Mumbai:
'स्टैंडबाय' एक स्पोर्टस फिल्म है। कहानी फुटबॉल खिलाड़ी राहुल की है जिसे उसका पिता इंटरनेशनल फुटबॉल प्लेयर बनाना चाहता है लेकिन गरीब राहुल और उसकी टीम में खेलने वाले अमीर खिलाड़ी शेखर की दोस्ती में तब दरार आ जाती है जब टेलेंटेड राहुल नेशनल टीम में सिलेक्ट हो जाता है और शेखर को स्टैंडबाय प्लेयर बनकर संतोष करना पड़ता है। शेखर का अमीर पिता अपने बेटे को टीम में जगह दिलाने के लिए हर तरीका अपनाता है रिश्वत लालच डर और राहुल के पिता के खिलाफ फर्जी केस भी। फिल्म फुटबॉल की दुगर्ति के साथ एक संदेश भी देती है कि खेल को खेलो….ना कि इसके साथ खेलो। 'स्टेंडबाय' बड़ी एवरेज फिल्म है। इस स्पोर्ट्स फिल्म को देखते वक्त कहीं भी जोश नहीं उमड़ता। सेकेंड हाफ में कुछ समय बाद फिल्म ज़ोर पकड़ती है लेकिन हैरानी की बात ये है कि एक ईमानदार मेहनती खिलाड़ी आखिरकार अपना हक हासिल करता है बुरे खिलाड़ी को चोट पहुंचाकर। फिर ये खेल कहां रह गया राजनीति का जवाब हिंसा से। ये भी तो खेल से खिलवाड़ ही है। 'स्टैंडबाय' के लिए मेरी रेीटग है 2 स्टार।
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फुटबॉल, स्टेंडबाय, रिव्यू, विजय दिनेश विशिष्ठ