बिहार की राजनाति की बड़ी हस्ती रहे केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) का गुरुवार की शाम निधन हो गया. उनका निधन ऐसे समय में हुआ है, जब बिहार में विधान सभा चुनाव है और उनके बेटे और लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान की सियासी रणनीति और भविष्य दोनों दांव पर है. लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party), जिसकी स्थापना साल 2000 में रामविलास पासवान ने की थी, बिहार विधान सभा चुनाव एनडीए से अलग होकर लड़ रही है लेकिन भाजपा के प्रति वफादार रहते हुए सिर्फ सीएम नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतार रही है. लोजपा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को हराने के लिए चुनावी अखाड़े में है.
बुधवार (7 अक्टूबर) को राज्य के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि अगर रामविलास पासवान स्वस्थ और सक्रिय होते तो ऐसा कभी नहीं होता. नीतीश कुमार ने भी रामविलास पासवान के साथ अपनी लंबी राजनीतिक साझेदारी और दोस्ती की बात कही थी और कहा था कि बिना जेडीयू के समर्थन में वो राज्यसभा नहीं पहुंच सकते थे.
क्या चिराग अपने मिशन नीतीश के चक्कर में भाजपा के लिए अधिक मुश्किलें पैदा कर रहे हैं?
रामविलास पासवान सियासत की आहट को पहले ही भांप लेते थे और इसी वजह से उन्हें राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाता था. जब उन्होंने अपने भाजपा-विरोधी रुख को दफन कर दिया और 1999 के आम चुनावों में नीतीश कुमार के साथ हाथ मिलाया, तो भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की जबर्दस्त जीत हुई और लालू यादव की पार्टी राज्य की 54 सीटों में से सात पर सिमट गई. यहां तक कि लालू खुद मधेपुरा से चुनाव हार गए थे.
लेकिन पांच साल बाद यानी 2004 के चुनावों से पहले रामविलास पासवान ने एनडीए छोड़ दी और यूपीए में शामिल हो गए. तब लालू-पासवान और कांग्रेस के गठजोड़ ने जबर्दस्त जीत हासिल की. हाल ऐसा रहा कि नीतीश कुमार खुद बाढ़ सीट से चुनाव हार गए. हालांकि, 2009 में रामविलास पासवान भी अपनी परंपरागत सीट हाजीपुर नहीं बचा सके. 2014 तक उन्होंने फिर भांप लिया था कि नरेंद्र मोदी का रास्ता कोई नहीं रोक सकता, ऐसे में उन्होंने फिर से बीजेपी से दोस्ती कर ली, जबकि 12 साल पहले वो गुजरात दंगों के बहाने ही एनडीए छोड़ कर बाहर निकले थे. उसी समय नीतीश ने बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का साथ छोड़ दिया और 2015 में लालू-कांग्रेस के साथ मिलकर नया गठबंधन बनाया और सत्ता हासिल की.
रामविलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक क्यों कहा जाता था? किसने दिया था ये नाम?
रामविलास पासवान की मौत के बाद बिहार की राजनीति में चिराग पासवान की रणनीति के बारे में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं, जिन्होंने पहले ही बड़ा सियासी जुआ खेला है. बिहार में तीन चरणों में 28 अक्टूबर, तीन नवंबर और सात नवंबर को चुनाव होंगे, जबकि नतीजे 10 नवंबर को आएंगे.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को नीतीश कुमार के खिलाफ लड़ने के अपने फैसले का बचाव करते हुए एक पत्र में, चिराग पासवान ने शिकायत की थी कि जब पटना में संवाददाताओं ने मुख्यमंत्री से उनके पिता के स्वास्थ्य के बारे में पूछा था, तो उन्होंने "अनभिज्ञता" व्यक्त की थी. इसके उलट जेडीयू नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार ने चिराग पासवान तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने दोबारा फोन वापस नहीं किया.
क्या उनके पिता की मौत का असर चिराग पासवान की चुनावी योजना पर पड़ेगा? इस बात की चर्चा है कि अब चिराग पासवान दूसरे और तीसरे दौर के मतदान में अधिक उम्मीदवारों को उतारने के लिए इच्छुक नहीं हैं. 28 अक्टूबर को पहले दौर के लिए 42 उम्मीदवारों की घोषणा करते हुए, उन्होंने उन सभी सीटों से परहेज किया, जहाँ भाजपा चुनाव लड़ रही है. हालांकि, उनके छह उम्मीदवार भाजपा के बागी नेता हैं जिन्हें टिकट नहीं मिल सका था.
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जेडीयू सूत्रों का कहना है कि चिराग पासवान फैक्टर को लेकर नीतीश कुमार बहुत चिंतित नहीं हैं. 2005 के बाद से, वे बताते हैं कि पासवान वोट-आधार से उन्हें कभी फायदा नहीं हुआ; वास्तव में वे हमेशा उसके खिलाफ मतदान करते आए हैं. नीतीश कुमार का मानना है कि पांच फीसदी पासवान वोट के खिलाफ उन्हें महादलितों का वोट मिलता रहा है जो 11 फीसदी है.
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