फाइल फोटो
जयपुर:
कथित तौर पर हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा की गई आतंकी घटनाओं पर नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी (एनआईए) को एक और बड़ा झटका लगा है। अजमेर ब्लास्ट मामले में अभियोजन पक्ष के अब तक 20 महत्वपूर्ण गवाह अब मुकर गए हैं। जयपुर कोर्ट में मंगलवार को 20वां गवाह भी अपने बयान पर कायम नहीं रहा।
अब तक करीब 90 गवाहों से पूछताछ हुई है जिसमें से करीब 20 अपने बयानों से पलट गए हैं और केस में कुल करीब 250 गवाह हैं। अब केस की अगली सुनवाई अब 25 अगस्त को होगी। बताते चलें कि ये धमाका 2007 में हुआ था और इस मामले में एनआईए ने चार्जशीट दाखिल की है, जिसमें कुछ दक्षिणपंथी अतिवादी को आरोपी बनाया गया है। 2007 में हुए ब्लास्ट में तीन लोगों की मौत हो गई थी।
शुरुआत में राजस्थान एटीएस ने इस मामले की छानबीन की थी और अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े तीन लोगों देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चंद्रशेखर लेवे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इसके बाद मामला एएनआई के पास पहुंचा तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अप्रैल 2011 से अक्टूबर 2013 के बीच उपरोक्त तीन लोगों सहित कुल 12 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। ये सभी लोग या तो पूर्व में आरएसएस से जुड़े रहे हैं या उनका किसी अन्य हिन्दूवादी संगठन से संबंध रहा।
इन्हीं लोगों के ग्रुप को 'भगवा आतंक' के रूप में भी पहचान मिली और इनका संबंध 2007 से ही अजमेर दरगाह, मालेगांव और हैदराबाद की मक्का मस्जिद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में धमाकों से जोड़ कर देखा जाता रहा है। अभियोजन पक्ष की ओर से पूरा मामला उनके गवाहों के बयानों पर ही टिका था, जो उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दिए और सभी गवाह कोर्ट में मुकर गए।
खास बात ये ही कि जिन बयानों से गवाह मुकर रहे हैं उनके बारे में उन्होंने 2010 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने कहा था कि वे बिना किसी दबाव में ये बयान दे रहे हैं। लेकिन नवंबर 2014 से अचानक गवाहों ने अपने बयान बदलने शुरू कर दिए और एनआईए पर जबरदस्ती बयान दिलाने का आरोप लगाया।
अब तक करीब 90 गवाहों से पूछताछ हुई है जिसमें से करीब 20 अपने बयानों से पलट गए हैं और केस में कुल करीब 250 गवाह हैं। अब केस की अगली सुनवाई अब 25 अगस्त को होगी। बताते चलें कि ये धमाका 2007 में हुआ था और इस मामले में एनआईए ने चार्जशीट दाखिल की है, जिसमें कुछ दक्षिणपंथी अतिवादी को आरोपी बनाया गया है। 2007 में हुए ब्लास्ट में तीन लोगों की मौत हो गई थी।
शुरुआत में राजस्थान एटीएस ने इस मामले की छानबीन की थी और अक्टूबर 2010 में राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से जुड़े तीन लोगों देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा और चंद्रशेखर लेवे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। इसके बाद मामला एएनआई के पास पहुंचा तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने अप्रैल 2011 से अक्टूबर 2013 के बीच उपरोक्त तीन लोगों सहित कुल 12 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। ये सभी लोग या तो पूर्व में आरएसएस से जुड़े रहे हैं या उनका किसी अन्य हिन्दूवादी संगठन से संबंध रहा।
इन्हीं लोगों के ग्रुप को 'भगवा आतंक' के रूप में भी पहचान मिली और इनका संबंध 2007 से ही अजमेर दरगाह, मालेगांव और हैदराबाद की मक्का मस्जिद जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में धमाकों से जोड़ कर देखा जाता रहा है। अभियोजन पक्ष की ओर से पूरा मामला उनके गवाहों के बयानों पर ही टिका था, जो उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दिए और सभी गवाह कोर्ट में मुकर गए।
खास बात ये ही कि जिन बयानों से गवाह मुकर रहे हैं उनके बारे में उन्होंने 2010 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने कहा था कि वे बिना किसी दबाव में ये बयान दे रहे हैं। लेकिन नवंबर 2014 से अचानक गवाहों ने अपने बयान बदलने शुरू कर दिए और एनआईए पर जबरदस्ती बयान दिलाने का आरोप लगाया।
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