
मुंबई:
आदर्श हाउसिंग सोसाइटी में कथित अनियमितता की जांच कर रहे दो सदस्यीय आयोग ने बुधवार को महाराष्ट्र के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों विलासराव देशमुख और सुशील कुमार शिंदे को अगले महीने उपस्थित होने को कहा है ताकि उनका बयान दर्ज किया जा सके।
देशमुख को 21 और 22 जून को उपस्थित होने को कहा गया है जबकि शिंदे को 25 और 26 जून को उपस्थित होने को कहा गया है। बम्बई उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश जे ए पाटिल के नेतृत्व वाले आयोग ने समन जारी किया है।
बहरहाल, आयोग ने एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की याचिका पर फैसला कल तक के लिए सुरक्षित रखा है। चव्हाण ने अपनी याचिका में गवाही के लिए उपस्थित होने से छूट प्रदान किये जाने की मांग की थी।
चव्हाण को आज आयोग के समक्ष उपस्थित होना था। हालांकि उन्होंने कल याचिका दायर कर उपस्थित होने से छूट दिये जाने का आग्रह किया। आयोग के वकील दिपन मचे’ट ने दलील दी कि गवाहों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वह कोई भी हो और कितना उंचा पद पर क्यों न हो। गवाहों को आयोग के समक्ष उपस्थित होना होगा और सूचना प्रदान करनी होगी।
देशमुख और शिंदे ने पिछले वर्ष जून में आयोग के समक्ष अपने हलफनामे में दावा किया कि मुम्बई में आदर्श भूमि महाराष्ट्र सरकार की है और यह कभी भी करगिल युद्ध के वीर रक्षा सेनानियों के लिए आरक्षित नहीं थी।
देशमुख ने कहा था, ‘‘मुम्बई के कलेक्टर के दस्तावेजों से स्पष्ट है कि जमीन राज्य सरकार की है। जमीन का स्वामित्व कभी भी मुद्दा नहीं रहा जहां तक मेरी समझता हूं।’’ उन्होंने उन आरोपों से भी स्पष्ट इंकार किया कि घोटाले से दागदार हुई कोआपरेटिव सोसाइटी के एक प्रवर्तक कन्हैयालाल गिडवानी के साथ लगातार बैठकें की।
देशमुख ने हलफनामे में कहा था, ‘‘मैं इस बात से इंकार करता हूं कि गिडवानी की शह पर राजस्व विभाग को आदर्श को जमीन आवंटित करने के मामले को आगे बढ़ाने को कहा गया। यह कहना कि मैंने गिडवानी के पक्ष में गलत तरीके से आदर्श भूमि आवंटित करने का आदेश दिया, यह दुर्भावना से प्रेरित है।’’
शिंदे ने देशमुख के बयान की पुष्टि की थी कि आदर्श भूमि महाराष्ट्र सरकार की है और जमीन का आवंटन उपयुक्त ढंग से सभी दस्तावजों की जांच परख करने के बाद किया गया था। उन्होंने आयोग को बताया था, ‘‘18 जनवरी 2003 के आशय पत्र से स्पष्ट है कि भूमि का आवंटन जुलाई 1999 के सरकारी प्रस्ताव (जीआर) के तहत किया गया जिसमें युद्ध के वीरों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है।’’ शिंदे ने सोसाइटी के सदस्यों से लाभ प्राप्त करने के आरोपों को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया और उंची इमारत बनाने की अनुमति प्रदान करने से पहले राज्य सरकार के कई अधिकारियों ने इसका सत्यापन किया।
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘मई 2003 से नवंबर 2004 तक मेरे कार्यकाल के दौरान मुझे आदर्श सोसाइटी को जमीन के आवंटन में कथित अनियमितता की कोई शिकायत नहीं मिली।’’ अंतरिम रिपोर्ट में आयोग ने कहा था कि यह जमीन राज्य सरकार की है जो रक्षा मंत्रालय के उस दावे के विपरीत है कि यह रक्षा भूमि है।
देशमुख को 21 और 22 जून को उपस्थित होने को कहा गया है जबकि शिंदे को 25 और 26 जून को उपस्थित होने को कहा गया है। बम्बई उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश जे ए पाटिल के नेतृत्व वाले आयोग ने समन जारी किया है।
बहरहाल, आयोग ने एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की याचिका पर फैसला कल तक के लिए सुरक्षित रखा है। चव्हाण ने अपनी याचिका में गवाही के लिए उपस्थित होने से छूट प्रदान किये जाने की मांग की थी।
चव्हाण को आज आयोग के समक्ष उपस्थित होना था। हालांकि उन्होंने कल याचिका दायर कर उपस्थित होने से छूट दिये जाने का आग्रह किया। आयोग के वकील दिपन मचे’ट ने दलील दी कि गवाहों के बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वह कोई भी हो और कितना उंचा पद पर क्यों न हो। गवाहों को आयोग के समक्ष उपस्थित होना होगा और सूचना प्रदान करनी होगी।
देशमुख और शिंदे ने पिछले वर्ष जून में आयोग के समक्ष अपने हलफनामे में दावा किया कि मुम्बई में आदर्श भूमि महाराष्ट्र सरकार की है और यह कभी भी करगिल युद्ध के वीर रक्षा सेनानियों के लिए आरक्षित नहीं थी।
देशमुख ने कहा था, ‘‘मुम्बई के कलेक्टर के दस्तावेजों से स्पष्ट है कि जमीन राज्य सरकार की है। जमीन का स्वामित्व कभी भी मुद्दा नहीं रहा जहां तक मेरी समझता हूं।’’ उन्होंने उन आरोपों से भी स्पष्ट इंकार किया कि घोटाले से दागदार हुई कोआपरेटिव सोसाइटी के एक प्रवर्तक कन्हैयालाल गिडवानी के साथ लगातार बैठकें की।
देशमुख ने हलफनामे में कहा था, ‘‘मैं इस बात से इंकार करता हूं कि गिडवानी की शह पर राजस्व विभाग को आदर्श को जमीन आवंटित करने के मामले को आगे बढ़ाने को कहा गया। यह कहना कि मैंने गिडवानी के पक्ष में गलत तरीके से आदर्श भूमि आवंटित करने का आदेश दिया, यह दुर्भावना से प्रेरित है।’’
शिंदे ने देशमुख के बयान की पुष्टि की थी कि आदर्श भूमि महाराष्ट्र सरकार की है और जमीन का आवंटन उपयुक्त ढंग से सभी दस्तावजों की जांच परख करने के बाद किया गया था। उन्होंने आयोग को बताया था, ‘‘18 जनवरी 2003 के आशय पत्र से स्पष्ट है कि भूमि का आवंटन जुलाई 1999 के सरकारी प्रस्ताव (जीआर) के तहत किया गया जिसमें युद्ध के वीरों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है।’’ शिंदे ने सोसाइटी के सदस्यों से लाभ प्राप्त करने के आरोपों को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया और उंची इमारत बनाने की अनुमति प्रदान करने से पहले राज्य सरकार के कई अधिकारियों ने इसका सत्यापन किया।
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘‘मई 2003 से नवंबर 2004 तक मेरे कार्यकाल के दौरान मुझे आदर्श सोसाइटी को जमीन के आवंटन में कथित अनियमितता की कोई शिकायत नहीं मिली।’’ अंतरिम रिपोर्ट में आयोग ने कहा था कि यह जमीन राज्य सरकार की है जो रक्षा मंत्रालय के उस दावे के विपरीत है कि यह रक्षा भूमि है।
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