यमुनानगर:
एक तरफ मिलेनियम सिटी नाम से मशहूर हरियाणा के सबसे ज्यादा चमचमाते शहरों में से एक गुरुग्राम इस बरसाती पानी में डूबा जा रहा है. दूसरी तरफ सरकार शहरों में बेहतर जल निकासी की व्यवस्था बनाने की बजाय पौराणिक नदी सरस्वती को खोज निकालने के भागीरथी प्रयास में जुटी है.
सरस्वती नदी को खोज निकालने का अभियान यमुनानगर के मुघलवाली गांव में चल रहा है। इसी गांव में एक कुआं है, जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि इसमें सरस्वती का पानी आता है. इसका स्रोत गांव से करीब 10 किमी दूर आदि-बद्री में है, जो शिवालिक की पहाड़ियों की तलहटी में है और इसे तीर्थस्थल के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.
ऋगवेद में जिस विशाल सरस्वती नदी का वर्णन है, उसके बारे में मान्यता है कि वह 5000 साल पहले ही सूख चुकी है. इतिहासकारों और पुरातत्वविदों में हमेशा से ही सरस्वती नदी के अस्तित्व को लेकर विवाद रहा है. हरियाणा में आरएसएस नेता दर्शन लाल जैन सरस्वती नदी को फिर से जीवित करने की मुहिम चला रहे हैं.
कुछ विद्वानों के अनुसार सरस्वती और घग्गर-हाकरा नदियों के आसपास ही हड़प्पा की सभ्यता शुरू हुई थी. जबकि अन्य विद्वानों के अनुसार 1500 ईसा पूर्व ऋगवेद में जिस हराहवती का उल्लेख हुआ है असल में वह अफगानिस्तान में बहने वाली हेलमंड नदी के बारे में है.
हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनते ही सरस्वती नदी को फिर से जिंदा करने की घोषणा हुई थी. सरकार ने इसके लिए 50 करोड़ की निधि जारी की और मनरेगा के तहत खुदाई करके जमीन के अंदर के पानी से भरने की अनुमति दी. यही नहीं सरकार वहां नहरें भी खुदवा रही है, जिनमें एक तरफ यमुना से और दूसरी तरफ सोम नदी से पानी लाने की तैयारी है.
इस परियोजना के समर्थक इसे एक प्यासे राज्य को सिर्फ पानी मुहैया कराने से भी ज्यादा संस्कृति और विरासत की खोज का कदम बताते हैं. इसीलिए इस मामले को जल मंत्रालय नहीं संस्कृति मंत्रालय संभाल रहा है.
ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि राज्य सरकार अपने राजनीतिक और वैचारिक लाभ के लिए पौराणिक कथा का इस्तेमाल तो नहीं कर रही? पानी से जुड़े विशेषज्ञ नदी को पुनर्जीवित करने के खिलाफ हैं.
सोसाइटी फॉर डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के हिमांशु ठक्कर कहते हैं, 6 घंटे के जाम के बारे में सोचो। हमें चाहिए कि हम जीवित नदियों को बचाने की कोशिश करें, न कि करीब 5000 साल पहले सूख चुकी किसी नदी को जिंदा करने के लिए.
ठक्कर कहते हैं, इस परियोजना को लेकर लोगों को बहुत कुछ जानकारी नहीं है, इसलिए आर्किटेक्ट पीपी कपूर ने सबूतों और सार्वजनिक धन के इस्तेमाल को लेकर एक आरटीआई दाखिल की.
इसके जवाब में कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के भूविज्ञानी एआर चौधरी ने परियोजना के बारे में कहा, 'यह शोध का विषय है और इसके पूरा होने में समय लगेगा.'
सरस्वती नदी को खोज निकालने का अभियान यमुनानगर के मुघलवाली गांव में चल रहा है। इसी गांव में एक कुआं है, जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि इसमें सरस्वती का पानी आता है. इसका स्रोत गांव से करीब 10 किमी दूर आदि-बद्री में है, जो शिवालिक की पहाड़ियों की तलहटी में है और इसे तीर्थस्थल के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.
ऋगवेद में जिस विशाल सरस्वती नदी का वर्णन है, उसके बारे में मान्यता है कि वह 5000 साल पहले ही सूख चुकी है. इतिहासकारों और पुरातत्वविदों में हमेशा से ही सरस्वती नदी के अस्तित्व को लेकर विवाद रहा है. हरियाणा में आरएसएस नेता दर्शन लाल जैन सरस्वती नदी को फिर से जीवित करने की मुहिम चला रहे हैं.
कुछ विद्वानों के अनुसार सरस्वती और घग्गर-हाकरा नदियों के आसपास ही हड़प्पा की सभ्यता शुरू हुई थी. जबकि अन्य विद्वानों के अनुसार 1500 ईसा पूर्व ऋगवेद में जिस हराहवती का उल्लेख हुआ है असल में वह अफगानिस्तान में बहने वाली हेलमंड नदी के बारे में है.
हरियाणा में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की सरकार बनते ही सरस्वती नदी को फिर से जिंदा करने की घोषणा हुई थी. सरकार ने इसके लिए 50 करोड़ की निधि जारी की और मनरेगा के तहत खुदाई करके जमीन के अंदर के पानी से भरने की अनुमति दी. यही नहीं सरकार वहां नहरें भी खुदवा रही है, जिनमें एक तरफ यमुना से और दूसरी तरफ सोम नदी से पानी लाने की तैयारी है.
इस परियोजना के समर्थक इसे एक प्यासे राज्य को सिर्फ पानी मुहैया कराने से भी ज्यादा संस्कृति और विरासत की खोज का कदम बताते हैं. इसीलिए इस मामले को जल मंत्रालय नहीं संस्कृति मंत्रालय संभाल रहा है.
ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि राज्य सरकार अपने राजनीतिक और वैचारिक लाभ के लिए पौराणिक कथा का इस्तेमाल तो नहीं कर रही? पानी से जुड़े विशेषज्ञ नदी को पुनर्जीवित करने के खिलाफ हैं.
सोसाइटी फॉर डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (SANDRP) के हिमांशु ठक्कर कहते हैं, 6 घंटे के जाम के बारे में सोचो। हमें चाहिए कि हम जीवित नदियों को बचाने की कोशिश करें, न कि करीब 5000 साल पहले सूख चुकी किसी नदी को जिंदा करने के लिए.
ठक्कर कहते हैं, इस परियोजना को लेकर लोगों को बहुत कुछ जानकारी नहीं है, इसलिए आर्किटेक्ट पीपी कपूर ने सबूतों और सार्वजनिक धन के इस्तेमाल को लेकर एक आरटीआई दाखिल की.
इसके जवाब में कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी के भूविज्ञानी एआर चौधरी ने परियोजना के बारे में कहा, 'यह शोध का विषय है और इसके पूरा होने में समय लगेगा.'
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