अजमेर शरीफ दरगाह में 1866 किलो चावल और चीनी के साथ इतनी बड़ी मात्रा में कैसे बनाएं जाते हैं मीठे चावल, यहां देखें

अजमेर के केंद्र में स्थित, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ दरगाह सूफी संत का आशीर्वाद लेने वाले लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करने के लिए दुनिया भर में पहचानी जाती है.

अजमेर शरीफ दरगाह में 1866 किलो चावल और चीनी के साथ इतनी बड़ी मात्रा में कैसे बनाएं जाते हैं मीठे चावल, यहां देखें

खास बातें

  • 1866 किलो मीठे चावल बनाया जाता है.
  • इसे बनाने के लिए बड़ी देग का इस्तेमाल किया जाता है.
  • इस देग को अकबर के समय का बताया जाता है.

अजमेर के केंद्र में स्थित, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अजमेर शरीफ दरगाह सूफी संत का आशीर्वाद लेने वाले लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करने के लिए दुनिया भर में पहचानी जाती है. हर हजारों की संख्या में यह पवित्र स्थान लोगों के साथ भरा रहता है, और हर व्यक्ति जो इस पर आता है, समुदाय यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी यहां भूखा न रहे! हाल ही में, 'बाबा का ढाबा' फेम यूट्यूबर गौरव वासन अजमेर शरीफ दरगाह गए और अपने फॉलोअर्स को इस जगह पर आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए मीठे चावल पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले 1866 किलो चावल और चीनी की प्रक्रिया को दिखाया!

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वीडियो को वासन के इंस्टाग्राम हैंडल @youtubeswadofficial पर शेयर किया गया था. वासन के मुताबिक, चावल पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला बड़ा बर्तन या 'देग' 500 साल पुराना है और अकबर के समय का है. इसमें 4800 किलो तक का खाना आसानी से समा सकता है. वीडियो अपलोड होने के बाद से, इसे 8 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है और कई कमेंट के साथ 88 हजार से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं.

वीडियो में, सबसे पहले, नीचे पानी और अन्य कच्चा सामान जैसे आटा, हल्दी, जाफरन, केवड़ा और बहुत कुछ डाला जाता है. मिश्रण में उबाल आने में डेढ़ घंटे का समय लगता है. फिर 1866 किलो चावल, 1866 किलो चीनी, और 100 किलो सूखे मेवे भारी मात्रा में मिलाया जाता है. क्योंकि चावल का आकार और मात्रा बहुत बड़ी होती है, इसलिए दरगाह में एक विशेष हस्तनिर्मित लकड़ी की 'करची' या स्पैटुला भी होता है, जिसके उपयोग से वे दो लोगों की मदद से चावल मिलाते हैं. जब चावल तैयार हो जाते हैं, तो सूखे मेवे और मखाना फैला दिया जाता है. अंत में, वे चावल निकालते हैं और तीर्थयात्रियों के बीच इसे बांटा जाता है.

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इतनी बड़ी मात्रा में भोजन को पकाने की प्रक्रिया आकर्षक नहीं है? अजमेर शरीफ दरगाह में सामुदायिक रसोई के बारे में आप क्या सोचते हैं? नीचे कमेंट बॉक्स में हमें बताएं.

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