अगले महीने होने वाले बिहार विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Elections 2020) के लिए वहां एक तीसरा मोर्चा भी तैयार हो गया है. पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की पार्टी राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (Rashtriya Loksamta Party) ने विपक्षी गठबंधन यूपीए से नाता तोड़ लिया है और मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर तीसरे मोर्चे की घोषणा कर दी है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि उनकी पार्टी बीएसपी के साथ चुनावों में लड़ेगी. बता दें कि बिहार में 28 अक्टूबर और सात नवंबर के बीच तीन चरणों में चुनाव होने हैं.
सूत्रों ने बताया है कि उपेंद्र कुशवाहा पहले नीतीश कुमार-बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल होना चाहते थे लेकिन सीट पर उनके हिसाब से सहमति नहीं बन पा रही थी. पहले वो एनडीए के ही हिस्सा थे, 2015 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार और लालू यादव की पार्टी आरजेडी के महागठबंधन ने एनडीए को हरा दिया था.
पिछले साल लोकसभा चुनाव के ठीक पहले ही उपेंद्र कुशवाहा एनडीए से अलग हो गए थे. उन्होंने बीजेपी पर छोटी सहयोगी पार्टियों के प्रति अहंकारी रवैया रखने का आरोप लगाया था. अलग होने के बाद उन्होंने कांग्रेस-आरजेडी के महागठबंधन को जॉइन कर लिया था. मार्च, 2019 में उन्होंने कहा था कि 'राहुल गांधी और लालू यादव की सहृदयता एक वजह है कि मैंने गठबंधन में जॉइन किया है, लेकिन बिहार के लोग इसके पीछे सबसे बड़ी जगह हैं.'
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हालांकि, तबसे एक साल से ज्यादा वक्त हो चुका है, और लालू यादव के जेल में होने और उनके छोटे बेटे तेजस्वी के नेतृत्व में चल रहे विपक्षी गठबंधन को एक नहीं दो अहम सहयोगी पार्टियां छोड़ चुकी हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी हाल ही में एनडीए से हाथ मिला लिया था. सूत्रों का कहना है कि आरजेडी को लगता है कि कुशवाहा अपना वोटबैंक गठबंधन के खाते में लाने में नाकाम रहे हैं.
हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने यह बात जाहिर की है कि वो 30 साल के तेजस्वी यादव के नेतृत्व को लेकर नाखुश हैं और उन्हें लगता है कि पूर्व उप-मुख्यमंत्री होने के बावजूद उनमें विपक्ष का नेतृत्व करने की क्षमता नहीं है. नीतीश कुमार ने भी तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद आरजेडी से संबंध तोड़ दिया था. आरजेडी से अलग होने के बाद उन्होंने फिर एक बार पुराने सहयोगी बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया था. वो 2013 में नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का कैंडिडेट बनाए जाने पर नाराज थे और अलग हो गए थे.
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आरजेडी 2015 के चुनावों में 81 सीटों के साथ अकेली सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. हालांकि, अब पार्टी 243 सीटों में से 150 सीटों पर लड़ने की अपनी कुव्वत दिखाते हुए सहयोगी पार्टियों को मना नहीं पा रही है. लालू यादव की अनुपस्थिति में पार्टी पहला चुनाव लड़ रही है.
Video: बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे पर नहीं बन रही है बात
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