मुंबई:
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहना बटोर चुकी फिल्म 'पार्च्ड' भारत में रिलीज हो चुकी है. इसे लिखा है लीना यादव ने जो इससे पहले 'शब्द' और 'तीन पत्ती' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन कर चुकी हैं. 'पार्च्ड' के निर्माता हैं अजय देवगन. फ़िल्म की कहानी रेगिस्तान में बसे एक गांव की 4 महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है जो किसी ना किसी वजह से पुरुष प्रधान समाज में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं.
इन चार महिलाओं के ज़रिए फ़िल्मकार ने घरेलू हिंसा, बाल विवाह, अकेलापन, कामकाजी महिलाओं पर नकेल, महिला शिक्षा की खिलाफ़त और सदिया से चली आ रही समाज की रूढ़िवादी सोच को फ़िल्म ने उजागर किया है. इन चारों महिलाओं के किरदार में हैं तनिष्ठा चटर्जी, राधिका आप्टे, सुरवीन चावला और लहर ख़ान... फ़िल्म में इनके साथ हैं आदिल हुसैन और सुमीत व्यास.
ख़ामियों की बात करें तो फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है कि ये फ़िल्म एकसाथ कई मुद्दों को सुलटाने की कोशिश करती है. जिसकी वजह से दर्शक उलझन और भटका हुआ महसूस कर सकते हैं.
पर अच्छी बात ये है कि फ़िल्म आपको बोर नहीं करेगी. ये ख़ूबी है फ़िल्मकार के निर्देशन और लेखन की. फ़िल्म की स्क्रिप्ट और कहानी आपको बांधे रखेगी. फ़िल्म का स्क्रीनप्ले आपको निर्धारित गति से आगे लेकर चलता है. फ़िल्म के दृश्य प्रभावशाली हैं और किरदारों के जज़्बात पर असर करते हैं. यूं तो ऐसी कहानी से आप वाकिफ़ होंगे, बावजूद इसके फ़िल्म आपको झकझोरेगी. फ़िल्म की कुछ बातें आपको नई भी लग सकती हैं. मसलन मोबाइल फ़ोन और डिश टीवी के इस्तेमाल की इजाज़त पंचायत से लेना. इन्हें गांव में लाने की वजह भी दिलचस्प बताई गई है ताकि महिलाओं के पतियों को दूसरी महिलाओं से दूर रखा जा सके.
अभिनय की बात करें तो तनिष्ठा चटर्जी और राधिका आप्टे ने बेहतरीन काम किया है पर सुरवीन अपनी एक्टिंग से बाज़ी मारती हैं. उनका ये किरदार शायद खुद उनके लिए और दर्शकों के लिए भी सफल प्रयोग साबित हुआ. फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफ़ी, कहानी का मर्म और दृश्यों की ख़ूबसूरती कमाल है.
लीना यादव का निर्देशन दमदार और नियंत्रित दिखा. फ़िल्म का संगीत विषय के साथ मेल खाता है. ख़ासतौर से वो गाना जिसे बस के ऊपर फ़िल्माया गया. तो कुल मिलाकर 'पार्च्ड' एक असरदार और बेहतरीन फ़िल्म है जिसे ज़रूर देखना चाहिए. मेरी ओर से फ़िल्म को 3.5 स्टार्स.अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहना बटोर चुकी फिल्म 'पार्च्ड' भारत में रिलीज हो चुकी है. इसे लिखा है लीना यादव ने जो इससे पहले 'शब्द' और 'तीन पत्ती' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन कर चुकी हैं. 'पार्च्ड' के निर्माता हैं अजय देवगन. फ़िल्म की कहानी रेगिस्तान में बसे एक गांव की 4 महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है जो किसी ना किसी वजह से पुरुष प्रधान समाज में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं.
इन चार महिलाओं के ज़रिए फ़िल्मकार ने घरेलू हिंसा, बाल विवाह, अकेलापन, कामकाजी महिलाओं पर नकेल, महिला शिक्षा की खिलाफ़त और सदिया से चली आ रही समाज की रूढ़िवादी सोच को फ़िल्म ने उजागर किया है. इन चारों महिलाओं के किरदार में हैं तनिष्ठा चटर्जी, राधिका आप्टे, सुरवीन चावला और लहर ख़ान... फ़िल्म में इनके साथ हैं आदिल हुसैन और सुमीत व्यास.
