Stubble Burning Effects : पर्यावरण प्रदूषण के सबसे बड़े कारणों में से एक है पराली जलाना. देशभर में किसानों को जागरुक करने, रोकने और दूसरे विकल्पों की जानकारी देने के बावजूद पराली को जलाने से रोक पाना संभव नहीं हो सका है. लगातार फसलों को बोकर अधिक लाभ कमाने के चक्कर में किसान अपनी मौजूदा फसल के उत्पादन के बाद तेजी से सफाई के लिए बचे अवशेषों यानी कि पराली में आग लगा देते हैं. जिससे जल्दी दूसरी फसल उगाई जा सके लेकिन पैसों के लालच में किसान कई तरह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
सरकार द्वारा किसानों के लिए अनेक योजनाएं लाभ के लिए चलाई जा रही हैं. फसलों के नुकसान पर सरकार सहायता मुहैया भी कराती है लेकिन अधिक पैसों के लिए किसान इतनी सहायता के बाद भी पराली को जलाने में जरा भी संकोच नहीं करता. क्योंकि यह खेतों को साफ करने का एक तेज और कुशल तरीका है. पराली जलाने के क्या हानिकारक प्रभाव हैं और इसे कैसे कंट्रोल किया जा सकता है. आइए जानते हैं.
पराली जलाने के दुष्प्रभाव प्रभाव (Stubble Burning Effects)
1. वायु प्रदूषण
पराली जलाने से पार्टिकुलेट मैटर, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसे हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं, जो वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. इससे श्वसन स्वास्थ्य प्रभावित होता है और मौजूदा सांस से जुड़ी समस्याएं होती हैं.
2. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन
पराली जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीन हाउस गैस निकलती हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में तेजी आती है.
3. मिट्टी पर प्रभाव
पराली जलाने से क्रॉप रेसिड्यू में मौजूद आवश्यक पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है. इससे लंबे समय तक कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
4. बायोडायवर्सिटी में बाधा
पराली जलाने से उत्पन्न हुई तेज गर्मी मिट्टी में रहने वाले जीवों को नुकसान पहुंचा सकती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकती है और बायोडायवर्सिटी में गिरावट ला सकती है.
5. हेल्थ रिस्क
पराली जलाने से जो धुआं उठता है उसमें हानिकारक पदार्थ होते हैं, जो मनुष्यों और जानवरों के लिए स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या पैदा करते हैं, जिसमें सांस लेने में तकलीफ, एलर्जी और आंखों में जलन शामिल हैं.
पराली जलाने पर कंट्रोल कैसे कर सकते हैं?
-1. किसानों को पराली जलाने के पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में जागरूक करने के लिए शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करें.
-2. पराली जलाने को पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के लिए स्ट्रॉ बेलर और चॉपर जैसी आधुनिक कृषि मशीनरी के इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.
-3. सरकारें और कृषि संगठन किसानों को रेसिड्यू मैनेजमेंट को अपनाने के लिए फाइनेंसियल इन्सेटिव या सब्सिडी प्रदान कर सकते हैं.
-4. किसानों को फसलों में विविधता लाने के लिए प्रोत्साहित करें, क्योंकि कुछ फसलें कटाई के बाद कम अवशेष छोड़ती हैं. इससे व्यापक पराली बड़े पैमाने पर कम हो जाती है.
-5. रेसिड्यू मैनेजमेंट के लिए नवीन तकनीकों के अनुसंधान और विकास में निवेश करें, जिससे किसानों के लिए टिकाऊ प्रथाओं को अपनाना आसान और अधिक लागत प्रभावी हो सके.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)
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