39 साल के प्रशांत किशोर, यूपी चुनाव में कांग्रेस के लिए रणनीतिकार हैं
वाराणसी:
बनारस की सड़कों पर सूरज चरम पर था और गर्मी बढ़ रही थी, ऐसे में राजनीति के सबसे चर्चित चेहरे की बात करना पता नहीं कितना मुनासिब है. लेकिन लकड़ी के पैनलों से घिरे एक कमरे में खिड़की से आती रोशनी के बीच प्रशांत किशोर जिस तरह बैठे हैं - लगता नहीं, यह गर्मी उनका कुछ बिगाड़ सकती है. एक दूसरे पर कीचड़ उछालने के लिए बदनाम इस शहर में प्रशांत का कुर्ता-पायजामा देखकर लगता नहीं कि उन्हें इन सबसे कोई फर्क पड़ता है. कमरे के गहरे रंग के बीच प्रशांत के लिबास की सफेदी आंखों को जो अजीब-सा सुकून दे रही है, यह शांति उससे काफी अलग है, जिसकी योजना प्रशांत बाहर के लिए बना रहे हैं.
जैसा कि किशोर के साथ होता आया है, वह जो भी काम करते हैं - भले ही वह कितना भी एकांत में क्यों न हो रहा हो - उसका नतीजा जल्द ही बदलाव के रूप में जनता के सामने आता है. उनका भी यही मानना है कि सार्वजनिक मंच पर बहुत ज्यादा सामने न आना ही उन्हें बनाए रखता है. वह इंटरव्यू देने से खुद को दूर रखते हैं. अनौपचारिक बातचीत में उनका तरीका सवाल पर सवाल करना है. अगर आप उनसे पूछेंगे कि क्या सोनिया गांधी जैसी शख्सियत के लिए इतनी भीड़ काफी है तो उनका जवाब होगा 'क्या यह काफी नहीं थी?' अगर आप उनसे पूछ बैठेंगे कि उन्हें क्यों लगता है कि उत्तर प्रदेश में उनका कोई चांस बनता है तो सवाल मिलेगा 'आपको क्यों लगता है कि मेरा चांस नहीं होगा?'
जैसे ही मीडिया की भीड़ लगती है, बादल आकाश में फैल जाते हैं और खिड़की के बाहर अंधेरा छा जाता है. किशोर बाहर झांकते हुए कहते हैं 'इसे कहते हैं किस्मत, यह मेरे प्लान में नहीं था.'
यहीं से थोड़ी ही दूरी पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को रोडशो शुरू हो चुका है. पहले कुछ मिनटों के अपडेट रैली में मौजूद किशोर के कुछ साथियों द्वारा व्हॉट्सऐप किए जाते हैं, जो कांग्रेस अध्यक्ष के साथ आठ किलोमीटर का रूट तय करने वाले हैं. वीडियो में एक और नई बात सामने आती है - लेकिन इसकी किसी ने अपेक्षा नहीं की थी - सफेद रंग की ऊपर से खुली मर्सिडीज़ एसयूवी के बजाय सोनिया गांधी एक सामान्य एसयूवी में जा रही हैं. यानि जनता का ठीक से आह्वान करने के लिए उन्हें आधा दरवाज़ा खोलकर बाहर की तरफ झुकना पड़ेगा. यह भी प्लान में बिल्कुल नहीं था.
किशोर का फोन बजता है. सोनिया गांधी को सिर्फ दो ही लोग निर्देश दे सकते हैं, यह उनमें से एक की आवाज़ थी 'उनसे कहिए कि वह खुली कार में चली जाएं, उन्हें चेंज करने को कहिए.' विशेष सुरक्षा दल के अफसरों के बीच सोनिया गांधी के इस दौरे से संबंधित निर्देशों के बारे में कुछ बातचीत होती है. बातचीत पूरी होने के बाद किशोर एक फोन करते हैं 'मैडम से कार बदलने के लिए कहिए. खुली वाली कार.'
अगले कुछ घंटों तक श्रीमती गांधी का जत्था एक तरह से रेंगता दिखाई देता है. छोटे छोटे फोन कॉल, वीडियो ब्रीफ, फोन पर किसी तरह का कोई निर्देश नहीं और सूचना के नाम पर सिर्फ बीच-बीच में भीड़ की संख्या का पता लगाते रहना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र पर कब्ज़ा जमाने की कोशिश को कुछ इस तरह दिशा दे रहे हैं प्रशांत किशोर.
दोपहर 2 बजे के करीब, हज़ारों में उमड़ी भीड़ की संख्या दोगुनी हो गई है. कांग्रेस का एक सिरा इस संख्या की पुष्टि भी करना चाह रहा है. बताया जाता है कि किशोर ने पार्टी में उनके प्रयासों का समर्थन कर रहे कुछ लोगों के सामने यह कहा था कि 'वह इलाहबाद, लखनऊ या कोई और जगह चाह रहे थे लेकिन मैंने साफ कर दिया कि या तो वाराणसी में होगा या फिर भूल जाइए.'
कुछ-बड़ा-करो-या-घर-जाओ - 39 साल के रणनीतिकार का यही अंदाज़ है - फिर वह 2014 में पीएम की जीत हो, या बिहार में नीतीश कुमार का विजयी उद्गोष या फिर अब कांग्रेस के लिए राजनीतिक राजधानी माने जाने वाला राज्य जिसके दरवाज़े गांधी परिवार के लिए हमेशा खुले हैं. सूत्रों की मानें तो हालिया बैठक में किशोर ने दावा किया कि उत्तरप्रदेश में अपने तगड़े विरोधियों से ज्यादा कवरेज कांग्रेस को मिल रहा है - 'पिछले 30 या 60 दिन का मीडिया उठाकर देख लीजिए...कांग्रेस से ज्यादा किस पार्टी को कवरेज मिला है.'
ठोस आंकड़ों को ज़मीनी स्तर पर जांचने का काम करने वाले कार्यकर्ताओं से किशोर यह कहते हुए पाए गए कि उन्हें उम्मीद है कि दिसंबर तक ब्राह्मण, ऊंची जाति, गैर-जाटव दलित (जाटवों को पारंपरिक तौर पर मायावती का समर्थक बताया जाता रहा है) और अन्य गैर-यादव पिछड़ी जाति की मदद से कांग्रेस चामत्कारिक रूप से उत्तर प्रदेश में दूसरे स्थान पर पहुंच जाएगी. इसके बाद उन्हें पूरा भरोसा है कि राज्य के मुसलमान कांग्रेस से हाथ मिलाएंगे जो भारत के सबसे बड़े राज्य में पार्टी के लिए आखिरी मील का पत्थर साबित होगा. किशोर के हिसाब से इन समूहों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए अभियान से करीब 37 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हो सकते हैं. एक पार्टी मीटिंग में किशोर ने कहा 'कांग्रेस में एक तरह की भावना सबके अंदर है. होना यह चाहिए कि आप चंद समूहों का तुष्टिकरण करें और फिर सब पर राज करें. कांग्रेस उल्टा करती है - वह सबसे अपील करती है और फिर जब वह चुन ली जाती है तो तुष्टिकरण शुरू कर देती है.'
खैर, इस तरह के संदेश को समझने में शायद अभी वक्त लगे. फिलहाल प्रशांत किशोर का मिशन है कि कांग्रेस अपनी पुरानी परंपराओं और प्रवृत्ति को पीछे छोड़कर राज्य में सबसे सक्रिय पार्टी बनकर उभरे. इसलिए जहां अन्य पार्टियों ने अभी तक अपने चुनावी अभियान का बिगुल भी नहीं बजाया है, वहीं कांग्रेस ने महीनों पहले ब्राह्मण-केंद्रित रणनीति सामने रख दी है, मुख्यमंत्री के उम्मीदवार का नाम घोषित कर दिया गया, राहुल गांधी मीडिया की मौजूदगी में लखनऊ के एक खुले मैदान में कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करते हैं और श्रीमती गांधी वाराणसी में जनता का अभिनंदन करती हैं.
किशोर की योजना सामने आने से पहले ज्यादातर कांग्रेस नेताओं ने इनमें से हर एक कार्यक्रम को असफल करार दिया था. पार्टी सूत्रों के मुताबिक किशोर की रणनीति सहयोगपूर्ण होने के साथ साथ लड़ाकू स्तर की भी होती है. वह अपनी योजनाओं पर फीडबैक भी मांगते हैं, लेकिन उसे आसानी से बदलते भी नहीं हैं. लगातार झेल रहे विरोधों के बीच प्रशांत ने अपने साथियों से कथित तौर पर कहा था कि 'मैं समझता हूं. उनके लिए काफी वक्त से कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. कुछ भी नया होगा तो पहली चिंता यही होगी - अगर कुछ गलत हो गया तो?'
हाल ही में उन्होंने अपने विचारों को अमली जामा पहनाने के लिए कुछ अलग बिंदुओं पर ज़ोर दिया. जब उन्होंने पिछले महीने जुलाई में राहुल गांधी और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच बैठक आयोजित की तो उन्होंने लखनऊ का वह मैदान चुना, जहां से अक्सर पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भाषण देती थीं. उन्होंने मीडिया को बुलाए जाने पर ज़ोर दिया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को मीडिया की मौजूदगी में आगे की सीटें खाली होने और राहुल गांधी के जवाबों से उस काडर के आश्वस्त न होने का डर सता रहा था, जो लोकसभा चुनाव में पार्टी के राज्य में चौथे नंबर पर आने से काफी निराश हो गए थे.
पुलिस के मुताबिक इस बैठक में 50 हज़ार लोग शामिल हुए थे. किशोर के सहयोगियों ने मीडिया को 70 हज़ार से ज्यादा कार्यकर्ताओं के आने की बात कही. किशोर ने कांग्रेस से कहा कि उनके हिसाब से 'राहुल गांधी ने 10 में से 8 जवाब सही दिए.' किशोर के साथ नज़दीकी से काम करने वालों के मुताबिक लखनऊ कार्यक्रम ने एक तरह से सबके लिए आगाज़ का काम किया है - राहुल गांधी के लिए जिन्होंने कार्यकर्ताओं से सार्वजनिक तौर पर बातचीत की, कांग्रेस के लिए जो अपने रणनीतिकार पर भरोसा रखें, और I-PAC के लिए जिसके किशोर प्रमुख हैं और जिसने चार दिन बाद वाराणसी के रोडशो की कमान अपने हाथों में ली.
I-PAC का अनुमान है कि चुनाव से तीन महीने पहले वह 1200 लोगों को काम पर लगा देगा, फिलहाल उनके 800 लोग राज्य में काम कर रहे हैं. उनमें से सबसे जूनियर स्तर पर काम करने वाले वे हैं, जो श्रीमती गांधी के रोडशो के दौरान अलग-अलग रूट पर तैनाती करते हैं. काली टीशर्ट और जीन्स पहने यह युवा नोटबुक पर कुछ कुछ लिखते हुए दिखाई पड़ते हैं और जब उनसे किशोर के स्टार्ट अप के बारे में पूछा जाता है तो जवाब भी फुर्ती से मिलता है. कमलापति त्रिपाठी की मूर्ति के पास एक इमारत की छत पर अपने दो साथियों के साथ ड्यूटी निभा रहा एक युवा कहता है, 'मैं यहां पैदा हुआ था. मुझे यूपी की फिक्र है. राजनीति की नहीं, लेकिन यूपी की. इसलिए मैं यहां हूं.'
उधर कुछ किलोमीटर की दूरी पर पांच सितारा होटल में किशोर की स्क्रिप्ट जारी है. हालांकि किशोर ने जिन्हें मनाकर या दबाव बनाकर जो लिस्ट तैयार की है, उसमें प्रियंका गांधी वाड्रा के काम का विवरण अभी तक शामिल नहीं है. चंद ही लोग हैं जिन्हें लगता है कि जून में प्रियंका गांधी के मुख्यमंत्री पद के दावेदारी की रिपोर्ट के पीछे किशोर का हाथ नहीं था. अगर यह पार्टी पर एक दवाब डालने वाली रणनीति थी तो भी इसने उलटा असर किया. सच्ची या झूठी, यह सूचना जैसी भी थी, कांग्रेस इस ख़बर के लीक होने से काफी चिढ़ गई और बदले में यह कहती हुई पाई गई कि प्रियंका न ही चुनावी अभियान का चेहरा हैं और तो और अमेठी और रायबरैली के बाहर प्रियंका के किसी भी तरह की बड़ी रैली के आयोजन की कोई संभावना ही नहीं बनती. किशोर के लिए यह एक तरह से संकेत था कि वह अपनी सीमा में ही रहें.
लेकिन उनके नज़दीकियों की मानें तो प्रशांत एक और योजना पर काम कर रहे हैं, जिसमें वह राहुल गांधी के साथ मिलकर एक बड़ी घोषणा करने वाले हैं. (प्रियंका की अगुवाई की खबरों को दरकिनार करते हुए) राहुल की प्रमुखता स्थापित होने के बाद, प्रियंका की उपस्थिति पर काम किया जाएगा, बड़ी-बड़ी चुनावी बैठकों में नहीं, बल्कि छोटे स्तर पर 'जनता से संचार स्थापित करने वाले कार्यक्रमों' में उनकी मौजूदगी होगी. वैसे काफी कुछ उनकी मां की सेहत पर निर्भर करता है.
दोपहर करीब ढाई बजे किशोर के पास फोन आता है कि श्रीमती गांधी की तबियत ठीक नहीं है. सभी बड़े कांग्रेस नेता शहर में मौजूद थे और महकमे में यह ख़बर भी थी कि उन्हें बुखार है. उन्हें किशोर की टीम ने बताया कि वह कार बदल रही हैं और थोड़ी ही देर में फिर दिखाई देंगी, मीडिया से भी यही कहा गया. सोनिया गांधी के साथ जो मौजूद थे, उन्हें निर्देश दिए गए कि कांग्रेस अध्यक्ष जनता से बात करने के लिए ज़रा कम रुकें, अपनी ताकत को थोड़ा सहेजें और टाटा सफारी के दरवाज़ें से बाहर ज्यादा न झुकें, जिसका इस्तेमाल वह एसपीजी के कहने पर उन इलाकों में कर रही हैं, जहां खुली मर्सिडीज़ में जाना उनके लिए असुरक्षित है.
30 मिनट बाद टीवी चैनल ने श्रीमती गांधी को एक मुसलमान इलाके में वापसी करते हुए देखा. बादल छट चुके हैं. घरों की छतों पर भीड़ लगी है, सड़कें समर्थकों से लबालब भरी हैं. घंटों बाद, I-PAC इन चुने हुए कुछ दृश्यों को यह कहते हुए मीडिया को सौंपती हैं कि कार्यक्रम सफल रहा. चुनावी अभियान का यह गुर किशोर ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से कथित तौर पर सीखा है. बताया जाता है कि 2014 की सफलता के कुछ हफ्तों बाद इन दोनों के बीच बढ़ती कड़वाहट के बाद किशोर ने बीजेपी से अपने रास्ते अलग कर लिए थे.
