बात टोपी की…टोपी के बारे में यह कहा जाता है कि सियासत में कोई न कोई किसी न किसी को कभी न कभी टोपी पहनाने की कोशिश करता ही है। आजकल टोपियों की बहस केजरीवाल साहब और उनके समर्थकों की वजह से चल रही है। बीजेपी केजरीवाल को तो टोपी पहना नहीं पाई और केजरीवाल सरकार बनाने में कामयाब हो गए… इसलिए बीजेपी ने केजरीवाल के जैसी टोपी पहन ली। हालांकि ये टोपी जिस पर मैं हूं आम आदमी लिखा होता है यह भ्रष्टाचार के सामाजिक आंदोलन की टोपी है, जिस पर मैं हूं अन्ना लिखा होता था। उसके बाद टोपी वही रही जुम्ला बदल गया..और टोपी पर लिखा आने लगा मैं हूं आम आदमी। ये टोपी जैसे ही चली…टोपी वही रही लेकिन जुम्ला फिर नया आ गया मोदी फॉर पीएम…तो दिल्ली और दिल्ली के आसपास की सियासत का यह है अभी तक का सफ़र…
टोपी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किस लिए किया गया..धरने और प्रदर्शन के दौरान अपनी पार्टी की पहचान बनाने के लिए… टीवी के युग में ये टोपियां नजर आने लगीं और अन्ना के समय में तो लोगों ने फैशन के लिए भी ये टोपियां पहनीं। अब टोपियों की नकल हो ही चुकी थी, तो धरनों की रणनीति की भी नकल होने लगी…
हालत यह हो चुकी है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच जंग में ऐसा साबित करने की कोशिश की जा रही है कि हमारा धरना तुम्हारे धरने से बेहतर है…और घरों के सामने धरना करने की भी होड़ लग गई। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि धरनों की सियासत आने वाले समय में कितना और जोर पकड़ती है या ये सिर्फ मीडिया में बने रहने का फॉर्मूला है।
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