसे मुलाकात की थी। इससे पहले मंगलवार को नितिन गडकरी ने भी बात की थी, लेकिन अब लग रहा है कि पार्टी आडवाणी को दरकिनार कर आगे बढ़ने का मन बना चुकी है।

देर शाम पार्टी प्रमुख राजनाथ सिंह ने पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज से मुलाकात की। कहा जा रहा है कि दोनों में करीब एक घंटे तक बातचीत हुई, लेकिन सुषमा ने राजनाथ सिंह से साफ कहा कि मोदी ने नाम का ऐलान पार्टी की संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद ही हो। कहा जा रहा है कि पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने भी साफ कर दिया है कि वह पार्टी की राय के साथ हैं।

सूत्रों के मुताबिक, तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक, शुक्रवार को नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी पर मुहर लगा दी जाएगी। आज शाम तक पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह संसदीय बोर्ड के सभी सदस्यों से सलाह-मशविरा कर लेंगे।

इससे पहले, बुधवार को राजनाथ ने आडवाणी को भी मनाने की कोशिश की थी। सूत्रों के मुताबिक आडवाणी ने राजनाथ से कहा कि अभी मोदी के नाम की घोषणा करना पार्टी के हित में नहीं है और आम चुनावों में बीजेपी को लगातार तीसरी बार हार का सामना करना पड़ सकता है। सूत्रों के मुताबिक, जब राजनाथ ने आडवाणी से पूछा कि वह संसदीय दल की बैठक में आएंगे, तो उन्होंने कहा कि वह आएंगे और मोदी के नाम के प्रस्ताव का विरोध करेंगे।

आडवाणी ने मोदी के नाम का ऐलान न करने के पीछे ये तर्क दिए हैं:-

-विधानसभा चुनाव खत्म होने तक इंतजार हो।

-संसदीय बोर्ड में मतदान हो।

-मोदी के नाम का ऐलान होने से कांग्रेस को फायदा होगा।

भाजपा के मोदी के नाम का ऐलान करने के पीछे तर्क:-

-खुद आडवाणी ने 2007 में अपने नाम का ऐलान इसी तरह किया था।

-आडवाणी ने गुजरात विधानसभा चुनाव खत्म होने का इंतजार नहीं किया।

-1995 में आडवाणी ने वाजपेयी का नाम आगे बढ़ाया।

-संसदीय बोर्ड ने वाजपेयी के नाम पर बाद में मुहर लगाई।

-मोदी के पक्ष में बने माहौल को आडवाणी नजरअंदाज कर रहे हैं।

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