
Eid Milad-Un-Nabi 2020: इस साल ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 30 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. दुनियाभर में इस्लाम धर्म के आखिरी पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के मौके पर ईद मिलाद उन-नबी मनाया जाता है. इसे मालविद के नाम से भी जानते हैं. इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने यानी रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख 571ई में पैंगबर साहब का जन्म हुआ था. कहते हैं कि रबी-उल-अव्वल के 12वें दिन ही मोहम्मद साहब का निधन भी हुआ था. ईद मिलाद उन-नबी को दुनियाभर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है. दावत का आयोजन किया जाता है, और बड़ी घूम-धाम से जुलूस निकाले जाते हैं. लेकिन इस साल कोरोना माहामारी के चलते बड़े जुलूस निकालने की संभावनाएं कम हैं.
ईद-ए-मिलाद-उन पर बनाएं ये खास रेसिपीः
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इस दिन खास तरह के पकवान और सेविया खीर बनाई जाती है.
इस्लाम घर्म में इस दिन को बहुत की खुशी के साथ मनाया जाता है. ईद मिलाद उन-नबी को दुनियाभर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन खास तरह के पकवान बनाएं जाते हैं. परिवार और रिश्तेदारों के साथ मिलकर इस दिन को मनाया जाता है आप भी ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के दिन इन खास रेसिपी को बनाएं और सेलिब्रेट करें, रेसिपी के लिए यहां क्लिक करें
कौन थे मोहम्मद साहबः
पैगंबर हजरत मोहम्मद का पूरा नाम मोहम्मद इब्र अब्दुल्लाह इब्र अब्दुल मुत्तलिब था. इनका जन्म मक्का नाम के शहर में हुआ था. इनके वालिद का नाम अब्दुल्लाह और वालदा का नाम बीबी अमीना था. ऐसा कहा जाता है कि 610 ईसवीं में मक्का के पास हीरा नाम की गुफा में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. वहीं बाद में मोहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म की पवित्र किताब कुरान की शिक्षाओं का पालन और उपदेश दिया. माना जाता है कि उनके पिता की मौत उनके जन्म से पहले ही हो गई थी. इसके बाद उन्हें शुरुआती 5 सालों के लिए पालन पोषण बेदू जनजाति के लोगों ने किया. जब वे अपनी मां के पास मक्का आए तो एक ही साल के अंदर वे भी चल बसीं. 6 साल की उम्र में अनाथ होने के बाद माना जाता है कि वे आर्थिक रूप से बहुत कमजोर हो चुके थे. दमस्क में वे एक ऊंट की देखभाल करने वाले लड़के के तौर पर काम करते थे.
हजरत मोहम्मद साहब का संदेशः
माना जाता है कि हजरत मोहम्मद साहब का कहना था कि सबसे नेक इंसान वही है, जिसमें मानवता होती है. इसके अलावा उन्होंने कहा था कि जो ज्ञान का आदर करता है, वह मेरा सम्मान करता है. हजरत मोहम्मद का मानना था की शिक्षा के मुताबिक,भूखे को खाना दो, बीमार की देखभाल करो, अगर कोई गलती से बंदी बनाया गया है. तो उसे मुक्त करो, परेशानी में हर इंसान की मदद करो, भले ही वह मुसलमान हो या गैर मुस्लिम.
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.
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