फाइल फोटो
नई दिल्ली:
15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री ने भले ही गिलगित और बलूचिस्तान के आंदोलनों का समर्थन किया हो, लेकिन केंद्र सरकार के सामने फिलहाल बड़ी चुनौती जम्मू-कश्मीर में अमन की बहाली है. गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में सीमा पार से करोड़ों की रकम यहां अशांति पैदा करने के लिए लगाई गई है.
सरकारी सूत्रोंं का कहना है कि ऐसा लगता है कि कश्मीर में अशांति का यह दौर जल्द खत्म होने वाला नहीं है. वरिष्ठ सरकारी सूत्रों ने कहा, जिस तरह से यहां पैसा झोंका जा रहा है, उससे लगता नहीं है कि प्रदर्शनों का यह दौर जल्द खत्म होगा. घाटी के युवाओं को प्रदर्शन करने और सुरक्षा बलों पर हमले करने के लिए पैसा दिया जा रहा है.
प्रधानमंत्री ने दी विदेश नीति को नई राह
पहले सर्वदलीय बैठक में और फिर लाल किले से प्रधानमंत्री ने कश्मीर पर जो सख्त रुख़ अख़्तियार किया है, उसे सरकार की सोची-समझी नीति का नतीजा माना जा रहा है.
पाकिस्तान फैला रहा है कश्मीर में तनाव
गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कश्मीर में जान बूझकर बदअमनी फैलाई जा रही है. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक बीते तीन हफ़्तों में यहां 24 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए. इनमें से तीन करोड़ आसिया अंद्राबी के संगठन दुख़्तराने मिल्लत के हिस्से आए. बाक़ी रक़म विरोध प्रदर्शन जारी रखने के नाम पर खर्च की गई.
गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, "पाकिस्तान से कई करोड़ रुपये भेजे गए हैं कश्मीर में गड़बड़ी फैलाने के लिए. पहले भी भेजे जाते थे लेकिन इस बार पाकिस्तान के तेवर आक्रामक हैं."
आतंकवाद रोधी अभियानों में आई ढिलाई
एजेंसियों के मुताबिक पिछले कुछ अरसे में सुरक्षा और चौकसी के कई इंतज़ाम ढीले किए गए हैं जिसके नतीजे में सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों का आसान निशाना बनते रहे हैं. मंगलवार को बड़गाम में हुई मुठभेड़ से पहले भी यही हुआ. वहां सड़क ब्लॉक कर दी गई, जब सीआरपीएफ की टीम रास्ता साफ करने पहुंची तो उस पर फायरिंग हुई.
गृह मंत्रालय का कहना है, ''सुरक्षा बलों का ज़ोर अब कानून-व्यवस्था पर है और वो सुरक्षात्मक हैं. दो महीने से सिर्फ सरहदी इलाक़ों में खुफिया अभियान चलाए जा रहे हैं. बीते एक साल में कई बटालियनें हटाई गई हैं. 2010 से बहुत सारे बंकर हटा लिए गए हैं. शहरों में कोई बंकर नहीं है. दिन में फौज होती है, रात को बैरकों में लौट जाती है. बेशक, घाटी में आतंकियों ने अपना आधार मजबूत किया है और ओवरग्राउंड वर्कर भी बढ़े हैं.''
सुरक्षा बल बन रहे निशाना
हंदवाड़ा में जो कुछ हुआ उसका नतीजा यह है कि सुरक्षा बल आतंकियों का आसान निशाना बन रहे हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''हंदवाड़ा में बंकर जलाया गया फिर हटाया गया, लोगों को लगा कि सुरक्षा बलों को निशाना बनाना आसान है."
राजनीतिक बयानों से बिगड़ता है माहौल
दरअसल भारत सरकार की असली चुनौती यही है. उसे आम लोगों का भरोसा भी जीतना है और सुरक्षाबलों का हौसला टूटने नहीं देना है. इसके लिए जो संतुलित रास्ता चाहिए, वह फूंक-फूंककर क़दम रखते हुए ही हासिल किया जा सकता है. मुश्किल ये है कि नीतियों के स्तर पर ये सावधानी बयानों में दिखाई नहीं पड़ती जिसकी वजह से माहौल बिगड़ता ही है.
