बिहार की राजधानी पटना के पूर्वी हिस्से वाली विधानसभा सीट यानी पटना साहिब सीट पर ढाई दशक से भारतीय जनता पार्टी (BJP) का भगवा झंडा ही लहराता रहा है. 1995 में नंदकिशोर यादव वहां से पहली बार जीतकर विधान सभा पहुंचे. उसके बाद आज तक इस सीट पर कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं जीत सका. यादव बिहार सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. हालांकि, 2015 के बिहार विधान सभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) में जब लालू यादव और नीतीश कुमार ने गठजोड़ कर महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ा था, तब भी नंदकिशोर यादव यहां से अपनी गाड़ी खींचने में कामयाब रहे. उन्होंने बहुत ही कम मतों के अंतर से राजद के संतोष मेहता को पटखनी दी थी. यादव को 88,108 वोट मिले थे जबकि मेहता को 85,316 वोट मिले थे. बीजेपी को कुल 46.89 फीसदी जबकि राजद को 45.40 फीसदी वोट मिले थे.
वैश्य, यादव और कोयरी वोटरों की बहुलता
इस सीट पर वैश्य, कोयरी-कुर्मी और यादव मतदाताओं की बहुलता है. मुस्लिमों की भी अच्छी आबादी है. साढ़े तीन लाख वोटर वाले इस क्षेत्र में वैश्य समाज का 80 हजार वोट है. यादवों का वोट भी 50 हजार से ज्यादा है. कोयरी का वोट 48 हजार और कुर्मी वोट 16 हजार के करीब है. करीब 43 हजार वोट मुस्लिमों के हैं. इलाके में 54 फीसदी पुरुष वोटर हैं. वैश्य, कोयरी, कुर्मी एनडीए के परंपरागत वोटर रहे हैं.
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नंदकिशोर यादव की मजबूत छवि
नंदकिशोर यादव को पार्टी और व्यक्तिगत दोनों छवि का फायदा मिलता रहा है. तभी तो वो लगातार छह बार ढाई दशक यानी 25 वर्षों से यहां से विधायक चुने जाते रहे हैं. यादव आरएसएस के कैडर रहे हैं. राज्य में एनडीए की सरकार में लगातार मंत्री रहे हैं. उन्होंने पटना नगर निगम में पार्षद के चुनाव से चुनावी राजनीति की शुरुआत की थी. बाद में वो पटना के डिप्टी मेयर भी रहे. 1995 में पहली बार पटना पूर्वी सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
जल जमाव और सड़क जाम है बड़ी समस्या
राज्य के पथ निर्माण मंत्री होने के बावजूद नंदकिशोर यादव के चुनावी इलाके में जल जमाव और सड़क जाम आम समस्या है. पिछले साल पटना में हुए जल जमाव में इनके इलाके में लोगों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ी थी. यह सीट पूरी तरह से शहरी सीट है. जहां कारोबारियों की संख्या अधिक है. इनके इलाके में ही प्रसिद्ध पटनासाहिब गुरुद्वारा है.
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1957 में बनी था पटना पूर्वी विधानसभा सीट
पटना साहिब पहले पटना पूर्वी विधानसभा सीट कहलाती थी लेकिन परिसीमन के बाद अब इसका नाम बदल चुका है. 1957 और 1962 के शुरुआती दो चुनावों में इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे. इसके बाद इस सीट पर जनसंघ ने कब्जा जमाया. 1980 के दशक में कांग्रेस ने फिर से कब्जा किया लेकिन 1995 से लगातार बीजेपी का कब्जा रहा है. इस सीट पर दूसरे चरण यानी 3 नवंबर को मतदान होगा, जबकि नतीजे 10 नवंबर को आएंगे.
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