कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (फाइल फोटो)
बेंगलुरु:
येदियुरप्पा जैसे कद्दावर मुख्यमंत्री को जेल की सैर करवाने वाले कर्नाटक के लोकायुक्त संस्था पर ताले जड़ने की कवायद सरकार ने पूरी कर ली है। सिद्धारमैया सरकार ने एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पास किया है सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने आदेश की आड़ में जिसके तहत कर्नाटक में अब एक एंटी करप्शन ब्यूरो बनाया जा रहा है जो कि एक एडीजीपी रैंक के अधिकारी की देख रेख में काम करेगा और ये विभाग चीफ सेक्रेटरी के अधीन होगा।
यानी लोकायुक्त पुलिस की जांच और प्रॉसिक्यूशन का अधिकार छीन कर एसीबी को दे दिया गया है। यानी लोकयुक्त से पुलिस महकमा हटा लिया जाएगा। अबतक एक एडीजीपी रैंक का अधिकारी लोकायुक्त पुलिस का प्रमुख होता था।
पूर्व लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने बतया कि इस आदेश के तहत लोकायुक्त पुलिस को लोकायुक्त से छीन लिया गया है, यानी इसकी शक्तियां ख़त्म कर दी गयी हैं। इसके तहत एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी पर 8 सदस्यीय समिति निगरानी रखेगी जो कि मुख्यमंत्री के प्रति जवाबदेह होगी। जाहिर है कि ऐसा कर नेता अपने गैरकानूनी क्रियाकलापों को छुपाना चाहते हैं।
बीजेपी नेता और राज्य के पूर्व कानून मंत्री सुरेश कुमार के मुताबिक 32 साल पहले जब इस संस्था की बुनियाद राम कृष्ण हेगड़े के मुख्यमंत्री काल में राखी गयी थी तब सिद्धारमैया वहां थे और आज उन्होंने ही इस संस्था की बली दे दी, यकीन नहीं होता।
कर्नाटक के जाने माने आरटीआई कर्यकर्ता एस.आर. हिरेमठ ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके कैबिनेट के 4 मंत्री भ्रटाचार के आरोपों से घिरे हैं। ऐसे में बचाव के लिए इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को तोड़ मोड़ कर इस संस्था का रूप दिया है।
कर्नाटक आम आदमी पार्टी के मीडिया प्रमुख के सिद्धार्थ का कहना है कि उनकी पार्टी इस फैसले के खिलाफ सड़क पर उतरेगी। लोकायुक्त की शक्तियां इस तरह छीनना ठीक नहीं।
वहीं राज्ये के कानून मंत्री टी जयचंद्रा ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि ये फैसला भरष्टाचार को काबू में करने में मददगार साबित होगा और दोनों संस्थाएं अपना काम करेंगी।
हालांकि उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि लोकायुक्त अमेंडमेंट एक्ट में बदलाव लाये बगैर वो कैसे लोकायुक्त की शक्ति उससे छीन सकते हैं और पुलिस को उससे अलग कर सकते हैं।
18 मार्च से कर्नाटक विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है, ऐसे में हो सकता है कि राजनीतिक दल इस मामले को उठाएं। हालांकि राजनीतिक दलों को लगता है कि एसीबी उनके हित को साधने में मददगार साबित होगी।
यानी लोकायुक्त पुलिस की जांच और प्रॉसिक्यूशन का अधिकार छीन कर एसीबी को दे दिया गया है। यानी लोकयुक्त से पुलिस महकमा हटा लिया जाएगा। अबतक एक एडीजीपी रैंक का अधिकारी लोकायुक्त पुलिस का प्रमुख होता था।
पूर्व लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने बतया कि इस आदेश के तहत लोकायुक्त पुलिस को लोकायुक्त से छीन लिया गया है, यानी इसकी शक्तियां ख़त्म कर दी गयी हैं। इसके तहत एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी पर 8 सदस्यीय समिति निगरानी रखेगी जो कि मुख्यमंत्री के प्रति जवाबदेह होगी। जाहिर है कि ऐसा कर नेता अपने गैरकानूनी क्रियाकलापों को छुपाना चाहते हैं।
बीजेपी नेता और राज्य के पूर्व कानून मंत्री सुरेश कुमार के मुताबिक 32 साल पहले जब इस संस्था की बुनियाद राम कृष्ण हेगड़े के मुख्यमंत्री काल में राखी गयी थी तब सिद्धारमैया वहां थे और आज उन्होंने ही इस संस्था की बली दे दी, यकीन नहीं होता।
कर्नाटक के जाने माने आरटीआई कर्यकर्ता एस.आर. हिरेमठ ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनके कैबिनेट के 4 मंत्री भ्रटाचार के आरोपों से घिरे हैं। ऐसे में बचाव के लिए इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को तोड़ मोड़ कर इस संस्था का रूप दिया है।
कर्नाटक आम आदमी पार्टी के मीडिया प्रमुख के सिद्धार्थ का कहना है कि उनकी पार्टी इस फैसले के खिलाफ सड़क पर उतरेगी। लोकायुक्त की शक्तियां इस तरह छीनना ठीक नहीं।
वहीं राज्ये के कानून मंत्री टी जयचंद्रा ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि ये फैसला भरष्टाचार को काबू में करने में मददगार साबित होगा और दोनों संस्थाएं अपना काम करेंगी।
हालांकि उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं था कि लोकायुक्त अमेंडमेंट एक्ट में बदलाव लाये बगैर वो कैसे लोकायुक्त की शक्ति उससे छीन सकते हैं और पुलिस को उससे अलग कर सकते हैं।
18 मार्च से कर्नाटक विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है, ऐसे में हो सकता है कि राजनीतिक दल इस मामले को उठाएं। हालांकि राजनीतिक दलों को लगता है कि एसीबी उनके हित को साधने में मददगार साबित होगी।
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