गायक मुकेश (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
मौजूदा दौर के अभिनेता नील नितिन मुकेश के पिता नितिन मुकेश ने फिल्म के लिए सिर्फ पार्श्व गायन ही किया, लेकिन उनके दादा विख्यात पार्श्वगायक मुकेश ने न सिर्फ फिल्मों का निर्माण किया बल्कि वे दो फिल्मों में बतौर हीरो पर्दे पर भी आए.
22 जुलाई 1923 को जन्मे मुकेश ने 1940 से 1976 के बीच सैकड़ों फिल्मों के लिए गीत गाए. राज कपूर उन्हें अपनी आत्मा कहते थे. आज से 40 साल पहले 27 अगस्त 1976 को मुकेश एक शो के लिए अमेरिका गए थे. इसी दौरान डेट्रॉयट, मिशिगन में दिल का दौरा पड़ने पर उनका निधन हो गया.
गायक मुकेश, जिनका पूरा नाम मुकेशचंद्र माथुर है, ने साल 1951 में फिल्म 'मल्हार' और 1956 में फिल्म 'अनुराग' का निर्माण किया था. फिल्म 'अनुराग', 'माशूका' और निर्दोष में उन्होंने बतौर हीरो अभिनय भी किया. हालांकि प्रोड्यूसर बनना उनके लिए बुरा अनुभव रहा क्योंकि उनकी दोनों फिल्में दर्शकों पर प्रभाव डालने में कामयाब नहीं हो सकीं.
विख्यात अभिनेता मोतीलाल मुकेश के रिश्तेदार थे. चौथे दशक की शुरुआत में लुधियाना के निवासी मुकेश मोतीलाल के साथ मुंबई आ गए थे और फिल्मों में मौके की तलाश में थे. मोतीलाल ने उन्हें एक दिन संगीतकार अनिल विश्वास से मिलवाया. अनिल विश्वास ने उन्हें कुछ गाने के लिए कहा. मुकेश को सुनकर अनिल विश्वास को अहसास हुआ कि वे ताल-लय के साथ नहीं चल पाते लेकिन आवाज में दम है. उन्होंने मुकेश को मौका नहीं दिया जिससे वे निराश हुए. इसके बाद वे काम की तलाश में मुंबई में भटकते रहे.
इसी दौर में मुकेश के फिल्मी करियर की शुरुआत सन 1941 में फिल्म 'निर्दोष' से हुई जिसमें वे हीरो के साथ-साथ गायक भी थे. तब बोलती फिल्मों का प्रचलन शुरू हुए बहुत अधिक समय नहीं हुआ था और फिल्मों में पार्श्वगायन का भी वह शुरुआती दौर था. फिल्मी दुनिया में केएल सहगल, पंकज मलिक जैसे दिग्गज गायकों का डंका बजता था. मुकेश को छोटे-छोटे मौके मिल रहे थे लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी. सन 1944 में अनिल विश्वास ने फिल्म 'पहली नजर' के लिए धुनें तैयार कीं तो उन्हें मुकेश याद आ गए. उन्होंने मुकेश को बुलाया और एक गीत दिल ''जलता है तो जलने दे, आंसू न बहा फरियाद न कर...'' की रिहर्सल कराई. रिहर्सल के बाद उन्होंने मुकेश को अगले दिन एचएमवी स्टूडियो में रिकार्डिंग के लिए आने को कहा.
मुकेश के लिए अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में गाना एक बड़ा अवसर था. वे यह मौका पाकर खुश तो थे लेकिन साथ में नर्वस भी थे क्योंकि पहले एक बार अनिल विश्वास ने उन्हें सुनने के बाद मौका देने से मना कर दिया था. मुकेश ने आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए थोड़ी शराब पीने का मन बना लिया और एक जगह बैठ गए. उनके पीने का सिलसिला धीरे-धीरे लंबा होता गया. वे एक के बाद एक कई पैग पी गए. अनिल विश्वास ने स्टूडियो में रिकार्डिंग की तैयारी कर रखी थी. कई घंटे के इंतजार के बाद भी जब मुकेश नहीं आए तो उन्होंने उनके बारे में पता किया. इसके बाद अनिल विश्वास उस स्थान पर जा पहुंचे जहां मुकेश पीने में मशगूल थे. उन्होंने मुकेश को पकड़ा और साथ में स्टूडियो ले आए. मुकेश ने कहा कि वे नहीं गा सकते, बहुत पी ली है. इस पर अनिल विश्वास ने उनके सिर पर से पानी उड़ेल दिया और कहा कि तुम्हें तो आज ही गाना पड़ेगा और रिकार्डिंग करानी पड़ेगी.
इसके बाद गाने की रिकार्डिंग हुई...''दिल जलता है तो जलने दे...'' यह गाना फिल्म में जब आया तो श्रोता और दर्शक यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि यह गीत केएल सहगल ने नहीं बल्कि मुकेश ने गाया है. गीत सुपर हिट हुआ और इसके साथ मुकेश फिल्म संगीत के रसिकों के चहेते बन गए. 'पहली नजर' का उनका यह गीत आज भी सुना-गुनगुनाया जा रहा है. क्या कोई सोच सकता है कि यह एक नर्वस गायक ने शराब के सुरूर में गाया था?