इस चुस्त रणनीतिकार के आलोचकों की मानें तो मतभेद से पहले बीजेपी नेताओं ने किशोर को प्रधानमंत्री की जीत का काफी हद तक श्रेय लेने दिया. वहीं कइयों ने उन्हें ऐसा स्वार्थी शख्स करार दिया, जो अपने पुराने बॉस से हिसाब-किताब बराबर करने के लिए 2015 में बीजेपी छोड़ नीतीश कुमार से जा मिला. उधर किशोर के समर्थकों का कहना है कि नज़दीकी लोगों के बीच भी प्रशांत काफी नपे-तुले अंदाज़ में उस वक्त को याद करते हैं और कहते हैं कि पहले के राजनीतिक काम की चर्चा करना ज़रा शोभा नहीं देता.
बीजेपी से नीतीश कुमार और फिर कांग्रेस, किशोर के नज़दीकियों की मानें तो वह बगैर किसी विचारधारा के दल बदलने वाले शख्स नहीं है. 'अच्छी शासन प्रणाली और एक राजनेता जो यह साबित कर चुका है कि वह काम कर सकता है. किसी भी उम्मीदवार का प्रशांत इसी आधार पर समर्थन करते हैं.' - नाम न बताए जाने की शर्त पर किशोर के एक साथी ने यह जानकारी दी (वैसे किशोर और उनके दोस्तों, साथियों और I-PAC कर्मचारियों के बीच गोपनीयता एक अहम धागा है). उनके एक साथी बताते हैं 'नरेंद्र मोदी, नीतीश, शीला दीक्षित, यहां तक कि अमरिंदर सिंह को देखिए. उन्हें लगता है कि यह सब अच्छे प्रशासक हैं.' थोड़े अनौपचारिक माहौल में यह भी बताया जाता है कि किशोर कुछ मौकों पर यह मान भी चुके हैं कि कांग्रेस के लिए रणनीति से कहीं ज्यादा मेहनत लग रही है, यह पार्टी जिसके खालीपन के पीछे सिस्टम की विफलता भी काफी हद तक जिम्मेदार है.
शाम साढ़े छह बजे, एक लंबे चुनावी रोड शो के बाद श्रीमती गांधी की तबियत ने जवाब दे दिया. न्यूज़ चैनल पर उनकी तबियत के बारे में रिपोर्ट सामने आने लगी, उन्हें ड्रिप लगाकर एयरपोर्ट तक ले जाया गया, एयर एम्बुलेंस को बुलाने के बारे में सोचा जा रहा है, एक स्थानीय अस्पताल को तैयार रखा गया है, प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर अपनी चिंता जताई है. रात 10 बजे उन्हें चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली भेज दिया गया. कई घंटों तक उनके कंधे में लगी चोट के बारे में नहीं दिखाया गया. फिलहाल वह अस्पताल में ही हैं.
उधर ताज होटल की लॉबी के एक कोने में किशोर किसी गहरी सोच में डूबे से लग रहे हैं. पीएम के खिलाफ 2014 में खड़े होने वाले कांग्रेसी अजय राय उनके करीब आकर बैठ जाते हैं. उनके पीछे एक मेडिकल सहायक के साथ वरिष्ठ कांग्रेसी आते हैं, जिन्होंने गाज़ीपुर के अपने घर में इलाके का चुनावी दफ्तर खोलने का प्रस्ताव रखा है. फिर आना होता है एक और स्थानीय राजनेता का, जो एक युवक को अपने साथ लाए हैं, जो चुनाव लड़ना चाहता है. नेता किशोर से कहते हैं 'अगर आप कह दें तो...' किशोर सिर हिला देते हैं.
रात को खाने के वक्त किशोर के सामने शाकाहारी थाली है और उनके साथ एक युवा पुलिस अफसर है जिसे हाल ही में वाराणसी में एक ऊंचे पद पर नियुक्त किया गया है. दोनों ने आपस में जानकारी साझा की कि भीड़ सबसे ज्यादा कहां थी, इंतज़ाम किस तरह के थे, लोग क्या कह रहे थे (इस बात पर दोनों एकमत थे कि श्रीमती गांधी के लिए लोगों के मन में दया और चिंता थी). आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक रोड शो में 15 हज़ार लोग जमा हुए थे जो कि पीएम के वाराणसी दौरे से कहीं कम थे लेकिन इसके बावजूद यह वह आंकड़ा था जिसका श्रेय पूरी तरह कांग्रेस को जाता है.
प्रशांत जिन पर भरोसा करते हैं या कम से कम जिनको लेकर इस हद तक सुनिश्चित रहते हैं कि जरूरत पड़ने पर वे उनके विचारों पर भरोसा करेंगे-ऐसे लोगों के समक्ष किशोर ने कहा है कि भले ही वह चाहें जैसे भी राजनेताओं से घिरे हों लेकिन 2019 में यूपी उनकी भूमिका को परिभाषित नहीं करेगा. किशोर ने कथित तौर पर कहा है, ''अगर मैं उत्तर प्रदेश में हारता हूं जैसा कि सब कह रहे हैं, तो मेरे लिए खेल खत्म. और अगर मैं जीतता हूं...तो इससे बड़ा नतीजा और क्या हो सकता है? एक लोकसभा चुनाव से भी बड़ा होगा यूपी का चुनाव जीतना.' इस बात की तस्दीक की जा सकती है.
जैसा कि किशोर के साथ होता आया है, वह जो भी काम करते हैं - भले ही वह कितना भी एकांत में क्यों न हो रहा हो - उसका नतीजा जल्द ही बदलाव के रूप में जनता के सामने आता है. उनका भी यही मानना है कि सार्वजनिक मंच पर बहुत ज्यादा सामने न आना ही उन्हें बनाए रखता है. वह इंटरव्यू देने से खुद को दूर रखते हैं. अनौपचारिक बातचीत में उनका तरीका सवाल पर सवाल करना है. अगर आप उनसे पूछेंगे कि क्या सोनिया गांधी जैसी शख्सियत के लिए इतनी भीड़ काफी है तो उनका जवाब होगा 'क्या यह काफी नहीं थी?' अगर आप उनसे पूछ बैठेंगे कि उन्हें क्यों लगता है कि उत्तर प्रदेश में उनका कोई चांस बनता है तो सवाल मिलेगा 'आपको क्यों लगता है कि मेरा चांस नहीं होगा?'
जैसे ही मीडिया की भीड़ लगती है, बादल आकाश में फैल जाते हैं और खिड़की के बाहर अंधेरा छा जाता है. किशोर बाहर झांकते हुए कहते हैं 'इसे कहते हैं किस्मत, यह मेरे प्लान में नहीं था.'
यहीं से थोड़ी ही दूरी पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को रोडशो शुरू हो चुका है. पहले कुछ मिनटों के अपडेट रैली में मौजूद किशोर के कुछ साथियों द्वारा व्हॉट्सऐप किए जाते हैं, जो कांग्रेस अध्यक्ष के साथ आठ किलोमीटर का रूट तय करने वाले हैं. वीडियो में एक और नई बात सामने आती है - लेकिन इसकी किसी ने अपेक्षा नहीं की थी - सफेद रंग की ऊपर से खुली मर्सिडीज़ एसयूवी के बजाय सोनिया गांधी एक सामान्य एसयूवी में जा रही हैं. यानि जनता का ठीक से आह्वान करने के लिए उन्हें आधा दरवाज़ा खोलकर बाहर की तरफ झुकना पड़ेगा. यह भी प्लान में बिल्कुल नहीं था.
किशोर का फोन बजता है. सोनिया गांधी को सिर्फ दो ही लोग निर्देश दे सकते हैं, यह उनमें से एक की आवाज़ थी 'उनसे कहिए कि वह खुली कार में चली जाएं, उन्हें चेंज करने को कहिए.' विशेष सुरक्षा दल के अफसरों के बीच सोनिया गांधी के इस दौरे से संबंधित निर्देशों के बारे में कुछ बातचीत होती है. बातचीत पूरी होने के बाद किशोर एक फोन करते हैं 'मैडम से कार बदलने के लिए कहिए. खुली वाली कार.'
अगले कुछ घंटों तक श्रीमती गांधी का जत्था एक तरह से रेंगता दिखाई देता है. छोटे छोटे फोन कॉल, वीडियो ब्रीफ, फोन पर किसी तरह का कोई निर्देश नहीं और सूचना के नाम पर सिर्फ बीच-बीच में भीड़ की संख्या का पता लगाते रहना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र पर कब्ज़ा जमाने की कोशिश को कुछ इस तरह दिशा दे रहे हैं प्रशांत किशोर.
वाराणसी में रोड शो के दौरान सोनिया गांधी
दोपहर 2 बजे के करीब, हज़ारों में उमड़ी भीड़ की संख्या दोगुनी हो गई है. कांग्रेस का एक सिरा इस संख्या की पुष्टि भी करना चाह रहा है. बताया जाता है कि किशोर ने पार्टी में उनके प्रयासों का समर्थन कर रहे कुछ लोगों के सामने यह कहा था कि 'वह इलाहबाद, लखनऊ या कोई और जगह चाह रहे थे लेकिन मैंने साफ कर दिया कि या तो वाराणसी में होगा या फिर भूल जाइए.'
कुछ-बड़ा-करो-या-घर-जाओ - 39 साल के रणनीतिकार का यही अंदाज़ है - फिर वह 2014 में पीएम की जीत हो, या बिहार में नीतीश कुमार का विजयी उद्गोष या फिर अब कांग्रेस के लिए राजनीतिक राजधानी माने जाने वाला राज्य जिसके दरवाज़े गांधी परिवार के लिए हमेशा खुले हैं. सूत्रों की मानें तो हालिया बैठक में किशोर ने दावा किया कि उत्तरप्रदेश में अपने तगड़े विरोधियों से ज्यादा कवरेज कांग्रेस को मिल रहा है - 'पिछले 30 या 60 दिन का मीडिया उठाकर देख लीजिए...कांग्रेस से ज्यादा किस पार्टी को कवरेज मिला है.'
