यह ख़बर 24 जुलाई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

नॉस्टाल्जिया में रहने की आदत नहीं है मुझे : राजेश खन्ना

खास बातें

  • नॉस्टाल्जिया में रहने की आदत नहीं है, मुझे। हमेशा भविष्य के बारे में ही सोचना पड़ता है, जो दिन गुजर गए, बीत गए, उसका क्या सोचना... लेकिन जब जाने-पहचाने चेहरे अंजान-सी एक महफिल में मिलते हैं तो यादें वापस ताजा हो जाती हैं।
नई दिल्ली:

बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने 'आनंद' फिल्म की भांति अपने प्रशंसकों के लिए एक संदेश छोड़ा है। आइए पढ़ें पूरा संदेश...

नॉस्टाल्जिया में रहने की आदत नहीं है, मुझे। हमेशा भविष्य के बारे में ही सोचना पड़ता है, जो दिन गुजर गए, बीत गए, उसका क्या सोचना.... लेकिन जब जाने-पहचाने चेहरे अंजान-सी एक महफिल में मिलते हैं तो यादें वापस ताजा हो जाती हैं। यादें फिर दोबारा लौट आती हैं। कभी-कभी मुझे ऐसा लगता है कि जैसे 100 साल पहले जब मैं दस साल का था तब से हमारी मुलाकात है। मेरा जन्म थिएटर से हुआ।

मैं आज जो कुछ भी हूं यह स्टेज, थिएटर की बदौलत हूं। मैंने जब थिएटर शुरू किया तो मेरे थिएटर वालों ने मुझे जूनियर आर्टिंस्ट का रोल दिया था, एक इंस्पेक्टर का, जिसका सिर्फ एक ही डायलॉग था कि खबरदार नंबरदार भागने की कोशिश की, पुलिस ने चारों तरफ से घेर रखा है। ये डायलॉग था। दूसरे में जब मैं सेकेंड एक्ट में गया तो मैंने जा कहा, नंबरदार खबरदार तुमने भागने की.... उसके बाद डायलॉग भूल गया तो वीके शर्मा जो थे, हीरो थे, उन्होंने कहा, हां... हां.., इंस्पेक्टर साहब का यह कहना है कि भागने की कोशिश न करना, पुलिस ने चारों तरफ से तुम्हें घेर रखा है।

जो डायलॉग मैंने बोलना था वह डायलॉग उन्होंने पूरा किया क्योंकि मैं डायलॉग भूल गया और उसके बाद मुझे बहुत डांट पड़ी, मैं बहुत रोया भी। मैंने कहा, भई राजेश खन्ना तुम एक्टर बनना चाहते हो एक लाइन तो तुमसे बोली नहीं जाती। शर्म की बात है, लानत है तुमपे। मैंने बहुत कोसा अपने आप को और मैंने कहा कि मैं कभी एक्टर नहीं बन सकता, लेकिन फिर भी भगवान की मुस्कान समझ लीजिए, जिद समझ लीजिए, मैंने कहा, कुछ न कुछ तो करूंगा, करके बताऊंगा।

मैं जब फिल्मों में आया तो मेरा कोई गॉडफादर नहीं था। मेरा फिल्म इंडस्ट्री में कोई रिश्तेदार या कोई सिर पर हाथ रखने वाला नहीं था। मैं आया थ्रू द यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स फिल्म फेयर टेलंट कॉन्टेस्ट से। कॉन्टेस्ट छपा फिल्मफेयर में, टाइम्स ऑफ इंडिया में, हमने कैंची लेकर उसे काटा, उसे भरा और वहां लिखा था प्लीज सेंड थ्री फोटोग्राफ्स। हमने फोटो भेजी। हमको बुलाया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया में था यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स बहुत बड़े-बड़े प्रोड्यूसर्स थे, चाहे वह चोपड़ा साहिब थे, बिमल रॉय थे, एसएस द्रविड़ थे... शक्ति सामंत थे, बहुत सारे थे।

उन्होंने कहा कि हमने आपको एक डायलॉग भेजा है वह याद किया आपने? तो मैं सामने कुर्सी पर बैठा था। और वह एक बड़ी-सी टेबल में लाइन में, इतने बड़े-बड़े प्रोड्यूसर्स थे, मुझे ऐसे लग रहा था जैसे कोर्ट मार्शल हो रहा है। जैसे अभी बंदूक निकालेंगे और मुझे मार डालेंगे, गोली चला देंगे, क्योंकि सामने अकेली एक कुर्सी थी बस। मैंने कहा कि वही डायलॉग तो मैंने पढ़ा है लेकिन यह जो डायलॉग है आपने यह नहीं बताया है कि इसका कैरेक्ट्राइजेशन क्या है कि हीरो अपनी मां को समझाता है कि मैं एक नाचने वाली से प्यार करता हूं लेकिन मुझे... मैं उसको तेरी घर की बहू बनाना चाहता हूं। दिस वाज़ द डायलॉग जिसका मेन रोल था।

मैंने कहा न कैरेक्टर बताए, मां का न बताएं हीरो का तो बताएं कि वह अमीर है या गरीब है, मां सख्त है, कड़क है, नरम है, क्या है, मिडल क्लास है,  ये आदमी पढ़ा-लिखा, अनपढ़ है या कुछ भी नहीं, तो चोपड़ा साहब ने मुझे झट से कहा, तुम थिएटर से हो? मैंने कहा जी...

