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This Article is From May 23, 2020

प्रियंका गांधी की खास अदिति सिंह की बगावत के पीछे की पूरी कहानी, विधायक की कुर्सी से हटाना आसान भी नहीं

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में अभी से गोटियां बिछनी शुरू हो गई हैं. हाल में प्रवासी मजदूरों के लिए बसों का मुद्दा उसी सियासत का एक हिस्सा है.

प्रियंका गांधी की खास अदिति सिंह की बगावत के पीछे की पूरी कहानी, विधायक की कुर्सी से हटाना आसान भी नहीं
कांग्रेस में अदिति सिंह को प्रियंका गांधी के काफी नजदीक माना जाता है.
नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में अभी से बिसात बिछना शुरू हो गया है. हाल में प्रवासी मजदूरों के लिए बसों का मुद्दा उसी सियासत का एक हिस्सा माना जा रहा है.  उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi)  के बीच 'युद्ध' अपने चरम पर पहुंचा ही था कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से कांग्रेस  की विधायक अदिति सिंह (Aditi Singh ) के बयान ने पार्टी को बैकफुट पर ढकेल दिया. दरअसल यह पहला मौका नहीं था जब पार्टी के रुख के खिलाफ जाकर उन्होंने यह बयान दिया था. इससे पहले भी एनआरसी और जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लगाए जाने के मुद्दे पर भी उन्होंने पार्टी की विचारधारा के खिलाफ बयान दिया है. यहां एक बात और बता दें कि बीते साल कांग्रेस ने रायबरेली सदर से  विधायक अदिति सिंह की सदस्यता रद्द करने के लिए याचिका दायर की  थी. कांग्रेस विधानमंडल दल की नेता आराधना मिश्रा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के सामने यह याचिका दाखिल की है. दरअसल, अदिति सिंह ने पार्टी के खिलाफ जाकर गांधी जयंती पर आयोजित विशेष सत्र में हिस्सा लिया था. आराधना मिश्रा ने यूपी सदस्य दल परिवर्तन की निर्भरता नियमावली 1987 के तहत यह प्रर्थना पत्र भेजा था. फिलहाल उसके बाद इस पत्र पर क्या हुई इसकी कोई जानकारी नहीं है. इसके बाद पार्टी ने उन्हें कांग्रेस के महिला विंग महासचिव के पद से हटा दिया था. लेकिन विधायक के पद से हटाने का फैसला भी विधानसभा अध्यक्ष ह्दय नारायण दीक्षित को करना है. क्योंकि अगर कांग्रेस उनको पार्टी से निकालेगी तब भी अदिति सिंह की विधायक वाली कुर्सी पर कोई खतरा नहीं आएगा. 

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उत्तर प्रदेश में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की रायबरेली सीट ही कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती रही है. इस बार हुए लोकसभा चुनाव 2019में भी कांग्रेस ने यहां बहुत खराब प्रदर्शन करते हुए भी 1 लाख के अंतर से बीजेपी प्रत्याशी दिनेश सिंह को हराया है. लेकिन पिछली बार की तुलना में कांग्रेस की जीत का अंतर घट गया है. दरअसल कांग्रेस की हालत यहां पर 2017 में हुई विधानसभा चुनाव से ही खराब होती दिख रही थी. लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें हैं जिनमें से दो कांग्रेस, दो बीजेपी और एक समाजवादी पार्टी के पास थी. बीजेपी रायबरेली में सोनिया के गढ़ को ध्वस्त करना चाहती है. इसके पहले उसने गांधी परिवार के बहुत करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के एमएलए दिनेश सिंह को बीजेपी  ज्वाइन करवाई थी. दिनेश सिंह के छोटे भाई अवधेश सिंह रायबरेली की हरचंदपुर सीट से कांग्रेस विधायक हैं. उनके बड़े भाई के बीजेपी में जाने के बाद वे भी बीजेपी के साथ ही माने जा रहे हैं.

लेकिन क्षेत्र की इन सभी राजनीतिक उठापटक के बाद भी कांग्रेस के पास एक तुरुप का पत्ता था ऐसा था जो जिले के सभी बाहुबलियों पर अकेले पड़ा था. वह थे रायबरेली सदर से पूर्व विधायक और बाहुबली नेता अखिलेश सिंह. मौजूदा सदर विधायक अदिति सिंह उन्हीं की बेटी हैं. अखिलेश सिंह रायबरेली सदर से अजेय विधायक रहे हैं. उनको हराने के लिए कांग्रेस ने एड़ी-चोटी का जोर कई बार लगाया लेकिन सफल नही हो पाई. इसके बाद अखिलेश सिंह को कांग्रेस में शामिल कराया गया. कांग्रेस को इसका फायदा मिला और लोकसभा चुनाव में अखिलेश सिंह के रसूख के चलते रायबरेली में सदर से कांग्रेस के एकतरफा वोटें मिलती थीं जो सोनिया गांधी की जीत का अंतर बहुत ज्यादा बढ़ा देती थीं. लेकिन बीते साल बीमारी के चलते अखिलेश सिंह का निधन हो गया.

अखिलेश सिंह के रहने पर जिले में उनके प्रतिद्वंदी अदिति सिंह (Aditi Singh) पर हावी होने की कोशिश करते दिखे. बीते साल ही रायबरेली लखनऊ रोड पर अदिति सिंह पर एक कथित हमले की भी घटना हुई. इसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई दी और इस घटना का प्रियंका गांधी ने भी विरोध किया. इस घटना के बाद अदिति सिंह को भी समझ आ गया कि जिले के बदलते समीकरणों के बीच यहां की राजनीति को दिल्ली के नेताओं को भरोसे नहीं थामा जा सकता है. 

अदिति सिंह जिनको राजनीति में लाने का सबसे बड़ा हाथ प्रियंका गांधी  का माना जाता है, उन्हीं से खुली बगावत का ऐलान कर दिया. 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन लखनऊ में प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस का मार्च था जिसको लेकर कांग्रेस ने ह्विप भी जारी किया था. वहीं दूसरी ओर योगी सरकार की ओर से 36 घंटे तक चलने वाला विधानसभा सत्र बुलाया गया जिसका समूचे विपक्ष ने बायकॉट किया. लेकिन अदिति सिंह ने अपनी पार्टी की ह्विप को नजरंदाज कर विधानसभा सत्र में हिस्सा लिया. जब इस पर उनसे सवाल किया गया तो सीधा कोई जवाब देने के बजाए उन्होंने कहा, 'मुझे जो ठीक लगा वो मैंने किया. पार्टी का क्या निर्णय होगा मुझे नहीं मालूम. मैं पढ़ी-लिखी युवा एमएलए हूं. विकास का मुद्दा बड़ा मुद्दा है. यही गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि है.'

मौजूदा समय रायबरेली की 5 विधानसभा सीटों में से दो कांग्रेस, दो बीजेपी और एक समाजवादी पार्टी के पास थी. लेकिन दिनेश सिंह के बीजेपी में जाने के बाद से उनके भाई जो कि हरचंदपुर से विधायक हैं वो भी एक तरह से बीजेपी में ही माने जाते हैं. यानी चार विधायक पहले से ही बीजेपी के खाते में हैं. अदिति सिंह के जाने पर विधायकों की संख्या 5 हो जाएगी. इस लोकसभा चुनाव में जीत का अंतर देखते हुए ऐसा लगता है कि अदिति सिंह का बीजेपी में जाना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा. 

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