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This Article is From Oct 12, 2020

बिहार चुनाव : इमामगंज में विपक्ष परिवारवाद के बहाने जीतनराम मांझी को घेरने में जुटा

Bihar Election 2020: हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी पर अपनी सीट के अलावा दामाद और समधिन को भी जिताने की जिम्मेदारी

बिहार चुनाव : इमामगंज में विपक्ष परिवारवाद के बहाने जीतनराम मांझी को घेरने में जुटा
पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

Bihar Election 2020: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) और बिहार विधानसभा के पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी के बीच सीधा मुकाबला है. जीतनराम मांझी के ऊपर अपनी सीट के अलावा दामाद और समधिन को जिताने की जिम्मेदारी भी है. इमामगंज में चुनौतीपूर्ण सियासी लड़ाई है. हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) यानी हम पार्टी के सुप्रीमो जीतनराम मांझी की तबियत खराब होने से इमामगंज (Imamganj) चुनाव प्रचार करने का कार्यक्रम रद्द हो गया है. हम पार्टी को JDU ने अपने खाते से 7 सीटें दी हैं लेकिन 77 साल के बुजुर्ग जीतनराम मांझी पर अपनी सीट के अलावा समधिन ज्याति मांझी और दामाद देवेंदर मांझी को चुनावी नैया पार कराने की जिम्मेदारी है. 

परिवारवाद पर सवाल पूछते ही इमामगंज से प्रत्याशी जीतनराम मांझी नाराज हो जाते हैं. वे कहते हैं कि ''ये सब आप लोगों के दिमाग की उपज है. हम सातों सीटों को जीताने की कोशिश कर रहे हैं.''

लेकिन जीतनराम मांझी भी राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं लिहाजा महादलित कार्ड उनके हाथ में है. प्राइवेट नौकरी में भी दलितों को आरक्षण देने का वादा कर रहे हैं चाहे नीतीश कुमार इसके लिए राजी हों या न हों. पर विपक्षी परिवारवाद के बहाने जीतनराम मांझी को घेरने में जुटे हैं.

इमामगंज में जीतनराम मांझी के खिलाफ RJD के सबसे बड़े दलित नेता और इस इलाके से चार बार के विधायक रह चुके पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी हैं. 2015 में उनको जीतनराम मांझी के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी थी. उदय नारायण चौधरी कहते हैं कि जहां तक सवाल है आरक्षण का 15 साल रहे निदी क्षेत्र में आरक्षण क्यों नहीं लागू किया.

बिहार के गया में जीतनराम मांझी के खिलाफ धरने पर बैठे उन्हीं की पार्टी के कार्यकर्ता

लेकिन इमामगंज की जमीनी हालात जानने के हम पहुंचे कोइरी बिगहा गांव. यहां लॉकडाउन में बेरोजगार होकर युवा बड़ी तादाद में गांव लौटे हैं. राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से इनको कोई मदद नहीं मिली है, लेकिन फिर भी जातीय आधार पर मतदाता बंटा है. तीन लाख मतदाताओं वाले इमामगंज विधानसभा में सबसे अधिक 70 हजार से ज्यादा हरिजन वोटर हैं फिर 50 हजार से ज्यादा मांझी वोटर हैं.

बिहार में गरीबी है बेरोजगारी है लेकिन जमीन पर विकास नहीं बल्कि चुनाव में जाति एक बड़ा फैक्टर है. ऐसे में दिग्गजों की नजर दलित वोटरों पर है. दलित वोटर ही दोनों दिग्गज नेताओं के सियासी भाग्य का फैसला करेंगे. 

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