ठोस आंकड़ों को ज़मीनी स्तर पर जांचने का काम करने वाले कार्यकर्ताओं से किशोर यह कहते हुए पाए गए कि उन्हें उम्मीद है कि दिसंबर तक ब्राह्मण, ऊंची जाति, गैर-जाटव दलित (जाटवों को पारंपरिक तौर पर मायावती का समर्थक बताया जाता रहा है) और अन्य गैर-यादव पिछड़ी जाति की मदद से कांग्रेस चामत्कारिक रूप से उत्तर प्रदेश में दूसरे स्थान पर पहुंच जाएगी. इसके बाद उन्हें पूरा भरोसा है कि राज्य के मुसलमान कांग्रेस से हाथ मिलाएंगे जो भारत के सबसे बड़े राज्य में पार्टी के लिए आखिरी मील का पत्थर साबित होगा. किशोर के हिसाब से इन समूहों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए अभियान से करीब 37 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हो सकते हैं. एक पार्टी मीटिंग में किशोर ने कहा 'कांग्रेस में एक तरह की भावना सबके अंदर है. होना यह चाहिए कि आप चंद समूहों का तुष्टिकरण करें और फिर सब पर राज करें. कांग्रेस उल्टा करती है - वह सबसे अपील करती है और फिर जब वह चुन ली जाती है तो तुष्टिकरण शुरू कर देती है.'
खैर, इस तरह के संदेश को समझने में शायद अभी वक्त लगे. फिलहाल प्रशांत किशोर का मिशन है कि कांग्रेस अपनी पुरानी परंपराओं और प्रवृत्ति को पीछे छोड़कर राज्य में सबसे सक्रिय पार्टी बनकर उभरे. इसलिए जहां अन्य पार्टियों ने अभी तक अपने चुनावी अभियान का बिगुल भी नहीं बजाया है, वहीं कांग्रेस ने महीनों पहले ब्राह्मण-केंद्रित रणनीति सामने रख दी है, मुख्यमंत्री के उम्मीदवार का नाम घोषित कर दिया गया, राहुल गांधी मीडिया की मौजूदगी में लखनऊ के एक खुले मैदान में कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करते हैं और श्रीमती गांधी वाराणसी में जनता का अभिनंदन करती हैं.
किशोर की योजना सामने आने से पहले ज्यादातर कांग्रेस नेताओं ने इनमें से हर एक कार्यक्रम को असफल करार दिया था. पार्टी सूत्रों के मुताबिक किशोर की रणनीति सहयोगपूर्ण होने के साथ साथ लड़ाकू स्तर की भी होती है. वह अपनी योजनाओं पर फीडबैक भी मांगते हैं, लेकिन उसे आसानी से बदलते भी नहीं हैं. लगातार झेल रहे विरोधों के बीच प्रशांत ने अपने साथियों से कथित तौर पर कहा था कि 'मैं समझता हूं. उनके लिए काफी वक्त से कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है. कुछ भी नया होगा तो पहली चिंता यही होगी - अगर कुछ गलत हो गया तो?'
हाल ही में उन्होंने अपने विचारों को अमली जामा पहनाने के लिए कुछ अलग बिंदुओं पर ज़ोर दिया. जब उन्होंने पिछले महीने जुलाई में राहुल गांधी और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच बैठक आयोजित की तो उन्होंने लखनऊ का वह मैदान चुना, जहां से अक्सर पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भाषण देती थीं. उन्होंने मीडिया को बुलाए जाने पर ज़ोर दिया. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को मीडिया की मौजूदगी में आगे की सीटें खाली होने और राहुल गांधी के जवाबों से उस काडर के आश्वस्त न होने का डर सता रहा था, जो लोकसभा चुनाव में पार्टी के राज्य में चौथे नंबर पर आने से काफी निराश हो गए थे.
पुलिस के मुताबिक इस बैठक में 50 हज़ार लोग शामिल हुए थे. किशोर के सहयोगियों ने मीडिया को 70 हज़ार से ज्यादा कार्यकर्ताओं के आने की बात कही. किशोर ने कांग्रेस से कहा कि उनके हिसाब से 'राहुल गांधी ने 10 में से 8 जवाब सही दिए.' किशोर के साथ नज़दीकी से काम करने वालों के मुताबिक लखनऊ कार्यक्रम ने एक तरह से सबके लिए आगाज़ का काम किया है - राहुल गांधी के लिए जिन्होंने कार्यकर्ताओं से सार्वजनिक तौर पर बातचीत की, कांग्रेस के लिए जो अपने रणनीतिकार पर भरोसा रखें, और I-PAC के लिए जिसके किशोर प्रमुख हैं और जिसने चार दिन बाद वाराणसी के रोडशो की कमान अपने हाथों में ली.
I-PAC का अनुमान है कि चुनाव से तीन महीने पहले वह 1200 लोगों को काम पर लगा देगा, फिलहाल उनके 800 लोग राज्य में काम कर रहे हैं. उनमें से सबसे जूनियर स्तर पर काम करने वाले वे हैं, जो श्रीमती गांधी के रोडशो के दौरान अलग-अलग रूट पर तैनाती करते हैं. काली टीशर्ट और जीन्स पहने यह युवा नोटबुक पर कुछ कुछ लिखते हुए दिखाई पड़ते हैं और जब उनसे किशोर के स्टार्ट अप के बारे में पूछा जाता है तो जवाब भी फुर्ती से मिलता है. कमलापति त्रिपाठी की मूर्ति के पास एक इमारत की छत पर अपने दो साथियों के साथ ड्यूटी निभा रहा एक युवा कहता है, 'मैं यहां पैदा हुआ था. मुझे यूपी की फिक्र है. राजनीति की नहीं, लेकिन यूपी की. इसलिए मैं यहां हूं.'
प्रशांत की टीम में काम करते युवा
उधर कुछ किलोमीटर की दूरी पर पांच सितारा होटल में किशोर की स्क्रिप्ट जारी है. हालांकि किशोर ने जिन्हें मनाकर या दबाव बनाकर जो लिस्ट तैयार की है, उसमें प्रियंका गांधी वाड्रा के काम का विवरण अभी तक शामिल नहीं है. चंद ही लोग हैं जिन्हें लगता है कि जून में प्रियंका गांधी के मुख्यमंत्री पद के दावेदारी की रिपोर्ट के पीछे किशोर का हाथ नहीं था. अगर यह पार्टी पर एक दवाब डालने वाली रणनीति थी तो भी इसने उलटा असर किया. सच्ची या झूठी, यह सूचना जैसी भी थी, कांग्रेस इस ख़बर के लीक होने से काफी चिढ़ गई और बदले में यह कहती हुई पाई गई कि प्रियंका न ही चुनावी अभियान का चेहरा हैं और तो और अमेठी और रायबरैली के बाहर प्रियंका के किसी भी तरह की बड़ी रैली के आयोजन की कोई संभावना ही नहीं बनती. किशोर के लिए यह एक तरह से संकेत था कि वह अपनी सीमा में ही रहें.
लेकिन उनके नज़दीकियों की मानें तो प्रशांत एक और योजना पर काम कर रहे हैं, जिसमें वह राहुल गांधी के साथ मिलकर एक बड़ी घोषणा करने वाले हैं. (प्रियंका की अगुवाई की खबरों को दरकिनार करते हुए) राहुल की प्रमुखता स्थापित होने के बाद, प्रियंका की उपस्थिति पर काम किया जाएगा, बड़ी-बड़ी चुनावी बैठकों में नहीं, बल्कि छोटे स्तर पर 'जनता से संचार स्थापित करने वाले कार्यक्रमों' में उनकी मौजूदगी होगी. वैसे काफी कुछ उनकी मां की सेहत पर निर्भर करता है.
दोपहर करीब ढाई बजे किशोर के पास फोन आता है कि श्रीमती गांधी की तबियत ठीक नहीं है. सभी बड़े कांग्रेस नेता शहर में मौजूद थे और महकमे में यह ख़बर भी थी कि उन्हें बुखार है. उन्हें किशोर की टीम ने बताया कि वह कार बदल रही हैं और थोड़ी ही देर में फिर दिखाई देंगी, मीडिया से भी यही कहा गया. सोनिया गांधी के साथ जो मौजूद थे, उन्हें निर्देश दिए गए कि कांग्रेस अध्यक्ष जनता से बात करने के लिए ज़रा कम रुकें, अपनी ताकत को थोड़ा सहेजें और टाटा सफारी के दरवाज़ें से बाहर ज्यादा न झुकें, जिसका इस्तेमाल वह एसपीजी के कहने पर उन इलाकों में कर रही हैं, जहां खुली मर्सिडीज़ में जाना उनके लिए असुरक्षित है.
30 मिनट बाद टीवी चैनल ने श्रीमती गांधी को एक मुसलमान इलाके में वापसी करते हुए देखा. बादल छट चुके हैं. घरों की छतों पर भीड़ लगी है, सड़कें समर्थकों से लबालब भरी हैं. घंटों बाद, I-PAC इन चुने हुए कुछ दृश्यों को यह कहते हुए मीडिया को सौंपती हैं कि कार्यक्रम सफल रहा. चुनावी अभियान का यह गुर किशोर ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से कथित तौर पर सीखा है. बताया जाता है कि 2014 की सफलता के कुछ हफ्तों बाद इन दोनों के बीच बढ़ती कड़वाहट के बाद किशोर ने बीजेपी से अपने रास्ते अलग कर लिए थे.