ख़ामियों की बात करें तो फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है कि ये फ़िल्म एकसाथ कई मुद्दों को सुलटाने की कोशिश करती है. जिसकी वजह से दर्शक उलझन और भटका हुआ महसूस कर सकते हैं.
पर अच्छी बात ये है कि फ़िल्म आपको बोर नहीं करेगी. ये ख़ूबी है फ़िल्मकार के निर्देशन और लेखन की. फ़िल्म की स्क्रिप्ट और कहानी आपको बांधे रखेगी. फ़िल्म का स्क्रीनप्ले आपको निर्धारित गति से आगे लेकर चलता है. फ़िल्म के दृश्य प्रभावशाली हैं और किरदारों के जज़्बात पर असर करते हैं. यूं तो ऐसी कहानी से आप वाकिफ़ होंगे, बावजूद इसके फ़िल्म आपको झकझोरेगी. फ़िल्म की कुछ बातें आपको नई भी लग सकती हैं. मसलन मोबाइल फ़ोन और डिश टीवी के इस्तेमाल की इजाज़त पंचायत से लेना. इन्हें गांव में लाने की वजह भी दिलचस्प बताई गई है ताकि महिलाओं के पतियों को दूसरी महिलाओं से दूर रखा जा सके.
अभिनय की बात करें तो तनिष्ठा चटर्जी और राधिका आप्टे ने बेहतरीन काम किया है पर सुरवीन अपनी एक्टिंग से बाज़ी मारती हैं. उनका ये किरदार शायद खुद उनके लिए और दर्शकों के लिए भी सफल प्रयोग साबित हुआ. फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफ़ी, कहानी का मर्म और दृश्यों की ख़ूबसूरती कमाल है.
लीना यादव का निर्देशन दमदार और नियंत्रित दिखा. फ़िल्म का संगीत विषय के साथ मेल खाता है. ख़ासतौर से वो गाना जिसे बस के ऊपर फ़िल्माया गया. तो कुल मिलाकर 'पार्च्ड' एक असरदार और बेहतरीन फ़िल्म है जिसे ज़रूर देखना चाहिए. मेरी ओर से फ़िल्म को 3.5 स्टार्स.
इन चार महिलाओं के ज़रिए फ़िल्मकार ने घरेलू हिंसा, बाल विवाह, अकेलापन, कामकाजी महिलाओं पर नकेल, महिला शिक्षा की खिलाफ़त और सदिया से चली आ रही समाज की रूढ़िवादी सोच को फ़िल्म ने उजागर किया है. इन चारों महिलाओं के किरदार में हैं तनिष्ठा चटर्जी, राधिका आप्टे, सुरवीन चावला और लहर ख़ान... फ़िल्म में इनके साथ हैं आदिल हुसैन और सुमीत व्यास.
ख़ामियों की बात करें तो फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है कि ये फ़िल्म एकसाथ कई मुद्दों को सुलटाने की कोशिश करती है. जिसकी वजह से दर्शक उलझन और भटका हुआ महसूस कर सकते हैं.
पर अच्छी बात ये है कि फ़िल्म आपको बोर नहीं करेगी. ये ख़ूबी है फ़िल्मकार के निर्देशन और लेखन की. फ़िल्म की स्क्रिप्ट और कहानी आपको बांधे रखेगी. फ़िल्म का स्क्रीनप्ले आपको निर्धारित गति से आगे लेकर चलता है. फ़िल्म के दृश्य प्रभावशाली हैं और किरदारों के जज़्बात पर असर करते हैं. यूं तो ऐसी कहानी से आप वाकिफ़ होंगे, बावजूद इसके फ़िल्म आपको झकझोरेगी. फ़िल्म की कुछ बातें आपको नई भी लग सकती हैं. मसलन मोबाइल फ़ोन और डिश टीवी के इस्तेमाल की इजाज़त पंचायत से लेना. इन्हें गांव में लाने की वजह भी दिलचस्प बताई गई है ताकि महिलाओं के पतियों को दूसरी महिलाओं से दूर रखा जा सके.
