अहमदाबाद:
गुजरात में गोधरा कांड और बड़े पैमाने पर दंगों के चलते मतदाताओं का ध्रुवीकरण होने के एक दशक बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार मुख्यत: विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनका मुकाबला अपनी पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस तथा भाजपा के बागी दिग्गज केशुभाई पटेल से है।
इस बार के चुनाव में सांप्रदायिकता का मुद्दा गायब है और मोदी हर ओर अपने विकास का गान करते सुनाई देते हैं। हालांकि, सांप्रदायिकता का मुद्दा लगभग पूरी तरह गायब होने, भाजपा के बागी दिग्गज केशुभाई पटेल द्वारा ‘गुजरात परिवर्तन पार्टी’ बनाए जाने और सत्ता विरोधी लहर जैसे कारकों से तीसरी बार उनकी अप्रत्याशित जीत के रास्ते में बाधाएं खड़ी हो सकती हैं।
भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक रहे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पटेल समुदाय के अत्यंत सम्मानित नेता केशुभाई के उभार ने कांग्रेस खेमे के लिए उम्मीदें बढ़ा दी हैं।
कांग्रेस का मानना है कि केशुभाई की गुजरात परिवर्तन पार्टी भगवा पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगा देगी, खासकर कच्छ और सौराष्ट्र क्षेत्र में, जो 182 सदस्यीय विधानसभा में 58 विधायक भेजता है।
कांग्रेस को अंतिम बार राज्य में 1985 में 149 सीटों के साथ बहुमत मिला था। कांग्रेस और गुजरात परिवर्तन पार्टी को कच्छ, सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात के कपास तथा मूंगफली उत्पादक क्षेत्रों से उम्मीद है जो इस बार भाजपा से नाराज नजर आते हैं।
पटेलों में केशुभाई को प्रभावहीन करने के लिए भाजपा 13 और 17 दिसंबर को दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के नेता एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन को अपने खेमे में खींच लाई, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि उनके अहमदाबाद से संबंधित होने के कारण कच्छ और सौराष्ट्र में उन्हें बाहरी माना जाएगा। अमीन ने कांग्रेस इसलिए छोड़ी क्योंकि दो बार लगातार चुनाव हारने के कारण पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था।
केशुभाई के प्रभाव वाले क्षेत्र में नुकसान की आशंका को देखते हुए मोदी ने अपने ‘भरोसेमंद’ माने जाने वाले शहरी मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित कर हाई टेक प्रचार अभियान शुरू किया है। शहरी तबके को मोदी के राज में प्रदेश में तेजी से हुए औद्योगीकरण का लाभ मिला है।
कच्छ, सौराष्ट्र में केशुभाई पटेल और उत्तरी गुजरात में कृषि समुदाय के असंतोष से नुकसान की आशंका के मद्देनजर अपने चुनावी घोषणापत्र में मोदी ने ‘‘नव मध्यम वर्ग’’ के उत्थान पर जोर दिया है। यह ऐसा तबका है जो गरीबी रेखा से ऊपर आ चुका है, लेकिन जिसे अभी मध्यम वर्ग में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
इस बार के चुनाव में सांप्रदायिकता का मुद्दा गायब है और मोदी हर ओर अपने विकास का गान करते सुनाई देते हैं। हालांकि, सांप्रदायिकता का मुद्दा लगभग पूरी तरह गायब होने, भाजपा के बागी दिग्गज केशुभाई पटेल द्वारा ‘गुजरात परिवर्तन पार्टी’ बनाए जाने और सत्ता विरोधी लहर जैसे कारकों से तीसरी बार उनकी अप्रत्याशित जीत के रास्ते में बाधाएं खड़ी हो सकती हैं।
भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक रहे राजनीतिक रूप से प्रभावशाली पटेल समुदाय के अत्यंत सम्मानित नेता केशुभाई के उभार ने कांग्रेस खेमे के लिए उम्मीदें बढ़ा दी हैं।
कांग्रेस का मानना है कि केशुभाई की गुजरात परिवर्तन पार्टी भगवा पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगा देगी, खासकर कच्छ और सौराष्ट्र क्षेत्र में, जो 182 सदस्यीय विधानसभा में 58 विधायक भेजता है।
कांग्रेस को अंतिम बार राज्य में 1985 में 149 सीटों के साथ बहुमत मिला था। कांग्रेस और गुजरात परिवर्तन पार्टी को कच्छ, सौराष्ट्र और उत्तरी गुजरात के कपास तथा मूंगफली उत्पादक क्षेत्रों से उम्मीद है जो इस बार भाजपा से नाराज नजर आते हैं।
पटेलों में केशुभाई को प्रभावहीन करने के लिए भाजपा 13 और 17 दिसंबर को दो चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के नेता एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री नरहरि अमीन को अपने खेमे में खींच लाई, लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि उनके अहमदाबाद से संबंधित होने के कारण कच्छ और सौराष्ट्र में उन्हें बाहरी माना जाएगा। अमीन ने कांग्रेस इसलिए छोड़ी क्योंकि दो बार लगातार चुनाव हारने के कारण पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था।
केशुभाई के प्रभाव वाले क्षेत्र में नुकसान की आशंका को देखते हुए मोदी ने अपने ‘भरोसेमंद’ माने जाने वाले शहरी मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित कर हाई टेक प्रचार अभियान शुरू किया है। शहरी तबके को मोदी के राज में प्रदेश में तेजी से हुए औद्योगीकरण का लाभ मिला है।
कच्छ, सौराष्ट्र में केशुभाई पटेल और उत्तरी गुजरात में कृषि समुदाय के असंतोष से नुकसान की आशंका के मद्देनजर अपने चुनावी घोषणापत्र में मोदी ने ‘‘नव मध्यम वर्ग’’ के उत्थान पर जोर दिया है। यह ऐसा तबका है जो गरीबी रेखा से ऊपर आ चुका है, लेकिन जिसे अभी मध्यम वर्ग में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
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