सरकारी सूत्रोंं का कहना है कि ऐसा लगता है कि कश्मीर में अशांति का यह दौर जल्द खत्म होने वाला नहीं है. वरिष्ठ सरकारी सूत्रों ने कहा, जिस तरह से यहां पैसा झोंका जा रहा है, उससे लगता नहीं है कि प्रदर्शनों का यह दौर जल्द खत्म होगा. घाटी के युवाओं को प्रदर्शन करने और सुरक्षा बलों पर हमले करने के लिए पैसा दिया जा रहा है.
प्रधानमंत्री ने दी विदेश नीति को नई राह
पहले सर्वदलीय बैठक में और फिर लाल किले से प्रधानमंत्री ने कश्मीर पर जो सख्त रुख़ अख़्तियार किया है, उसे सरकार की सोची-समझी नीति का नतीजा माना जा रहा है.
पाकिस्तान फैला रहा है कश्मीर में तनाव
गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि कश्मीर में जान बूझकर बदअमनी फैलाई जा रही है. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक बीते तीन हफ़्तों में यहां 24 करोड़ रुपये ख़र्च किए गए. इनमें से तीन करोड़ आसिया अंद्राबी के संगठन दुख़्तराने मिल्लत के हिस्से आए. बाक़ी रक़म विरोध प्रदर्शन जारी रखने के नाम पर खर्च की गई.
गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने एनडीटीवी इंडिया को बताया, "पाकिस्तान से कई करोड़ रुपये भेजे गए हैं कश्मीर में गड़बड़ी फैलाने के लिए. पहले भी भेजे जाते थे लेकिन इस बार पाकिस्तान के तेवर आक्रामक हैं."
आतंकवाद रोधी अभियानों में आई ढिलाई
एजेंसियों के मुताबिक पिछले कुछ अरसे में सुरक्षा और चौकसी के कई इंतज़ाम ढीले किए गए हैं जिसके नतीजे में सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों का आसान निशाना बनते रहे हैं. मंगलवार को बड़गाम में हुई मुठभेड़ से पहले भी यही हुआ. वहां सड़क ब्लॉक कर दी गई, जब सीआरपीएफ की टीम रास्ता साफ करने पहुंची तो उस पर फायरिंग हुई.
गृह मंत्रालय का कहना है, ''सुरक्षा बलों का ज़ोर अब कानून-व्यवस्था पर है और वो सुरक्षात्मक हैं. दो महीने से सिर्फ सरहदी इलाक़ों में खुफिया अभियान चलाए जा रहे हैं. बीते एक साल में कई बटालियनें हटाई गई हैं. 2010 से बहुत सारे बंकर हटा लिए गए हैं. शहरों में कोई बंकर नहीं है. दिन में फौज होती है, रात को बैरकों में लौट जाती है. बेशक, घाटी में आतंकियों ने अपना आधार मजबूत किया है और ओवरग्राउंड वर्कर भी बढ़े हैं.''
सुरक्षा बल बन रहे निशाना
हंदवाड़ा में जो कुछ हुआ उसका नतीजा यह है कि सुरक्षा बल आतंकियों का आसान निशाना बन रहे हैं. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''हंदवाड़ा में बंकर जलाया गया फिर हटाया गया, लोगों को लगा कि सुरक्षा बलों को निशाना बनाना आसान है."
राजनीतिक बयानों से बिगड़ता है माहौल
दरअसल भारत सरकार की असली चुनौती यही है. उसे आम लोगों का भरोसा भी जीतना है और सुरक्षाबलों का हौसला टूटने नहीं देना है. इसके लिए जो संतुलित रास्ता चाहिए, वह फूंक-फूंककर क़दम रखते हुए ही हासिल किया जा सकता है. मुश्किल ये है कि नीतियों के स्तर पर ये सावधानी बयानों में दिखाई नहीं पड़ती जिसकी वजह से माहौल बिगड़ता ही है.
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