अभिनय की बात करें तो तनिष्ठा चटर्जी और राधिका आप्टे ने बेहतरीन काम किया है पर सुरवीन अपनी एक्टिंग से बाज़ी मारती हैं. उनका ये किरदार शायद खुद उनके लिए और दर्शकों के लिए भी सफल प्रयोग साबित हुआ. फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफ़ी, कहानी का मर्म और दृश्यों की ख़ूबसूरती कमाल है.
लीना यादव का निर्देशन दमदार और नियंत्रित दिखा. फ़िल्म का संगीत विषय के साथ मेल खाता है. ख़ासतौर से वो गाना जिसे बस के ऊपर फ़िल्माया गया. तो कुल मिलाकर 'पार्च्ड' एक असरदार और बेहतरीन फ़िल्म है जिसे ज़रूर देखना चाहिए. मेरी ओर से फ़िल्म को 3.5 स्टार्स.अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सराहना बटोर चुकी फिल्म 'पार्च्ड' भारत में रिलीज हो चुकी है. इसे लिखा है लीना यादव ने जो इससे पहले 'शब्द' और 'तीन पत्ती' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन कर चुकी हैं. 'पार्च्ड' के निर्माता हैं अजय देवगन. फ़िल्म की कहानी रेगिस्तान में बसे एक गांव की 4 महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है जो किसी ना किसी वजह से पुरुष प्रधान समाज में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं.
इन चार महिलाओं के ज़रिए फ़िल्मकार ने घरेलू हिंसा, बाल विवाह, अकेलापन, कामकाजी महिलाओं पर नकेल, महिला शिक्षा की खिलाफ़त और सदिया से चली आ रही समाज की रूढ़िवादी सोच को फ़िल्म ने उजागर किया है. इन चारों महिलाओं के किरदार में हैं तनिष्ठा चटर्जी, राधिका आप्टे, सुरवीन चावला और लहर ख़ान... फ़िल्म में इनके साथ हैं आदिल हुसैन और सुमीत व्यास.
ख़ामियों की बात करें तो फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी है कि ये फ़िल्म एकसाथ कई मुद्दों को सुलटाने की कोशिश करती है. जिसकी वजह से दर्शक उलझन और भटका हुआ महसूस कर सकते हैं.
पर अच्छी बात ये है कि फ़िल्म आपको बोर नहीं करेगी. ये ख़ूबी है फ़िल्मकार के निर्देशन और लेखन की. फ़िल्म की स्क्रिप्ट और कहानी आपको बांधे रखेगी. फ़िल्म का स्क्रीनप्ले आपको निर्धारित गति से आगे लेकर चलता है. फ़िल्म के दृश्य प्रभावशाली हैं और किरदारों के जज़्बात पर असर करते हैं. यूं तो ऐसी कहानी से आप वाकिफ़ होंगे, बावजूद इसके फ़िल्म आपको झकझोरेगी. फ़िल्म की कुछ बातें आपको नई भी लग सकती हैं. मसलन मोबाइल फ़ोन और डिश टीवी के इस्तेमाल की इजाज़त पंचायत से लेना. इन्हें गांव में लाने की वजह भी दिलचस्प बताई गई है ताकि महिलाओं के पतियों को दूसरी महिलाओं से दूर रखा जा सके.
अभिनय की बात करें तो तनिष्ठा चटर्जी और राधिका आप्टे ने बेहतरीन काम किया है पर सुरवीन अपनी एक्टिंग से बाज़ी मारती हैं. उनका ये किरदार शायद खुद उनके लिए और दर्शकों के लिए भी सफल प्रयोग साबित हुआ. फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफ़ी, कहानी का मर्म और दृश्यों की ख़ूबसूरती कमाल है.
लीना यादव का निर्देशन दमदार और नियंत्रित दिखा. फ़िल्म का संगीत विषय के साथ मेल खाता है. ख़ासतौर से वो गाना जिसे बस के ऊपर फ़िल्माया गया. तो कुल मिलाकर 'पार्च्ड' एक असरदार और बेहतरीन फ़िल्म है जिसे ज़रूर देखना चाहिए. मेरी ओर से फ़िल्म को 3.5 स्टार्स.
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