शनिवार शाम दी जाएगी लेफ्टिनेंट उमर फयाज को श्रद्धांजलि...
नई दिल्ली:
लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को श्रद्धांजलि देने के लिए सेना से जुड़े लोग और आम जनता आज (शनिवार) दिल्ली के इंडिया गेट पर जुटेगी. शाम सात बजे कैंडिल मार्च के जरिए 22 साल के फैयाज को याद किया जाएगा. 10 मई को कश्मीर के शोपियां में आतंकियों ने लेफ्टिनेंट उमर को उस वक्त अगवा करके हत्या कर दी थी, जब वह अपने रिश्तेदार के घर शादी में गए थे. वैसे उमर के हत्या के पीछे हिज्बुल मुजाहद्दीन का हाथ बताया जा रहा था. शुक्रवार को ही जम्मू कश्मीर पुलिस ने हत्या में शामिल तीन संदिग्धों की तस्वीरें भी जारी की हैं.
22 साल के उमर एनडीए के 129वें बैच के कैडेट थे. इसी बैच के साथी फैयाज को याद करने के लिए इंडिया गेट पर मोमबत्ती से रोशनी फैलाने जा रहे हैं ताकि कश्मीर में जो आतंकी अंधेरा फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके. उमर के साथियों का कहना है कि हमनें अपने शरीर का एक हिस्सा खो दिया है, लेकिन उसके बलिदान को बेकार नहीं जाने देंगे. लेफ्टिनेंट उमर जम्मू के अखनूर में तैनात थे और छुट्टी में अपने घर गए थे. लफ्टिनेंट उमर कुलगाम के रहने वाले थे और उनके पिता किसान थे.
उमर अपने इलाके के युवाओं के बीच हीरो के तौर पर लोकप्रिय थे और यही बात आतंकियों को अखर गई. सूत्रों की मानें तो जब आतंकियों ने निहत्थे उमर को अगवा किया तो उससे कहा कि अगर वह फौज छोड़ दे तो उसे नहीं मारेंगे, लेकिन उमर अपने सपने को कैसे मरने देते. जब उमर ने फौज छोड़ने से मना किया तो करीब दस आतंकियों ने मिलकर फौज के इस जाबांज को मार डाला.
सेना का कहना है बेशक उमर अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसने जो सपने देखे हैं उन सपनों को पूरा करने में सेना कोई कसर नहीं छोड़ेगी. वैसे सही मायने में सेना के लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब केवल सेना नहीं बल्कि कश्मीर का हर युवा कहे कि उसके आदर्श उमर हैं और हर किसी को उमर जैसा ही बनना है. भले ही आतंकी कितना डराएं धमकाएं लेकिन किसी भी सूरत में अपने कदम पीछे नहीं हटाएंगे.
22 साल के उमर एनडीए के 129वें बैच के कैडेट थे. इसी बैच के साथी फैयाज को याद करने के लिए इंडिया गेट पर मोमबत्ती से रोशनी फैलाने जा रहे हैं ताकि कश्मीर में जो आतंकी अंधेरा फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके. उमर के साथियों का कहना है कि हमनें अपने शरीर का एक हिस्सा खो दिया है, लेकिन उसके बलिदान को बेकार नहीं जाने देंगे. लेफ्टिनेंट उमर जम्मू के अखनूर में तैनात थे और छुट्टी में अपने घर गए थे. लफ्टिनेंट उमर कुलगाम के रहने वाले थे और उनके पिता किसान थे.
उमर अपने इलाके के युवाओं के बीच हीरो के तौर पर लोकप्रिय थे और यही बात आतंकियों को अखर गई. सूत्रों की मानें तो जब आतंकियों ने निहत्थे उमर को अगवा किया तो उससे कहा कि अगर वह फौज छोड़ दे तो उसे नहीं मारेंगे, लेकिन उमर अपने सपने को कैसे मरने देते. जब उमर ने फौज छोड़ने से मना किया तो करीब दस आतंकियों ने मिलकर फौज के इस जाबांज को मार डाला.
सेना का कहना है बेशक उमर अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसने जो सपने देखे हैं उन सपनों को पूरा करने में सेना कोई कसर नहीं छोड़ेगी. वैसे सही मायने में सेना के लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब केवल सेना नहीं बल्कि कश्मीर का हर युवा कहे कि उसके आदर्श उमर हैं और हर किसी को उमर जैसा ही बनना है. भले ही आतंकी कितना डराएं धमकाएं लेकिन किसी भी सूरत में अपने कदम पीछे नहीं हटाएंगे.
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