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This Article is From Dec 21, 2012

पसंद करें या नापसंद, मोदी की अनदेखी नहीं कर सकते

पसंद करें या नापसंद, मोदी की अनदेखी नहीं कर सकते
नई दिल्ली: गुजरात विधानसभा चुनाव में अपने दम पर तीसरी बार लगातार बीजेपी को सत्ता में लाने वाले नरेंद्र मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी का प्रधानमंत्री पद का सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है और मोदी ने साबित कर दिया है कि आप उन्हें पसंद करें या नापंसद, उनकी अनदेखी नहीं कर सकते।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक के तौर पर काम करने के बाद राजनीति में आए 62-वर्षीय मोदी ने गुजरात में विकास के नाम पर अलग छवि बनाई है। हालांकि विवादों से भी उनका गहरा रिश्ता रहा है। 2002 में गोधराकांड के बाद भड़के गुजरात दंगों का दाग उन पर आज भी कायम है, जिसमें मुस्लिम समुदाय के 1,000 से अधिक लोग मारे गए थे।

जब-तब संघ परिवार के 'हिन्दुत्व की प्रयोगशाला' कहे जाने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री पर राज्य में सांप्रदायिक आधार पर धुव्रीकरण के भी आरोप लगते रहे हैं। मोदी के विरोधी भी उन पर जमकर निशाना साधते हैं। हालांकि पार्टी और उसके बाहर उनके प्रशंसकों और समर्थकों की संख्या भी कम नहीं है।

मोदी ने प्रदेश में मुस्लिमों को लुभाने के कई प्रयास किए, लेकिन उनके विरोधी हमेशा उनकी छवि इस समुदाय का ध्यान नहीं रखने वाले नेता के तौर पर पेश करते रहे हैं। उनके आलोचक कहते हैं कि उन पर हमेशा गुजरात दंगों का धब्बा लगा रहेगा। मोदी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर उन्हें दोषी पाया गया, तो वह फांसी पर लटकने के लिए तैयार हैं।

दूसरी तरफ मोदी के समर्थक उन्हें 'हिन्दू हृदय सम्राट' कहकर भी वाहवाही करते हैं। गुजरात में हालात इस कदर बदलते हैं कि 2007 के विधानसभा चुनावों में मोदी को 'मौत का सौदागर' कहने संबंधी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बयान से बखेड़ा खड़ा हो गया था।

गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर 11 साल के अनुभव और अपने दम पर लगातार तीसरी सफलता हासिल करने वाले मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव में खुद को पार्टी के प्रधानमंत्री पद के मजबूत दावेदार के तौर पर पेश कर सकते हैं। मोदी ने ऐसे समय में लगातार तीसरी बार चुनाव जीतकर इतिहास बनाया है, जब पार्टी को केंद्र की सत्ता में लौटने के लिए मजबूत नेतृत्व की जरूरत है। मोदी 2001 में केशुभाई की जगह मुख्यमंत्री बने थे। केशुभाई ने इस साल बीजेपी से अलग होकर अपनी नई पार्टी 'गुजरात परिवर्तन पार्टी' बना ली।

मुख्यमंत्री मोदी ने मुस्लिम समुदाय को लुभाने के अनेक प्रयास किए, लेकिन इस चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। उन्होंने अपने आदर्श स्वामी विवेकानंद के 150वीं जयंती वर्ष में गुजरात में यात्रा निकालकर जनता से सीधे संपर्क साधा।

2002 के दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को अपना 'राज धर्म' निभाने की नसीहत दी थी, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी और दिवंगत प्रमोद महाजन ने मोदी को मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने में मदद की। उसके बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इससे पहले के राजनीतिक सफर में वह गुजरात में पार्टी के संगठन सचिव रहे और बाद में दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में भी जिम्मेदार पद पर रहे।

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