
सियासत की बहुत पुरानी कहावत है कि इसमें ना कोई हमेशा के लिए दोस्त या दुश्मन नहीं होता जबतक की विचारधारा के दो अलग मोड़ पर दोनों ना खड़े हों, लेकिन कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि विचारधाराओँ के विरोध के बावजूद लोग किसी कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का नाम देकर जुड़ जाते हैं सत्ता के चुंबक से। इसलिए ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है कि यूपीए के पुराने साथी पिछले कुछ सालों में धीरे−धीरे यूपीए को छोड़कर चले गए हैं और इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं होगा कि इनमें से कल को कई यूपीए के पुराने साथी किसी एनडीए की नई बनावट में नज़र आएं।
ममता से लेकर नवीन पटनायक तक और नवीन पटनायक से लेकर मायावती तक और करुणानिधि या जयललिता तक सब किसी ना किसी समय एनडीए का हिस्सा रह चुके हैं या उसे समर्थन दे चुके हैं, इसलिए ये तो साफ़ है कि आज का यूपीए कल क्या होगा ये किसी को नहीं मालूम और कल का एनडीए क्या होगा इस बात को ध्यान में रखते हुए उससे मोदी फैक्टर अब जुड़ा है ये भी किसी को नहीं मालूम।
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