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This Article is From Oct 05, 2020

चिराग के फैसले को आख़िर ‘भाजपा के नीतीश हटाओ, अपना मुख्यमंत्री बनाओ' से क्यों जोड़ा जा रहा?

Bihar Election 2020: जेडीयू नेताओं के अनुसार भाजपा नीतीश कुमार की सहयोगी बनकर उनको कमजोर कर रही है क्योंकि उसे मालूम है कि नीतीश से सामने से लड़कर सत्ता हासिल नहीं की जा सकती

चिराग के फैसले को आख़िर ‘भाजपा के नीतीश हटाओ, अपना मुख्यमंत्री बनाओ' से क्यों जोड़ा जा रहा?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो).
पटना:

Bihar Election 2020: लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अध्यक्ष चिराग़ पासवान (Chirag Paswan) के केवल जनता दल यूनाइटेड (JDU) के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतारने के फ़ैसले से बिहार (Bihar) का राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है. हालांकि चिराग ने इस फ़ैसले के बारे में सबको पिछले डेढ़ महीने के दौरान आगाह कर दिया था, लेकिन अचानक उनके फैसले के बाद राजनीतिक अटकलों का बाजार गर्म हो गया है. अब चाहे भाजपा (BJP) के नेता या कार्यकर्ता हों, विपक्षी राजद (RJD) के नेता हों  या फिर जनता दल यूनाइटेड के, सभी दबी ज़ुबान से एक ही बात कह रहे हैं कि चाल भले चिराग ने चली हो लेकिन ये बिना भाजपा की मौन सहमति के संभव नहीं थी.

लेकिन सवाल है कि आखिर चिराग के निर्णय के लिए भाजपा पर कैसे ठीकरा फोड़ा जा सकता है. इसका जवाब भाजपा के लोग खुद नाम ना छापने की शर्त पर देते हैं कि चिराग ने कई दौर की बैठकों के बाद इस निर्णय को सार्वजनिक किया. और उनकी बैठकों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, सब मोजूद रहते थे. चिराग अपने व्यक्तिगत जीवन में जैसे अपने पिता की बीमारी से परेशान चल रहे हैं, वैसे में इन नेताओं के आग्रह को अस्वीकार करना मुश्किल नहीं था. और चिराग़ ने जो सुर अख़्तियार किया है, वह भाजपा को भी मालूम है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और उनकी पार्टी को नहीं पचने वाला कि इसमें भाजपा का कोई लक्ष्य नहीं कि चिराग के बहाने दरअसल नीतीश कुमार के उमीदवारों का स्ट्राइक रेट कम हो और परिणामस्वरूप उन्हें कम से कम सफलता हासिल हो.

हालांकि बिहार भाजपा के किसी नेता ने चिराग के फैसले के विरोध में न तो कोई बयान दिया और न ही कोई ट्वीट किया.

इसके अलावा भाजपा पर जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का शक रविवार के इस फैसले से बढ़ गया है. जनता दल यूनाइटेड के कई नेता इस बात का उदाहरण देते हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा पटना में बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से बात करके दिल्ली में उनके नेता से बात करने अधिकारिक रूप से गए लेकिन लौटे तो उन्होंने बीएसपी के साथ समझौते का ऐलान कर दिया. जबकि उपेन्द्र कुशवाहा ने न दिल्ली में, न लखनऊ में पार्टी सुप्रीमो बहन मायावती से मुलाकात की. हालांकि उनके मुंह से इतना निकल ज़रूर गया कि वो चाहे राजद हो या अन्य दल सभी भाजपा के इशारे पर काम करते हैं. और उपेन्द्र कुशवाहा भी नीतीश कुमार को निशाने पर रखे हुए हैं. इससे ये लगने लगा है  कि उनका ब्रीफ़ साफ़ है कि नीतीश को जितना नुक़सान पहुंचा सकते हैं वो आप करिए, चुनाव परिणाम आने के बाद आपके हितों का ख़्याल रखा जाएगा.

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शनिवार को भी वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश मल्लाह ने महागठबंधन से नाता जिस अंदाज़ में तोड़ा उसके बारे में कहा जा रहा है कि वह सब कुछ पहले से सुनियोजित था. मुकेश मल्लाह के बारे में सब जानते हैं कि वे भाजपा के नेताओं से,  चाहे पटना हो या दिल्ली, हमेशा संपर्क में रहते हैं. लेकिन राजनीतिक जानकारों के अनुसार भाजपा की एक रणनीति साफ़ होता है कि बिहार में जो भी थर्ड फ़्रंट में दल हैं, वे सब भाजपा के साथ मधुर सम्बंध कायम रखे हुए हैं.  इस बार जनता दल यूनाइटेड के नेताओं के अनुसार भाजपा नीतीश कुमार की सहयोगी बनकर उनको कमजोर कर रही  है क्योंकि उन्हें मालूम है कि नीतीश से सामने से लड़कर सत्ता हासिल नहीं की जा सकती.
 

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