22 जुलाई 1923 को जन्मे मुकेश ने 1940 से 1976 के बीच सैकड़ों फिल्मों के लिए गीत गाए. राज कपूर उन्हें अपनी आत्मा कहते थे. आज से 40 साल पहले 27 अगस्त 1976 को मुकेश एक शो के लिए अमेरिका गए थे. इसी दौरान डेट्रॉयट, मिशिगन में दिल का दौरा पड़ने पर उनका निधन हो गया.
गायक मुकेश, जिनका पूरा नाम मुकेशचंद्र माथुर है, ने साल 1951 में फिल्म 'मल्हार' और 1956 में फिल्म 'अनुराग' का निर्माण किया था. फिल्म 'अनुराग', 'माशूका' और निर्दोष में उन्होंने बतौर हीरो अभिनय भी किया. हालांकि प्रोड्यूसर बनना उनके लिए बुरा अनुभव रहा क्योंकि उनकी दोनों फिल्में दर्शकों पर प्रभाव डालने में कामयाब नहीं हो सकीं.
विख्यात अभिनेता मोतीलाल मुकेश के रिश्तेदार थे. चौथे दशक की शुरुआत में लुधियाना के निवासी मुकेश मोतीलाल के साथ मुंबई आ गए थे और फिल्मों में मौके की तलाश में थे. मोतीलाल ने उन्हें एक दिन संगीतकार अनिल विश्वास से मिलवाया. अनिल विश्वास ने उन्हें कुछ गाने के लिए कहा. मुकेश को सुनकर अनिल विश्वास को अहसास हुआ कि वे ताल-लय के साथ नहीं चल पाते लेकिन आवाज में दम है. उन्होंने मुकेश को मौका नहीं दिया जिससे वे निराश हुए. इसके बाद वे काम की तलाश में मुंबई में भटकते रहे.
इसी दौर में मुकेश के फिल्मी करियर की शुरुआत सन 1941 में फिल्म 'निर्दोष' से हुई जिसमें वे हीरो के साथ-साथ गायक भी थे. तब बोलती फिल्मों का प्रचलन शुरू हुए बहुत अधिक समय नहीं हुआ था और फिल्मों में पार्श्वगायन का भी वह शुरुआती दौर था. फिल्मी दुनिया में केएल सहगल, पंकज मलिक जैसे दिग्गज गायकों का डंका बजता था. मुकेश को छोटे-छोटे मौके मिल रहे थे लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी. सन 1944 में अनिल विश्वास ने फिल्म 'पहली नजर' के लिए धुनें तैयार कीं तो उन्हें मुकेश याद आ गए. उन्होंने मुकेश को बुलाया और एक गीत दिल ''जलता है तो जलने दे, आंसू न बहा फरियाद न कर...'' की रिहर्सल कराई. रिहर्सल के बाद उन्होंने मुकेश को अगले दिन एचएमवी स्टूडियो में रिकार्डिंग के लिए आने को कहा.
मुकेश के लिए अनिल विश्वास के संगीत निर्देशन में गाना एक बड़ा अवसर था. वे यह मौका पाकर खुश तो थे लेकिन साथ में नर्वस भी थे क्योंकि पहले एक बार अनिल विश्वास ने उन्हें सुनने के बाद मौका देने से मना कर दिया था. मुकेश ने आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए थोड़ी शराब पीने का मन बना लिया और एक जगह बैठ गए. उनके पीने का सिलसिला धीरे-धीरे लंबा होता गया. वे एक के बाद एक कई पैग पी गए. अनिल विश्वास ने स्टूडियो में रिकार्डिंग की तैयारी कर रखी थी. कई घंटे के इंतजार के बाद भी जब मुकेश नहीं आए तो उन्होंने उनके बारे में पता किया. इसके बाद अनिल विश्वास उस स्थान पर जा पहुंचे जहां मुकेश पीने में मशगूल थे. उन्होंने मुकेश को पकड़ा और साथ में स्टूडियो ले आए. मुकेश ने कहा कि वे नहीं गा सकते, बहुत पी ली है. इस पर अनिल विश्वास ने उनके सिर पर से पानी उड़ेल दिया और कहा कि तुम्हें तो आज ही गाना पड़ेगा और रिकार्डिंग करानी पड़ेगी.
इसके बाद गाने की रिकार्डिंग हुई...''दिल जलता है तो जलने दे...'' यह गाना फिल्म में जब आया तो श्रोता और दर्शक यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि यह गीत केएल सहगल ने नहीं बल्कि मुकेश ने गाया है. गीत सुपर हिट हुआ और इसके साथ मुकेश फिल्म संगीत के रसिकों के चहेते बन गए. 'पहली नजर' का उनका यह गीत आज भी सुना-गुनगुनाया जा रहा है. क्या कोई सोच सकता है कि यह एक नर्वस गायक ने शराब के सुरूर में गाया था?
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