इस चुस्त रणनीतिकार के आलोचकों की मानें तो मतभेद से पहले बीजेपी नेताओं ने किशोर को प्रधानमंत्री की जीत का काफी हद तक श्रेय लेने दिया. वहीं कइयों ने उन्हें ऐसा स्वार्थी शख्स करार दिया, जो अपने पुराने बॉस से हिसाब-किताब बराबर करने के लिए 2015 में बीजेपी छोड़ नीतीश कुमार से जा मिला. उधर किशोर के समर्थकों का कहना है कि नज़दीकी लोगों के बीच भी प्रशांत काफी नपे-तुले अंदाज़ में उस वक्त को याद करते हैं और कहते हैं कि पहले के राजनीतिक काम की चर्चा करना ज़रा शोभा नहीं देता.
बीजेपी से नीतीश कुमार और फिर कांग्रेस, किशोर के नज़दीकियों की मानें तो वह बगैर किसी विचारधारा के दल बदलने वाले शख्स नहीं है. 'अच्छी शासन प्रणाली और एक राजनेता जो यह साबित कर चुका है कि वह काम कर सकता है. किसी भी उम्मीदवार का प्रशांत इसी आधार पर समर्थन करते हैं.' - नाम न बताए जाने की शर्त पर किशोर के एक साथी ने यह जानकारी दी (वैसे किशोर और उनके दोस्तों, साथियों और I-PAC कर्मचारियों के बीच गोपनीयता एक अहम धागा है). उनके एक साथी बताते हैं 'नरेंद्र मोदी, नीतीश, शीला दीक्षित, यहां तक कि अमरिंदर सिंह को देखिए. उन्हें लगता है कि यह सब अच्छे प्रशासक हैं.' थोड़े अनौपचारिक माहौल में यह भी बताया जाता है कि किशोर कुछ मौकों पर यह मान भी चुके हैं कि कांग्रेस के लिए रणनीति से कहीं ज्यादा मेहनत लग रही है, यह पार्टी जिसके खालीपन के पीछे सिस्टम की विफलता भी काफी हद तक जिम्मेदार है.
शाम साढ़े छह बजे, एक लंबे चुनावी रोड शो के बाद श्रीमती गांधी की तबियत ने जवाब दे दिया. न्यूज़ चैनल पर उनकी तबियत के बारे में रिपोर्ट सामने आने लगी, उन्हें ड्रिप लगाकर एयरपोर्ट तक ले जाया गया, एयर एम्बुलेंस को बुलाने के बारे में सोचा जा रहा है, एक स्थानीय अस्पताल को तैयार रखा गया है, प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर अपनी चिंता जताई है. रात 10 बजे उन्हें चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली भेज दिया गया. कई घंटों तक उनके कंधे में लगी चोट के बारे में नहीं दिखाया गया. फिलहाल वह अस्पताल में ही हैं.
उधर ताज होटल की लॉबी के एक कोने में किशोर किसी गहरी सोच में डूबे से लग रहे हैं. पीएम के खिलाफ 2014 में खड़े होने वाले कांग्रेसी अजय राय उनके करीब आकर बैठ जाते हैं. उनके पीछे एक मेडिकल सहायक के साथ वरिष्ठ कांग्रेसी आते हैं, जिन्होंने गाज़ीपुर के अपने घर में इलाके का चुनावी दफ्तर खोलने का प्रस्ताव रखा है. फिर आना होता है एक और स्थानीय राजनेता का, जो एक युवक को अपने साथ लाए हैं, जो चुनाव लड़ना चाहता है. नेता किशोर से कहते हैं 'अगर आप कह दें तो...' किशोर सिर हिला देते हैं.
रात को खाने के वक्त किशोर के सामने शाकाहारी थाली है और उनके साथ एक युवा पुलिस अफसर है जिसे हाल ही में वाराणसी में एक ऊंचे पद पर नियुक्त किया गया है. दोनों ने आपस में जानकारी साझा की कि भीड़ सबसे ज्यादा कहां थी, इंतज़ाम किस तरह के थे, लोग क्या कह रहे थे (इस बात पर दोनों एकमत थे कि श्रीमती गांधी के लिए लोगों के मन में दया और चिंता थी). आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक रोड शो में 15 हज़ार लोग जमा हुए थे जो कि पीएम के वाराणसी दौरे से कहीं कम थे लेकिन इसके बावजूद यह वह आंकड़ा था जिसका श्रेय पूरी तरह कांग्रेस को जाता है.
प्रशांत जिन पर भरोसा करते हैं या कम से कम जिनको लेकर इस हद तक सुनिश्चित रहते हैं कि जरूरत पड़ने पर वे उनके विचारों पर भरोसा करेंगे-ऐसे लोगों के समक्ष किशोर ने कहा है कि भले ही वह चाहें जैसे भी राजनेताओं से घिरे हों लेकिन 2019 में यूपी उनकी भूमिका को परिभाषित नहीं करेगा. किशोर ने कथित तौर पर कहा है, ''अगर मैं उत्तर प्रदेश में हारता हूं जैसा कि सब कह रहे हैं, तो मेरे लिए खेल खत्म. और अगर मैं जीतता हूं...तो इससे बड़ा नतीजा और क्या हो सकता है? एक लोकसभा चुनाव से भी बड़ा होगा यूपी का चुनाव जीतना.' इस बात की तस्दीक की जा सकती है.
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