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This Article is From Sep 01, 2015

सवालों से घिरे गृह मंत्रालय में 'ऑल इज नॉट वेल'

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सवालों से घिरे गृह मंत्रालय में 'ऑल इज नॉट वेल'
गृह मंत्री राजनाथ सिंह (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: एलसी गोयल के जाने और राजीव महर्षि के आने के बीच यह सवाल बड़ा हो गया है कि क्या गृह मंत्रालय में सब कुछ ठीकठाक है? क्या गृह मंत्री के काम से प्रधानमंत्री संतुष्ट हैं? यह दिख रहा है कि 'ऑल इज नॉट वेल'।

गृह मंत्री के दफ्तर की मानें तो गृह मंत्री राजनाथ सिंह और गृह सचिव के बीच जो खींचतान चल रही थी उसके कारण गृह सचिव को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा।

गृह मंत्रालय के अफसरों के मुताबिक गृह सचिव ने एक बार नहीं कई बार गृह मंत्री के आर्डर को दरकिनार कर दिया था। ताजा उदाहरण अभी एक हफ्ते पहले का ही है। गृह सचिव ने दो अतिरिक्त आयुक्तों और एक संयुक्त आयुक्त के पोर्टफोलियो बदल दिए थे वो भी मंत्रीजी को बिना बताए।  जब मंत्रीजी को पता चला तो वे आग बबूला हो गए। उन्होंने दुबारा उन सब अफसरों के तबादले पर रोक लगा दी।

गृह राज्य मंत्री ने कई बार दोनों के बीच सुलह करवाने की कोशिश भी की लेकिन गृह सचिव साहब ने किसी की नहीं सुनी और अपनी करते रहे। मामला इतना बढ़ गया था कि गृह सचिव साहब ने मंत्रालय के कई प्रपोजल अस्तित्व में आने से पहले ही खारिज कर दिए थे। इस बात को लेकर भी बड़े मंत्री यानि राजनाथ सिंह और गृह सचिव में मनमुटाव था।

पिछले हफ्ते जब गोयल ने डिजास्टर मैनेजमेंट को देख रहे ज्वाइंट सेक्रेटरी का तबादला मंत्री को बिना बताए कर दिया तब गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने शिकायत प्रधानमंत्री को की। प्रधान मंत्री ने भी वित्त मंत्रालय के सचिव राजीव महर्षि को गृह मंत्रालय में ट्रांसफर कर दिया।

वैसे सोमवार को जब गृह सचिव के तौर पर राजीव महर्षि ने कामकाज संभाला तो उस वक्त गृह मंत्री राजनाथ सिंह मौजूद नहीं थे। बताया जा रहा है कि उनके सुझाए गए दो नामों को दरकिनार कर महर्षि को यह जिम्मेदारी दी गई है। मंगलवार को उनके राजनीतिक सलाहकार और करीबी रहे अनंत कुमार को भी उनसे दूर कर दिया गया। इन सारी खबरों के बीच तरह-तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं।

एनडीटीवी को गृह मंत्रालय के सूत्रों से पता चला है कि गृह मंत्रालय में सब कुछ ठीकठाक नहीं है। मंत्रालय में आपसी संपर्क की कमी है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह फैसले टालते रहते हैं। सरकारी नीतियों से अफसर खुश नहीं हैं। सबको लग रहा है कि इस्तेमाल करो और चलता करो की राजनीति हो रही है। मंत्रालय के कामकाज में सुरक्षा सलाहकार का काफी दखल है। राज्यों के साथ केंद्र का कोई खास संपर्क नहीं है। दो साल से इंटर स्टेट बैठक नहीं हुई है। शिकायत यह भी है कि गृह मंत्री सबको साथ लेकर चलने में नाकाम रहे हैं।

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