Bihar Election 2020: 'नालंदा के मुन्ना' से लेकर बिहार के ‘सुशासन बाबू' तक का सफर तय कर चुके नीतीश कुमार केंद्रीय रेल मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री पद का सफर तय कर चुके हैं. वैद्य राम लखन सिंह के बेटे नीतीश कुमार का जन्म एक मई 1950 को पटना के बख्तियारपुर में हुआ था. पटना इंजीनियरिंग कॉलेज से उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. छात्र जीवन में उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. वह जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में भी शामिल हुए. 1985 में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए थे. 1987 में उन्हें युवा लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया था. 1989 में उन्हें बिहार में जनता दल का सचिव चुना गया. इसी साल वह बिहार से दिल्ली की ओर बढ़े और नौंवी लोकसभा के सांसद बने थे.
नीतीश कुमार वर्ष 2000 से अब तक सात बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं.. पहली बार वह तीन मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक मुख्य मंत्री रहे. सात दिन के बाद ही बहुमत नहीं होने के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वह 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक सीएम बने. इसके बाद उन्होंने 26 नवंबर 2010 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वह 19 मई 2014 तक इस पद पर रहे. लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और जीतन राम मांझी को बिहार की गद्दी सौंप दी. हालांकि मांझी को उनकी पार्टी ने कुछ ही महीनों के बाद इस्तीफा देने के लिए कहा और 22 फरवरी 2015 को नीतीश कुमार फिर एक बार बिहार के सीएम बने.
2014 से 2017 तक बिहार में काफी राजनीतिक परिवर्तन देखने को मिले. लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए से नाता तोड़ने के बाद नीतीश कुमार को जब करारी हार का सामना करना पड़ा तो उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले अपने धुर-विरोधी लालू यादव की पार्टी आरजेडी से गठबंधन किया. जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के गठबंधन को शानदार जीत भी मिली. 20 नवंबर 2015 को नीतीश कुमार फिर एक बार मुख्यमंत्री बने. हालांकि यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाया. 26 जुलाई 2017 को उन्होंने इस्तीफा देते हुए फिर से अपने पुराने सहयोगी बीजेपी के साथ गठबंधन करने का फैसला किया. अगले ही दिन उन्होंने सीएम पद की शपथ ली.
जेटली ने नीतीश की कराई एनडीए में दोबारा वापसी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोस्त और तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नीतीश कुमार के एनडीए में वापसी कराने में अहम भूमिका निभाई थी. इस पूरे घटनाक्रम में सेतु का काम दोनों के भरोसेमंद और बिहार के वर्तमान जल संसाधन मंत्री संजय झा ने किया. वही अरुण जेटली का प्रस्ताव लेकर नीतीश कुमार के पास आए और यहीं से जेडीयू-बीजेपी गठबंधन की कहानी लिखी गई.
अब फिर मैदान में नीतीश कुमार
नीतीश कुमार इस बार फिर बीजेपी के साथ गठंबधन कर चुनावी मैदानी में हैं. लेकिन नीतीश के लिए बीजेपी में उनकी तरफदारी के लिए दोस्त अरुण जेटली अब इस दुनिया में नहीं है और इस कमी को नीतीश कुमार भी महसूस कर रहे होंगे. लोकसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद तो एक समय बीजेपी नेता बिहार में जेडीयू के बिना भी चुनाव लड़ने का मूड बना रहे थे. हालांकि बाद में अमित शाह ने जेडीयू को राहत देते हुए साफ किया कि नीतीश की ही अगुवाई में चुनाव लड़ा जाएगा. लेकिन अगर चुनावी समीकरणों की तो जेडीयू+बीजेपी+एलजेपी के गठबंधन कागजों पर आरजेडी+कांग्रेस पर भारी दिख रहा है. लोकसभा में मिले वोटों का प्रतिशत देखा जाए तो एनडीए बहुत आगे है. हालांकि कोरोना, बेरोजगारी और बाढ़ का मुद्दा नीतीश के सामने बड़ी चुनौती बना हुआ है. लेकिन विपक्ष के सामने दिक्कत ये है कि कोरोना काल में इन मुद्दों को उठाए कैसे.
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