मैंने कहा, डायलॉग तो आपने लिख के भेज दिया कि इस तरह मां को कनविंस करना है। डायलॉग बोलिए, लेकिन आपने कैरेक्ट्राइजेशन नहीं बताया। यह कोई स्टेज का एक्टर ही बोल सकता है। तो बोले, अच्छा ठीक है भाई! तुम कोई भी अपना एक डायलॉग सुनाओ। अब काटो तो खून नहीं पसीना छूट रहा था। मैंने कहा, क्या डायलॉग बोलूं... और ये सब बड़े-बड़े लोग हैं। इनकी पिक्चर हमने 10-10 बार देखी है.... प्रोड्यूस, डायरेक्ट की हुई।

यारों माफ कर दो। उस प्ले का डायलॉग क्योंकि मैंने वह प्ले किया हुआ था। तो मुझे वह डायलॉग याद आया और मैंने उनसे कहा कि मैं इस कुर्सी से उठ सकता हूं। तो कहा हां, हां जो करना है करिये, लेकिन आप करके बताएं कि क्या करेंगे? तो थोड़ा नर्वस भी हुआ, जिस तरह से बोला, मुझे लगा डांट के बोल रहे हैं... जो डायलॉग है जिसकी वजह से मैं फिल्मों में आया। मुझे जेपी सिप्पी ने चांस दिया..... 40 साल पहले।

हां, मैं कलाकार हूं, हां...हां मैं कलाकार हूं, क्या करोगे मेरी कहानी सुनकर? आज से कई साल पहले होनी के बहकाने से एक ऐसा पियाला पी चुका हूं जो मेरे लिए जहर हो या अमृत... एक ऐसी बात जिसका इकरार करते हुए मेरी जुबान पे छाले पड़ जाएंगे, लेकिन फिर भी कहता हूं कि जब मैं छोटा था एक खौफनाक वाक्या पेश आया, क्योंकि मैं एक भयानक आग में फंस गया, जब जिंदा बचा तो मालूम हुआ कि मैं बदसूरत हो गया हूं। जैसे सुहानी सुबह डरावनी रात में पलट गई हो...। मैं बाहर जाने से घबराने लगा और घर में बैठकर गीत बनाने लगा जितना भी भयानक था... मेरा चेहरा... उतने मधुर थे मेरे गीत। दुनिया ने मुझे दुतकारा, लेकिन मेरे गीतों से प्यार करने लगे और मैं चिल्लाता रहा कि तुमने चांदनी रातों से मोहब्बत और मैं आंखों से बरसाता हूं सितारे। मेरे गीतों ने हजारों को लूटा मेरी मुलाकात... होती गई पर मैं, मैं किसी से न मिलता। एक दिन खत आया मैंने तुम्हारे गीतों में शांति पाई अगर मुलाकात हुई तो न जाने क्या कर बैठूंगी। मुझे लगा यह खूबसूरत हसीना, बुलाओ इससे यह बुलाओ इससे यह बदसूरत चेहरा दिखा कर पूरी ताकत से इंतकाम लूं, मैंने उसे बुलाया वह आए कितनी खूबसूरत हैं, शबनम से भी मुलायम और मैं जैसे, मासूम के सामने मायूसी... मैं चेहरा छुपा के बातें करता रहा, मेरे गीत शुभमाने थे और मेरी जुबां पे.... मैंने शादी का प्रस्ताव पेश किया और वह खुश थीं। वह बोली हां... मुझे मंजूर है। मैं खुद सहम गया मैंने चिल्ला के पूछा, कौन हो ...कहां से आई हो तुम...? उसे धीरे-से आंसू बहाते हुए कह दिया कि मैं... मैं तो एक अंधी हूं। मैंने उसकी आंखों में देखा, उसकी आंखों में इश्क था, तब मैंने कहा, जो तीर निगाह का बिस्मिल नहीं वह कहने को दिल तो है मगर दिल नहीं...

फिल्मों में आ तो गया लेकिन आने के बाद वह खूबसूरत कामयाबी कि सीढ़ी चढ़ने का मौका, यह सेहरा तो आपके सिर है.. कि आप हैं जिन्होंने मुझे एक्टर से स्टार बनाया। स्टार से सुपर स्टार बनाया। किन अल्फाजों में आपका शुक्रिया अदा करूं, मुझे समझ में नहीं आता। प्यार आप मुझे भेजते रहे.... प्यार वह मुझे मिलता रहा, लेकिन उस प्यार को मैं कभी वापस लौटा नहीं पाया, लेकिन जो भी कहना चाहूंगा, जिन अल्फाजों में भी आपका शुक्रिया अदा करना चाहूंगा... वह मेरी दिल की सच्चाई होगी। मेरी ईमानदारी होगी, मेरा जमीर होगा। आज मेरा दिल हल्का हुआ आपसे गुफ्तगू करके, बात करके, और आपका मैंने शुक्रिया अदा किया। मुझे खुद को अच्छा लग रहा है कि चलिए इस बहाने आपसे मुलाकात हुई। किसे अपना कहें इस काबिल कोई नहीं मिलता, किसे अपना कहे कोई इस काबिल नहीं मिलता, यहां पत्थर तो बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलता।

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तो दोस्तों आपका एक हिस्सेदार मैं भी हूं और जैसे मैंने पहले भी कहा कि आपने आपका कीमती वक्त निकाल कर आप कहिए प्यार था। आप यहां मौजूद हुए और इतनी भारी संख्या में तो मैं यहीं कहूंगा कि बहुत-बहुत शुक्रिया, थैंक्यू और मेरा बहुत-बहुत सलाम!