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This Article is From Oct 18, 2020

क्या इस बार नीतीश कुमार भाजपा पर विश्वास और अपने पर अति आत्मविश्वास के शिकार हो गए?

Bihar Election 2020: ये शायद पहला चुनाव होगा जहां भाजपा को ये सफ़ाई देनी पड़ रही है कि हमारी अधिक सीटें भी आएंगी तो मुख्यमंत्री का ताज नीतीश कुमार के माथे पर होगा

क्या इस बार नीतीश कुमार भाजपा पर विश्वास और अपने पर अति आत्मविश्वास के शिकार हो गए?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (फाइल फोटो).
पटना:

Bihar Election 2020: बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अब ज़ोरों से चल रहा है. अब तक के प्रचार में एनडीए (NDA) ने महागठबंधन (Mahagathbandhan) पर बढ़त बनाई है. इस बार के चुनाव में परिणाम अभी तक एनडीए के पक्ष में दिख रहा है लेकिन उसके बाबजूद कई चीजें ऐसी देखने को मिल रही हैं जिससे लग रहा है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के भाजपा (BJP) पर विश्वास और अपने अति आत्मविश्वास के कारण एक आसान मंज़िल को लोगों के बीच प्रश्न और उत्तर खोजने के बुझौबल का मामला बना दिया है.

एनडीए के प्रचार की कमान निस्संदेह नीतीश कुमार के कंधों पर है लेकिन उनके साथ सहयोग करने के लिए भाजपा के नेता कंधे से कंधे मिलाकर हेलिकॉप्टर से नामांकन से लेकर विधानसभा तक घूम रहे हैं. लेकिन इसके पीछे सब कुछ उतना सीधा भी नहीं है. ये शायद पहला चुनाव होगा जहां भाजपा को ये सफ़ाई देनी पड़ रही है कि हमारी अधिक सीटें भी आएंगी तो मुख्यमंत्री का ताज नीतीश कुमार के माथे पर होगा. इसका लोग अपने तरीक़े से अर्थ निकाल रहे हैं कि आख़िर भाजपा  को कैसे मालूम है कि उनके सहयोगी की कम सीटें आनी वाली हैं. या ये पहले से कोई एक्शन प्लान पर काम कर रहे हैं कि नम्बर एक पर तो वो रहे और दूसरे और तीसरे नम्बर की पार्टी के लिए नीतीश और तेजस्वी में मुकाबला हो.

यहां ऐसे सवाल करने वाले बिना आधार के नहीं पूछ रहे कि आखिर नीतीश कुमार के लिए हर सीट पर त्रिकोणीय मुक़ाबला सुनिश्चत करने वाले चिराग पासवान को किसका वरदहस्त प्राप्त है और आख़िर हर दिन नीतीश की आलोचना करने वाले चिराग हर भाजपा के बागी को टिकट से क्यों नवाज़ रहे हैं लेकिन उनकी प्राथमिकता की सूची में नीतीश के पूर्व विधायक की संख्या सीमित होती है. दूसरा भाजपा ने चिराग़ के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद का समय क्यों तय किया है. हालांकि भाजपा का मानना है कि उनके हर नेता ने चिराग़ पासवान पर जमकर हमला बोला है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के बाद स्थिति और साफ़ हो जाएगी. लेकिन ये सच है कि ज़मीन पर भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं में एक कन्फ़्यूज़न का माहौल है जो जनता दल यूनाइटेड के ना वर्कर, ना वोटर में दिख रहा है. और यहां नीतीश कुमार का भाजपा पर विश्वास लगता है महंगा सौदा साबित हुआ. हालांकि ये भी सच है कि उनके पास विकल्प बहुत नहीं थे. चिराग़ पासवान के साथ सीटों के समझौते का भार भाजपा के ऊपर  था.

हालांकि इस चुनाव में नीतीश कुमार जैसा वो चाहें सीटों का बंटवारा हो या प्रत्याशियों के नाम की घोषणा, सब कुछ संयुक्त रूप से करना चाहते थे. लेकिन BJP के असहयोग के कारण संभव नहीं हो पाया. नीतीश ने अपनी पार्टी की तरफ़ से वो चाहे तालमेल में सीटों की संख्या या उम्मीदवारों के नामों की सूची अलग अलग दिन में एक बार में जारी की. लेकिन BJP का कहना है कि राष्ट्रीय पार्टी में उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा अलग अलग दिन होने के कारण और चिराग़ पासवान के अलग जाने की घोषणा के बाद वीआईपी पार्टी के साथ तालमेल में देरी की वजह से एक संयुक्त सूची अब तक जारी नहीं हो पाई. जबकि बिहार की राजनीति में ये परंपरा पिछले विधानसभा में ख़ुद नीतीश कुमार ने शुरू की जिसका उन्होंने लोकसभा चुनाव में भी पालन किया. लेकिन उनके अपने चुनाव में भले उनके नाम पर मुहर महीनों पहले लगी हो लेकिन सब कुछ ठीक है का प्रतीक इन कदम को उनके अपने सहयोगी भाजपा ने गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि भाजपा का कहना है कि चुनाव तो इस बात पर है कि आम लोगों को नीतीश पसंद  या उनके प्रतिद्वंदी तेजस्वी यादव.

पहली बार अगर आप इस बार के चुनाव में बिहार में घूमेंगे तो लोगों में नीतीश कुमार के प्रति ग़ुस्सा साफ़ दिखता है. इस ग़ुस्से को NDA ख़ासकर BJP के समर्थकों ने यह कहकर हवा दी है कि पंद्रह बरस नीतीश कुमार का चेहरा हमने देखा अब BJP का मुख्यमंत्री होना चाहिए. इस पर नीतीश के विरोध में लोग यह कहते हैं कि नीतीश कुमार ने कुछ ख़ास नहीं किया. उन्होंने जो भी किया आपने पहले 5 वर्षों के दौरान किया, इसलिए परिवर्तन होना चाहिए. एक तीसरा पक्ष भी है जो कहता है   बहुत हुआ नीतीश कुमार और तमाम विसंगतियों के बाबजूद लेकिन अभी हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. वोटर हो या आम आदमी नीतीश कुमार से उनके काम ख़ासकर उनके कुछ निर्णय के कारण लोग खासे ग़ुस्से में दिखते हैं. पहला जो बाहर से लौटे श्रमिक हैं उनका यह कहना है कि नीतीश कुमार ने हमें वापस आने पर हर बार इतना विरोध क्यों किया और जब हम लौटकर आए हैं तब डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद हमें काम क्यों नहीं मिल रहा. जबकि उनसे बहुत वादे किए गए थे. दूसरा मतदाताओं का वर्ग जो इस चुनाव में मुखर इस बात को लेकर है. नीतीश कुमार के शासन में भ्रष्टाचार हर जगह बढ़ता जा रहा है. इन लोगों का रोना है इस सरकार पर अफ़सरसाही हावी है और हम तंग आ चुके हैं और नीतीश कुमार इसको कुछ समस्या मानती ही नहीं है जो हमारे लिए और भी ज़्यादा कष्टकारी है.

आपको नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ तीन शिकायत मिलती हैं. वहीं कोरोना  काल में नीतीश कुमार द्वारा लोगों के लिए उठाए गए कदमों की अगर आप चर्चा करेंगे तो वहां पर वो चाहे राशन कार्ड धारियों को एक हज़ार रुपये उनके खाते भी दिए गए हों या पेंशनधारियों को तीन महीने का अग्रिम भुगतान, हर चीज़ का क्रेडिट लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देते हैं और यही कहते हैं कि नीतीश कुमार ने थोड़ी दिया था वो तो सब प्रधानमंत्री हमारे लिए भेजे थे. यहां पर नीतीश कुमार का पूरे कोरोना काल से मीडिया से दूरी बनाए रखना, अब पीछे मुड़कर देखें तो आत्मघाती क़दम लगता है. ये साफ़ है कि अपने ऊपर अति आत्मविश्वास आज उनकी आलोचना का मुख्य कारण है जहां पर अपने ही कामों को लोगों तक नहीं पहुंचा पाए और साथ ही मुग़ालते में राज्य की जनता क्या कर लेगी. गांवों में हर जगह लोग आपको ये कहते मिलेंगे कि नए राशन कार्ड बने लेकिन घूस देने के बाद. इसके बाद उन्हें अनाज नहीं मिलता. इस चुनाव में आप जहां जाइए नीतीश कुमार के अच्छे कामों की चर्चा नहीं होती बल्कि हर जगह लोग उनकी कमियों को गिन गिनकर सुनाते हैं जो इस चुनाव का एक मुख्य बिंदु है, जो पिछले दो विधान सभा चुनाव में न सुनने को, न देखने को मिलता था.

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हालांकि नीतीश कुमार के लिए राहत की बात यह है कि जो उनका आधारभूत अति  पिछड़ा वोट हो, महादलितों का  या महिला वोटर उसमें फ़िलहाल कोई क्रैक नहीं दिखता है और वो सब एकजुट हैं. लेकिन BJP के समर्थक निश्चित रूप से असमंजस की स्थिति में आज की तारीख़ में दिखते हैं. लेकिन सबका मानना है कि चूंकि मुक़ाबला तेजस्वी यादव से है, भले तेजस्वी यादव का महागठबंधन में सब कुछ भले ठीक ठाक चल रहा है और उनकी सभा में अच्छे खासे संख्या में समर्थक आ रहे हैं. पहली बार उन्होंने बेरोज़गारी, विकास जैसे मुद्दों पर एनडीए को बैकफ़ुट पर रखा हुआ है. लेकिन जो NDA का वोटर है  वो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की जब बात आएगी तो वहां पर वो सब कुछ भूलकर वापस नीतीश कुमार के पक्ष में ही वोट डालेगा.

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