
फिल्म 'मदारी' में सिस्टम से हारे हुए एक पिता की कहानी दिखाई गई है।
Quick Reads
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
एक्टर के रूप में इरफान खान ने खुद को फिर साबित किया है
फिल्म के कुछ दृश्य आपको भावुक कर सकते हैं
अलग अंदाज में बयां की गई है फिल्म की कहानी
बात फ़िल्म की ख़ामियों और ख़ूबियों की तो इस फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है इसकी कहानी, जो पहले कई बार देखी जा चुकी है। सिस्टम से हारा हुआ एक आम आदमी जो सिस्टम पर पलटवार करता है और सिस्टम उसके क़दमों में आ गिरता है। 'ए वेडनेसडे', 'नायक', 'मैं आज़ाद हूं', इन सभी फ़िल्मों में इसी तरह की कहानियां थीं और इसी वजह से आपको फ़िल्म में नयेपन की कमी महसूस होगी। फ़िल्म कुछ जगह धीमी भी पड़ती है। दूसरे भाग में एक सीक्वेंस है जो फ़िल्म की लंबाई को बढ़ाता है और साथ ही दर्शकों को ये धोखे की तरह भी प्रतीत होता है। इरफ़ान के अलावा फ़िल्म में कोई भी क़िरदार ढंग से नहीं गढ़ा गया, जिसके कारण बाक़ी क़िरदार बेअसर साबित होते हैं।
ख़ूबियों की बात करें तो फ़िल्म की कहानी जिस तरह से पर्दे पर बयां की जाती है वह तरीक़ा मुझे अच्छा लगा। तीन टाइमलाइन एक साथ चलती हैं जिसके कारण फ़िल्म आपको बांधे रखेगी, दिमाग़ी रस्साकशी चलती रहेगी और थ्रिल बना रहेगा। फ़िल्म की एडिटिंग ज़्यादातर जगह अपनी पकड़ और रफ़्तार बनाए रखती है। वहीं बैकग्राउंड स्कोर फ़िल्म को प्रभावशाली बनाता है।
इरफ़ान एक अच्छे एक्टर हैं इसमें कोई दो राय नहीं और ये उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया है। फ़िल्म में इरफ़ान और उनके बच्चे के क़िरदार के बीच के रिश्ते का ट्रैक क़ाबिल-ए तारीफ़ है जो दर्शकों को मुस्कुराने और सोचने पर मजबूर करेगा। सिस्टम से लड़ती बाक़ी फ़िल्मों के मुक़ाबले मुझे 'मदारी' का क्लाइमैक्स बहुत अच्छा लगा और ख़ास तौर पर इरफ़ान की अदाकारी। फ़िल्म के चंद सीन में रुलाने की भी ताक़त है। तो इस वीकेंड 'मदारी' ज़रूर देखिए। मेरी ओर से फ़िल्म को 3 स्टार्स...
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं