कानपुर रेल हादसे के पीछे पटरियों में दरार कारण हो सकता है. ऐसा सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है हालांकि आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा. उच्चस्तरीय जांच का हवाला दिया जा रहा है. इंदौर-पटना एक्सप्रेस के रविवार को पटरी से उतरने की घटना में अब तक 142 लोगों की जान जा चुकी है और 180 लोग घायल हैं.
इधर, हादसे के बाद घायलों और बाकी बचे यात्रियों को लेकर पटना पहुंची, जिसमें करीब 350 यात्री सवार थे. प्रशासन की ओर से यात्रियों को उनके घर तक पहुंचाने का इंतज़ाम किया गया था. जिन लोगों को ट्रेन से आगे जाना था उन्हें फ़्री पास दिया गया और जिन्हें रोड के जरिए जाना था उनके लिए भी गाड़ियों का इंतज़ाम किया गया था.
बड़ी ट्रेन दुर्घटनाएं
100 किलोमीटर दूर पुखरायां के पास सुबह 3 बजे हुआ हादसा
गौरतलब है कि यह हादसा कानपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर पुखरायां के पास तड़के 3 बजे हुआ, जहां ट्रेन के करीब 14 डब्बे पटरी से उतर गए. इनमें से 4 डिब्बे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए.
इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन हादसे में जीवित बचे यात्रियों के चेहरों पर खौफ अब भी कायम है और उनकी बातों से साफ झलक रहा था कि वे किस प्रकार मौत के मुंह से निकल कर आ रहे हैं.
अंदर के दृश्य विचलित करने वाले
ट्रेन के कुछ डिब्बे हादसे से कम प्रभावित हुए लेकिन उसके अंदर के दृश्य विचलित करने वाले थे. सुबह करीब तीन बजे हादसे के बाद यात्रियों के दहशत में इधर उधर भागने से चादरें, कंबल, तकिए, खाना, सूटकेस, बैग आदि बिखरे हुए थे.
ट्रेन के बाहर 17 साल की एक लड़की अपने भाई को खोजने का प्रयास कर रही थी. दोनों भोपाल में एक तैराकी प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के बाद पटना लौट रहे थे. उनके साथ उनकी मां भी थीं. इस दर्दनाक माहौल में कुछ साहसी कहानियां भी सुनने को मिल रही थीं कि किस प्रकार एक बचावकर्मी ने पांच यात्रियों को जिंदा बाहर निकाला।
डिब्बों में हर जगह शव और खून बिखरा हुआ था
बचाव दल में शामिल शक्ति सिंह ने कहा, मैंने एक वृद्ध महिला को बाहर निकाला, उन्हें उस समय तक यह एहसास नहीं था कि उनका एक पैर कट गया है. डिब्बों में हर जगह शव और खून बिखरा हुआ था. हादसे में जीवित बचे लोगों ने स्थानीय लोगों को धन्यवाद दिया जो सबसे पहले वहां पहुंचे थे.
एक बचावकर्मी ने कहा कि जीवित लोगों को निकाल लिया गया है और डिब्बों में सिर्फ शव ही रह गए हैं. उन्होंने कहा कि आधे डिब्बों को साफ कर दिया गया है. बचाव कार्य में बाद में सेना भी शामिल हो गई थी और उसने अपने 90 जवानों को तैनात किया था. इसके अलावा 50 सदस्यीय एक मेडिकल टीम भी तैनात की थी, जिसमें पांच डाक्टर थे.
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